रिसर्च : भारत में बेटियों की वजह से घटते-बढ़ते है सोने के दाम
नई दिल्ली. जब सोने के भाव ऊपर चढ़ते हैं, तब भारत में बेटियों के जन्म लेने या जन्म लेने के बाद उनके बचने की दर कम हो जाती है। बेटियां यानी नवजात और कन्या भ्रूण दोनों। यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स की एक रिसर्च में आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह दावा किया गया है। विश्लेषण के मुताबिक सोने के भाव का सीधा असर शादी में दिए जाने वाले दहेज पर पड़ता है। जैसे ही भाव बढ़ते हैं, परिवार बेटियों को नजरअंदाज करने लगते हैं या फिर उन्हें भ्रूण में ही मार देने जैसे अपराध करने लगते हैं। सोना महंगा होने से बेटियों के खानपान, उनकी बीमारी के इलाज और शिक्षा पर खर्च कम कर दिया जाता है।
सोने के भाव बढ़ने पर लड़कों का सर्वाइवल रेट बढ़ गया
यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स की रिसर्च में दुनिया के बाजार में सोने के भाव और दहेज पर खर्च को लेकर 33 साल के डेटा का एनालिसिस किया गया है। आमतौर पर भारत 90 प्रतिशत सोना आयात करता है। 1972 से 2005 के बीच अंतरराष्ट्रीय गोल्ड प्राइज और जन्म दर की स्टडी से पता चला है कि जब-जब सोने के भाव बढ़े, तब-तब कन्या भ्रूण और नवजात बेटियों के जीवित बचने की दर लड़कों से कम रही। यही नहीं, सोने के भाव बढ़ने पर लड़कों का सर्वाइवल रेट बढ़ा हुआ पाया गया।
सोने के भाव बढ़ने के तीन असर
पहला - बच्चियों को पोषण नहीं मिला। यहां तक कि स्तनपान भी नहीं कराया गया।
दूसरा - दहेज में देने के लिए सोने की मात्रा कम नहीं की, लेकिन बेटियों की देखरेख और उनके खानपान पर खर्च कम कर दिया।
तीसरा - बच्चियों की शिक्षा को कम महत्वपूर्ण आंका जाने लगा और उस पर कम या नहीं के बराबर पैसा खर्च किया गया।
रोक के बावजूद दहेज की कुप्रथा कायम
- इस रिसर्च पर काम करने वाली यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स की इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर सोनिया भालोत्रा के मुताबिक सदियों से चली आ रही दहेज कुप्रथा दुनियाभर से खत्म हो गई है, लेकिन 1961 में कानूनी पाबंदी के बावजूद यह भारत में अब भी मौजूद है। इसी तरह बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका में भी दहेज की कुप्रथा चल रही है। अपराध माने जाने के बावजूद आज भी लड़की के पैदा होते ही परिवार के लोग उसका दहेज जुटाना शुरू कर देते हैं।
- 1972 से 1985 के बीच सोने के भाव 6.3 प्रतिशत बढ़े। इस अवधि में नवजात बच्चियों की मृत्यु दर 6.4 प्रतिशत बढ़ी।
- 1986 से 2005 के बीच भारत में अल्ट्रासाउंड टेक्नॉलजी का इस्तेमाल होने लगा। शुरुआत में लिंग परीक्षण पर पाबंदी नहीं थी। ऐसे में लोग बेटियों को गर्भ में ही मारने लगे। 1986 में सोने के भाव 2.6 प्रतिशत बढ़े, लेकिन बेटियों के जन्म लेने की संभावना 0.3 प्रतिशत कम हो गई।
- 2013 से 2015 के बीच 1000 लड़कों पर 900 बेटियां पैदा हुईं, जबकि कुछ जगहों पर यह आंकड़ा 850 भी रहा।
- 1972 से 1985 के बीच सोने की कीमत 1 प्रतिशत बढ़ने से 13000 नवजात बच्चियों की मौत हर साल हुई। यह जानकारी 1980 के आंकड़ों पर आधारित है जब भारत में 3 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे।
- 1985 के बाद सोने की कीमत 1 प्रतिशत बढ़ने से 33000 बच्चियां या तो गर्भ में मार दी गईं या फिर जन्म के बाद लापता हो गईं। यह जानकारी 1995 के आंकड़ों पर आधारित है, जब भारत में 2.7 करोड़ बच्चे पैदा हुए थे।
- एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में 7434 महिलाओं की मौत हुई यानी हर दिन 20 मौतें। इसका बड़ा कारण दहेज है। इसमें दहेज के चलते हत्या और आत्महत्या दोनों शामिल है।