SC-ST दूसरे राज्यों में नहीं ले सकता आरक्षण का फायदा : सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में सुनवाई के दौरान कोर्ट की पांच संदस्यीय संवैधानिक पीठ का कहना था कि आरक्षण में एक समान व्यवस्था का होना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, एससी-एसटी आरक्षण के तहत सेवा या नौकरी में लाभ पाने वाला व्यक्ति किसी दूसरे राज्य में उसका फायदा नहीं ले सकता है। जबतक कि वहां उसकी जाति सूचीबद्ध न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिये अखिल भारत स्तर पर आरक्षण का नियम विचार करने योग्य होगा। अनुसूचित जाति और जनजाति के लिये आरक्षण का लाभ एक राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश की सीमा तक ही सीमित रहेगा।
एक राज्य के अनुसूचित जाति या अनुसूचति जनजाति समूह के सदस्य दूसरे राज्य के सरकारी नौकरी में आरक्षण के लाभ का तब तक दावा नहीं कर सकते जब तक उनकी जाति वहां सूचीबद्ध नहीं हो। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल था कि एक राज्य में जो व्यक्ति अनुसूचित जाति में है तो क्या वह दूसरे राज्य में अनुसूचित जाति में मिलने वाले आरक्षण का लाभ ले सकता है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी आदेश दिया है कि कोई भी राज्य सरकार अपनी मर्जी से अनुसूचित जाति, जनजाति की लिस्ट में कोई बदलाव नहीं कर सकती है। ये अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति का ही है। या फिर राज्य सरकारें संसद की सहमति से ही लिस्ट में कोई बदलाव कर सकती है। हालांकि, जो व्यक्ति राजधानी दिल्ली में सरकारी नौकरी करने वालों को अनुसूचित जाति से संबंधित आरक्षण केंद्रीय सूची के हिसाब से मिलेगा।
आपको बता दें कि एक अन्य मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। जिसमें ये तय होना है कि क्या सरकारी नौकरी में मिलने वाले प्रमोशन में भी एससी/एसटी वालों को आरक्षण मिलना चाहिए या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ में शामिल पांच जजों में से चार जजों ने इस बात पर जोर दिया कि देशभर आरक्षण की व्यवस्था समान हो, और ये व्यवस्था दिल्ली और बाकी के केंद्र शासित प्रदेशों में लागू हो। वहीं पीठ के पांचवें जज ने अलग निर्णय दिया। उनके मुताबिक दिल्ली और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों को एक राज्य के तौर पर माना जाएं और उसी के मुताबिक उन्हें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए अपनी अलग लिस्ट तैयार करने की इजाजत दी जानी चाहिए।
एससी, एसटी पदोन्नति में आरक्षण पर फैसला सुरक्षित
सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण मामले में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने इस सवाल पर विचार किया कि 2006 के फैसले पर पुनर्विचार के लिए सात सदस्यीय संविधान पीठ का गठन जरूरी है या नहीं।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में केंद्र तथा अन्य सभी पक्षकारों को सुनने के बाद गुरुवार को कहा कि वह अपनी व्यवस्था बाद में देगी। इससे पहले 2006 में एम नागराज मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था। इसने कहा था कि राज्य इन समुदायों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने से पहले सरकारी नौकरियों में इनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में तथ्य और एससी, एसटी के पिछड़ेपन से जुड़ा आंकड़ा उपलब्ध कराने के लिए बाध्य है।
केंद्र और विभिन्न राज्य सरकारों ने कई आधारों पर संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया है। इसमें एक आधार यह भी है कि एससी, एसटी के सदस्यों को पिछड़ा माना जाता है। उनकी जातिगत स्थिति को देखते हुए उन्हें पदोन्नति में भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।
केंद्र ने आरोप लगाया कि नागराज फैसले ने अनुसूचित जाति और जनजाति कर्मचारियों को आरक्षण देने के लिए अनावश्यक शर्तें लगा दी थीं। इन पर बड़ी पीठ को पुनर्विचार करना चाहिए।
केंद्र की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने एससी, एसटी कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की जोरदार वकालत की और कहा कि पिछड़ेपन को मानना ही उनके पक्ष में है। उन्होंने कहा कि यह समुदाय लंबे समय से जाति पर आधारित भेदभाव का सामना कर रहा है और अब भी उन पर जाति का तमगा लगा हुआ है।
दूसरी तरफ, इसका विरोध करने वालों का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने बुधवार को कहा था कि उच्च सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिए, क्योंकि सरकारी सेवा में आने के बाद यह पिछड़ापन खत्म हो जाता है। हालांकि, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सेवाओं में इसे जारी रखा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इससे पहले इन समुदायों के उच्च पदों पर आसीन सदस्यों के परिजनों को सरकारी नौकरी में पदोन्नति में आरक्षण देने के औचित्य पर सवाल उठाया था। न्यायालय जानना चाहता था कि आरक्षण के लाभ से अन्य पिछड़े वर्गों में से सम्पन्न तबके को अलग रखने का नियम एससी, एसटी मामले में भी क्यों नहीं लागू किया जा सकता।