आपको नहीं होगा विश्वास, पर भारत के इस हिस्से पर आज भी है अंग्रेजों का कब्जा ..
अमरावती। ये बात तो सब जानते है कि भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था, लेकिन देश के एक हिस्से पर आज भी ब्रिटेन का कब्जा है। भारत के आजाद होने के 70साल के बाद आज भी ब्रिटेन की गुलामी की दास्तान इस जगह पर सुनने को मिलती है।
इतना ही नहीं भारत इस जगह से हर साल 1.20 करोड़ की रॉयल्टी ब्रिटेन को जाती है। अगर आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है तो आपको हकीकत से रूबरू कराते है।
दरअसल, भारत में ऐसी रेल लाइन है, जिसका मालिकाना हक भारतीय रेलवे की जगह ब्रिटेन की एक निजी कंपनी के पास है। और इंडियन रेलवे की एक प्राइवेट कंपनी हर साल इस ट्रैक का भुगतान एक करोड़ 20 लाख के करीब भरती है।
ब्रिटेन के इस ट्रैक पर चलती है ये भारतीय ट्रेन...
ब्रिटेन के यह रेल ट्रैक पर नैरो गेज ट्रैक का इस्तेमाल किया गया है। इसी की रॉयल्टी का पैसे ब्रिटेन की एक प्राइवेट कंपनी को जाता है। हालांकि इस ट्रैक से केवल एक ही ट्रेन गुजरती है। महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर के बीच चलने वाली यह ट्रेन 189 किमी का सफर 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तय कर लेती है।
ब्रिटेन के यह रेल ट्रैक शकुंतला एक्सप्रेस नाम पैसेंजर ट्रेन है। जो अमरावती से मुर्तजापुर 189 किमी का सफर 6-7 घंटे में पूरा करती है। यह ट्रेन अचलपुर, यवतमाल जैसे 17 छोटे-बड़े स्टेशनों का पार करती हुए आगे बढ़ती जाती है।
करीब 100 वर्ष पुरानी इस ट्रेन में 5 डिब्बों है 70 साल तक इस ट्रेन को स्टीम का इंजन खींचता रहा। आज के हिसाब से चलाने के लिए इसके इंजन को 15 अप्रैल 1994 को डीजल इंजन में तब्दील कर दिया गया। इस ट्रेन का ढांचा ब्रिटेन देश के मैनचेस्टर सिटी के कारखाने में 1921 में बनाया गया था।
इस ट्रैक पर लगे सिग्नल भी पुराने...
ब्रिटिशकालीन की यह विरासत जितनी पुरानी है उतना ही यहां के लगे सिग्नल भी पुराने है। 7 कोच वाली इस पैसेंजर ट्रेन में रोज 1000 से भी ज्यादा लोग सफर करते है।
1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी...
ब्रिटिश काल का ये रेल रूट अब शकुंतला रेल रूट के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस रूट में सिर्फ एक ही पेसेंजर ट्रेन शकुंतला एक्सप्रेस चलती है।
इस रूट को बनाने का प्रमुख उद्देश्य अमरावती के पास को मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने का था क्योंकि यह इलाका कपास की पैदावार के लिए पूरे देश में जाना जाता है। ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन की ओर से 1903 में ट्रैक को बिछाने का काम शुरू किया गया। जो 1916 में जाकर पूरा हुआ।
1857 में बनाई गई यह कंपनी को अब सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है। 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। पर यह रेलवे ट्रैक पर आज भी ब्रिटिश काल के अधीन है जिसका किराया हर हमारी भारत सरकार अदा करती आ रही है।
खस्ताहाल है ट्रैक...
भारत के आजाद होने के 70साल के बाद आज भी यह ट्रैक ब्रिटेन की गुलामी की दस्तान सुना रहा है। जिस पर इस कंपनी का कब्जा है। जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी भी यही कंपनी पूरी करती है।
भारत की ओर से हर साल करोड़ों देने के बाद भी इसकी हालत बद से बद्तर होते जा रहे है। कई सालों से इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सिर्फ ये नाम का कब्जा किए हुए विदेशी भारत से हर साल पैसा वसूल कर रहें हैं।
दो बार बंद किया गया यह ट्रैक...
इस ट्रैक की जर्जर हालत को देखकर शकुंतला एक्सप्रेस को दो बार बंद भी किया गया पर स्थानीय लोगों की असुविधा को देखते हुए और स्थानीय लोगों के बढ़ते दबाब के कारण इसे फिर से शुरू करना पड़ा। आज ये ट्रेन अमरावती के लोगों की जिंदगी बन चुकी है।
जिसके बगैर वहां के गरीब लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है। भारत सरकार ने लोगों की इस असुविधा के देखते हुए इस ट्रैक को खरीदने का कई बार प्रयास किया, लेकिन आने वाली तकनीकी कारणों से यह मामला अभी भी अटका हुआ है।