दलित शब्द को लेकर देश में छिड़ी है बहस, जानें कहां से शुरू हुआ यह शब्द
नई दिल्ली। मोदी सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने टीवी चैनलों को एडवाइजरी जारी कर दलित शब्द का इस्तेमाल नहीं करने को कहा है। बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय ने यह एडवाइजरी जारी की है। मंत्रालय ने दलित की बजाय अनुसूचित जाति शब्द का इस्तेमाल करने को कहा है।
इसके बाद से ही दलित शब्द के इस्तेमाल के पक्ष और विपक्ष में देशभर में चर्चा चल रही है। सवाल यह है कि क्या दलित की जगह किसी और शब्द के इस्तेमाल करने से स्थिति बदल जाएगी? बहरहाल, हम आज जानने की कोशिश करेंगे कि देश में दलित शब्द का प्रचलन कैसे हुआ। यह शब्द कहां से शुरू हुआ।
‘दलित’ शब्द दरअसल लोकभाषा के शब्द दरिद्र से बना है। इसे दमन या शोषण के साथ भी जोड़ा जाता है। राष्ट्रकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने 1929 में लिखी एक कविता (दलित जन पर करो करुणा। दीनता पर उतर आये प्रभु, तुम्हारी शक्ति वरुणा।) में दलित शब्द का इस्तेमाल किया था। यानी यह तो पता चलता है कि उस समय भी यह शब्द प्रचलन में था। हालांकि, उस समय भी ज्यादातर लोग इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते थे।
लंबे समय से ये शब्द इस्तेमाल में रहा है, लेकिन इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय दलित पैंथर्स को जाता है। उन्होंने 1972 में अमेरिका के ब्लैक पैंथर्स की तर्ज पर दलित पैंथर्स मुंबई नाम का संगठन बनाया, जिसने आगे चलकर आंदोलन का रूप लिया और इस शब्द को लोगों तक पहुंचाया।
वहीं, उत्तर भारत में दलित शब्द को कांशीराम ने प्रचलित किया। उन्होंने DS4 का नारा दिया- जिसका अर्थ था दलित शोषित समाज संघर्ष समिति। इसका गठन कांशीराम ने किया था और महाराष्ट्र के बाद उत्तर भारत में अब पिछड़ों और अति-पिछड़ों को दलित कहा जाने लगा था।
अंबेडकर दलितों के लिए 'डिप्रेस्ड क्लास' शब्द का ही इस्तेमाल करते थे। वहीं, अंग्रेज भी इसी शब्द का इस्तेमाल करते थे। अगर महात्मा गांधी की बात करें, तो उन्होंने दलितों को हरिजन यानी ईश्वर की संतान कहा था। हालांकि, तब भी लोगों ने इस शब्द का विरोध किया था और बीएसपी की स्थापना के शुरुआती दिनों में कांशीराम ने तो यहां तक कहकर इस शब्द को खारिज कर दिया था कि यदि हम ईश्वर की संतानें हैं, तो क्या अन्य हिंदू शैतान की औलादें हैं।
ईस्ट इंडिया कंपनी के आर्मी अफसर जेजे मोल्सवर्थ ने 1831 में एक मराठा-इंग्लिश डिक्शनरी में इस शब्द का इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा दलित उद्धारक महात्मा ज्योतिबा फुले ने इसका इस्तेमाल किया था और फिर ब्रिटिश सरकार ने इसका उल्लेख किया। दलित शब्द संस्कृत के दल शब्द से बना है, जिसका अर्थ है अलग होना, टूटना, कटना। माना जाता है कि महाराष्ट्र में ज्योतिबाफूले ने सत्य शोधक समाज नाम के गैर-ब्राह्मण आंदोलन के जरिये इस शब्द को आगे बढ़ाया। इससे पहले दलितों को अछूत कहा जाता था।