पीएम और गृह मंत्री ले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के दस्तावेजों पर फैसला - केंद्रीय सूचना आयोग
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु से जुड़ी गोपनीय फाइलें उजागर करने की मांग पर केंद्रीय सूचना आयोग ने फैसला प्रधानमंत्री व गृह मंत्री पर छोड़ दिया है। आयोग ने कहा कि सारी गोपनीय फाइलें पीएम व गृह मंत्री के समक्ष पेश कर दी जाना चाहिए। वे ही उन्हें उजागर करने के बारे में फैसला ले सकते हैं।
केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने एक आरटीआई अर्जी पर सोमवार को फैसला सुनाते हुए पीएमओ के केंद्रीय सूचना अधिकारियों, विदेश मंत्रालय व गृह मंत्रालय को दिशा-निर्देश जारी किए। क्या ताशकंद में मृत्यु के बाद पोस्टमार्टम हुआ?
आरटीआई आवेदक ने अपनी अर्जी में पूछा है कि क्या 11 जनवरी 1966 को तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) के ताशकंद में शास्त्रीजी की मृत्यु के बाद उनका शव परीक्षण (पोस्टमार्टम) कराया गया था?
इस अर्जी का निपटारा करते हुए केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने कहा, "आयोग आदेश देता है कि सारी गोपनीय फाइलें प्रधानमंत्री व गृह मंत्री के समक्ष रखी जाएं। उनसे सिफारिश की गई है कि वे जानने के मूलभूत अधिकार के तहत उनकी मांग पर विचार करें। हम सिफारिश करते हैं कि एक विशेषज्ञ समिति बनाकर या किसी अन्य प्रक्रिया से गोपनीय रिकॉर्ड उजागर करने पर मशवरा किया जाए, ताकि रहस्य दूर हो सके।"
राजनारायण कमेटी का रिकॉर्ड नहीं होने से हैरान
आचार्यलु ने इस बात पर हैरानी जताई कि 70 के दशक में जनता पार्टी के राज में शास्त्री की मृत्यु की जांच के लिए बनी राजनारायण कमेटी से संबंधित कोई रिकॉर्ड राज्यसभा के पास नहीं है। संसद में दस्तावेजों का विशिष्ट तरीके से मेंटेनेंस होता है। संसद में बोले जाने वाला हर शब्द रिकॉर्ड होता है और उसे सार्वजनिक किया जाता है। ऐसे में यह महत्वपूर्ण रिकॉर्ड कैसे गायब हो सकता है।
संसद के संवैधानिक अधिकारियों को इसकी जांच करना चाहिए या कमेटी का रिकॉर्ड सुरक्षित रहे, इसके प्रयास करना चाहिए।
पाक के साथ ताशकंद संधि के बाद मृत्यु हुई
ज्ञात हो कि लाल बहादुर शास्त्री व पाकिस्तान के तत्कालीन पीएम मोहम्मद अय्यूब खान के बीच 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद ताशकंद समझौता हुआ था। सोवियत संघ के तत्कालीन पीएम अलेक्सी किनोटिंग की मौजूद में दोनों नेताओं ने समझौते पर दस्तखत किए थे। उसके बाद शास्त्रीजी को दिल का दौरा पड़ा और वहीं उनकी मृत्यु हो गई थी। विदेश में मौत पर कई सवाल खड़े हुए थे। उस वक्त शीत युद्ध चरम पर था। षड्यंत्र की बातें भी होने लगी थीं।