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जैविक खेती और मधुमक्खी पालन से बंजर जमीन को बनाया उपजाऊ


 

कृषक गोवर्धन तिवारी ने खरगोन जिले में मधुमक्खी-पालन व्यवसाय को बहुत आसान बना दिया है। कृषि फार्मूले पर जैविक खेती के साथ-साथ शहद की खेती भी कर रहे हैं। आज से करीब 20 वर्ष पूर्व गोवर्धन ने अपनी 24 एकड़ बंजर और बेजान जमीन पर जैविक खेती शुरू की थी। जैविक पद्धत्ति के उपयोग से आज इनकी पूरी बंजर भूमि उपजाऊ हो गई है। वर्ष 2012 में इन्हें उद्यानिकी विभाग से जैविक खेती के लिए 30 हजार रूपए अनुदान मिला, जिससे इन्होंने जैविक खेती को नया स्वरूप दिया है। इनकी सफलता को देखकर आस-पास के किसान भी जैविक खेती अपनाने लगे हैं। 

   दो वर्ष पूर्व ही गोवर्धन ने शहद की खेती करना शुरू की है। इनके पास मेलीफिश मेलीफेरा प्रजाति की मधुमक्खियाँ हैं, जो संसार में सबसे अधिक शहद पैदा करने में सक्षम हैं। शुरूवात में 15 बक्सों से मधुमक्खी पालन शुरू किया। अब 40 बक्सों में मधुमक्खी पालन कर रहे हैं। पिछले वर्ष इन्होंने 30-35 क्विंटल शहद प्राप्त किया, जिसे बाजार में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाया। 

मौसम की फसलों से मधुमक्खी अपना भोजन बना लेती है। फिर भी इनके लिए धनिया, सूरजमुखी, अजवाईन की फसलें आसपास मिल जायें, तो आसानी से शहद बना लेती हैं। मधुमक्खी कपास की फसल में बनने वाली बॉल (घेटा) के लिए अत्यंत गुणकारी होती है। इस वर्ष गोवर्धन ने शिर्डी में शहद का स्टॉल लगाया है जो कॉफी लोकप्रिय हो रहा है। 

कृषक गोवर्धन ने अपने क्षेत्र के साथ-साथ अन्य कई क्षेत्रों के लगभग 3 हजार किसानों को जैविक खेती के अभियान से जोड़ा है। इनके पास हर फसल के लिये अलग-अलग डी-कंपोसर हैं। वर्मीकम्पोस्ट, बीजामृत और पंचपत्तियों के काढ़े की विधियों से कई किसानों की मुरझाती मिर्च, कपास, अरहर और कई तरह की फसलों को जीवन दान मिला है और आश्चर्यजनक बदलाव से लाभ भी हुआ है। कृषक गोवर्धन तिवारी मूँग, तुवर, उड़द, चना और तिल के आटे के घोल में डी-कंपोसर मिलाकर अत्यंत लाभदायक द्रव्य तैयार करते हैं और किसानों को विधि सिखाने के साथ ही तैयार द्रव्य बिलकुल मुफ्त में प्रदान भी करते हैं।


सक्सेस स्टोरी (खरगोन)


दुर्गेश रायकवार

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