यहॉं पत्थरों को पीटने पर आती बर्तनों जैसी आवाज, आज तक पता नही किसी को इसका रहस्य
अंबिकापुर । सरगुजा जिले के दरिमा एयरपोर्ट के नजदीक छिंदकालो गांव में एक विशाल पत्थर हजारों साल से एक रहस्य और कौतूहल का केंद्र बना हुआ है। इस विशाल पत्थर की बनावट और इसकी सतह बेहद अलग है और इसे पीटने पर बर्तन जैसी आवाज आती है। इस अनूठी विशेषता के चलते यहां के लोग इस पत्थर को ठिनठिनी पत्थर कहते हैं। कई जांच पड़ताल के बावजूद इस पत्थर का रहस्य नहीं खुल सका है। बहुत से ग्रामीण मानते हैं कि सदियों पहले यह पत्थर आसमान से गिरा था।
वैज्ञानिक भी हैं हैरान, आखिर कैसे आती है यह आवाज
2 वर्ष पूर्व इसरो फिजिकल लेबोरेट्री रिसर्च अहमदाबाद के एक वैज्ञानिक डॉक्टर ऋषि तोश सिन्हा ने इस पत्थर की पड़ताल की, लेकिन इसके अस्तित्व के बारे में वे किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाए। वे अपने साथ इस पत्थर के आस पास के कुछ छोटे पत्थर ले गए थे, ताकि इस बात की पड़ताल कर सकें कि यह आवाज इस पत्थर से कैसे आती है। करीब 5 फिट ऊंचे एक टीले पर पड़े इस पत्थर के आस-पास कई बड़े पत्थर हैं, लेकिन उन्हें पीटने पर उनमें से ऐसी कोई आवाज नहीं आती।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी देखा था यह पत्थर
वर्षों से यह पत्थर लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। जानकारों के मुताबिक अपने प्रधानमंत्रित्व काल में साल 1967 में इंदिरा गांधी दरिमा हवाई एयरपोर्ट आई थीं। उन्होंने ग्रामीणों से इस पत्थर के बारे में सुना और फिर खुद को इसे देखने से रोक न सकीं। अब तक इस पत्थर को लेकर कई शोध हुए, लेकिन कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका कि आखिर इस पत्थर को किसी अन्य पत्थर से पीटने पर धातु की तरह आवाज कैसे आती है।
इस वजह से हो सकते हैं धातु के गुण
अंबिकापुर के भूगोलविद डॉ अनिल सिन्हा का मानना है कि दरिमा मैनपाट इलाका क्योंकि बॉक्साइट खनिज से भरा हुआ है इस वजह से इस पत्थर पर भी बॉक्साइट की मात्रा होने और एलुमिना होने की संभावना है। बॉक्साइट मेटल का रूप ले चुका है। उनका मानना है कि यह हजारों वर्षों से यहां पड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि पुराने गजेटियर में भी कहीं इस पत्थर का उल्लेख नहीं है। छत्तीसगढ़ के शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में पर्यटक इसी मार्ग से होकर जाते हैं इसलिए हर पर्यटक के लिए यह पत्थर भी एक भ्रमण का केंद्र बन चुका है। मैनपाट आते जाते लोग जरूर इस पत्थर को देखने आते हैं।
उल्का पिंड का भी हो सकता है हिस्सा
सरगुजा स्टेट के इतिहासकार गोविंद शर्मा का मानना है कि इस पत्थर के यहां होने के दो कारण्ा हो सकते हैं। या तो यह पृथ्वी के निर्मांण के दौरान से ही यहां मौजूद है या फिर कोई उल्का पिंड है, जो सदियों पहले आसमान से गिरा हो। गोविंद ने बताया कि इस पत्थर की संरचना यहां मौजूद अन्य पत्थरों से बिल्कुल अलग है। उन्होंने बताया कि इसी तरह के कई पत्थर यहां से कुछ दूर बतौली के पास बालमपुर की पहाड़ी में कुछ पत्थरों का ढ़ेर है जो सीधे खड़े और जमीन में धंसे हुए नजर आते हैं। हो सकता है कि यह उल्का पिंड हों और ठिनठिनी पत्थर इसी समूह का हिस्सा हो।
जागरूकता के अभाव में नष्ट हो रहा इतिहास
गोविंद ने आगे बताया कि सगुजा में इस तरह के कई स्थलों पर रहस्यमयी पत्थर मौजूद थे। वर्ष 1989-90 में जवाहर रोजगार योजना के दौरान इन पत्थरों को ठेकेदारों ने तुड़वाकर निर्मांण कार्यों में उपयोग कर लिया था। इसी तरह की एक साइट के नजदीक एक व्यक्ति ने क्रशर लगाया और वहां के सारे पत्थर तुड़वाकर निर्मांण कार्यों में उपयोग कर लिए गए।