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जेल में कैदियों ने लकड़ी पर उकेरा राष्‍ट्रीय गीत 'वन्‍दे मातरम्'



 छत्तीसगढ़ में कौशल विकास प्रशिक्षण के तहत बंदियों को भी विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इससे बंदियों को अपना हुनर विकसित करने में मदद मिल रहा है। जेल से छूटने के बाद इन बंदियों को अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। अपने हुनर का इस्तेमाल कर वे अपना आर्थिक विकास करने में सक्षम होंगे।

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के जिला जेल में बंदियों की ओर से काष्ठ कला के जरिए 36 फीट लंबी और 22 फीट चौड़ी लकड़ी पर राष्ट्रीय गीत ‘वंदेमातरम्’ उकेरा है। यह काम किसी कलाप्रेमी या कलाकार ने नहीं, बल्कि जेल मे बंदियों ने किया है। कांकेर जेल के बंदियों की ओर से तैयार किए गए इस काष्ठ कला के नमूने को अमेरिका से प्रकाशित गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में दर्ज किया गया है।

आइडियल छत्तीसगढ़ ग्लोबल ईडिफइंग फाउंडेशन के निदेशक नवल किशोर राठी ने बताया कि जो जैसा सोचता व करता है, वह वैसा ही बन जाता है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना का लाभ बंदियों को देकर उनकी प्रकृति प्रदत्त प्रतिभा और रुचि के अनुरूप व्यावसायिक कौशल के विकास का अवसर दिला रहा है। यह पहल बंदियों को जेल में जहां एक ओर कौशल प्रशिक्षण में व्यस्त रखती है, वहीं उन्हें जेल से रिहा होने के बाद अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए किसी काम की चिंता से भी मुक्त कर देता है।

उन्होंने बताया कि इस काम में बंदियों को 15 दिन का समय लगा। कांकेर जेल में तैयार काष्ठ वस्तुओं की पहले से ही काफी मांग रही है। यहां के काष्ठशिल्पों को राष्ट्रपति भवन में भी जगह मिल चुकी है। 

राठी ने बताया कि कांकेर शहर के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग-30 में अपराधियों में सुधार की सोच से संचालित जिला जेल कांकेर में लगभग 400 कैदी सजा काट रहे हैं। अपराध के बाद जेल में न्यायिक प्रकरणों और अल्पावधि के कारावास के लिए बंदी कुछ समय इस जेल में बिताते हैं। 

जिले को अपराध शून्य करने की दिशा में प्रशासन की ओर से सुधारात्मक प्रयास शुरू करते हुए जिला कौशल विकास प्राधिकरण अंतर्गत जिला जेल को वीटीपी के रूप में पंजीकृत कर कौशल विकास की आधारशिला रखी गई। पूर्व से ही यह प्रयास सफल रहा है, जिसमें कैदियों को काष्ठशिल्प का प्रशिक्षण देते हुए उन्हें अपराधी से कलाकार में तब्दील करने में कामयाबी मिली है।

नक्सली हिंसा व उससे होने वाले दुष्परिणामों से हम सभी अवगत हैं और आहत भी, मगर इन विषम परिस्थितियों में फंसे लोगों को निकालने में जिला प्रशासन को सफलता मिली, तो उनके पुनर्वास में भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वे महिलाएं, जिनकी सोच में कभी क्रूरता थी, उनमें कौशल का विकास करने के लिए काउंसिलिंग व विशेषज्ञों के मार्गदर्शन से बहुत अधिक लाभ हुआ। 

आत्मसमर्पण कर चुकीं छह महिलाएं और 14 नक्सल प्रभावित महिलाओं को मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना अंतर्गत सिलाई का प्रशिक्षण दिया गया। तीन माह के इस प्रशिक्षण में उनके व्यक्तित्व विकास, सकारात्मक सोच, कौशल विकास व मुख्य धारा से जोडऩे के साथ-साथ स्वरोजगार की सोच स्थापित करने पर विशेष जोर दिया गया। सिलाई प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद सभी 20 महिलाओं को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए नि:शुल्क सिलाई मशीन का वितरण शासन की ओर से आयोजित जनकल्याणकारी मेले में कुशल हितग्राहियों को प्रदान किया गया।
आत्मसमर्पित 15 युवाओं ने काउंसिलिंग के दौरान ड्राइविंग प्रशिक्षण के लिए अभिरुचि व्यक्त की थी। इसके अनुसार चयनित युवाओं को कांकेर में ड्राइवर का मैकेनिक का प्रशिक्षण प्रदाय किया जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद उनके रोजगार की व्यवस्था के लिए जिला प्रशासन प्रयासरत है।

आदिवासी समूह में से एक जाति एैसी भी है, जो पारंपरिक विधा से बांस की टोकनी आदि बनाकर जीवन यापन करती है। जिले के नरहरपुर विकासखंड के तीन पंचायतों- मावलीपारा, मुसुरपुट्टा और चोरिया के 71 युवाओं को चयनित कर उनमें व्यावसायिक कौशल का विकास करने के लिए बांस-शिल्प का प्रशिक्षण दिया गया, जिसमें बांस के फर्नीचर, विभिन्न कलाकृतियां, चटाई के साथ-साथ बांस के आभूषण बनाने की कला भी युवाओं को सिखाई गई। 

ये युवा चंूकि पारंपरिक रूप से इस कार्य में पूर्व से ही पारंगत थे, जिसके फलस्वरूप युवाओं में प्रशिक्षण के लिए उत्साह बना रहा। प्रशिक्षण के बाद युवा अपनी तैयार सामग्रियों के विक्रय खातिर विभिन्न मेला व पर्यटन स्थलों पर जाकर ख्याति प्राप्त कर रहे हैं और उनकी आजीविका के साधनों में वृद्धि हो रही है। 

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