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एशिया को सबसे बड़ा पुल ‘धोला-सादिया’ बनकर तैयार, 26 मई को देशवासियों को मिलेगा तोहफा


26 मई को केंद्र की बीजेपी सरकार के कार्यकाल के तीन साल पूरे हो रहे हैं और इस दिन देश को न केवल उसका बल्कि एशिया का सबसे लंबा धौला-सादिया पुल मिलने वाला है. असम में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बने 9.15 लम्बे इस पुल के चलते अब अरुणाचल और असम की दूरी बेहद कम हो गयी है जो चीन के लिए चेतावनी भी है. चीन को करारा जवाब भारत को लगातार सामरिक तौर पर घेरने की पूरी कोशिश कर रहे चीन को भारत ने बेहद करारा जवाब दिया है. चीन लगातार सीमा से सटे इलाकों में तेज़ी से सड़कें और अन्य निर्माण कर रहा है जिसके बदले भारत ने उसे उसके अंदाज़ में करारा जवाब दिया है. अपने पड़ोसी चीन की मंशा को भांपकर भारत ना सिर्फ चीन से लगते सीमावर्ती इलाके में अपने सैन्य प्रतिष्ठानों को मजबूत कर रहा है बल्कि तेजी से इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण भी कर रहा है. एशिया का सबसे लंबा पुल इसी का सबसे नया और बड़ा उदाहरण है असम में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बना ये धौला-सादिया पुल. यह पुल एशिया का सबसे लंबा पुल है जो साल 2011 में बनना शुरू हुआ था. 9.15 किलोमीटर लंबा यह पुल ना सिर्फ असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच के सफर की दूरी को कम करेगा बल्कि समय की भी बचत होगी. इस पुल को आम लोगों के लिए मोदी सरकार की तीन साल पूरे होने पर 26 मई को खोल दिया जाएगा. खूबियां धोला-सदिया ब्रिज की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके ऊपर से करीब 60 टन का लड़ाकू टैंक बड़ी आसानी से लेकर जाया जा सकता है. यानि, इस पुल के जरिए सैन्य और आम लोगों की गाड़ियों की आसानी से आवाजाही हो सकेगी और अरुणाचल प्रदेश के अनिनी में बने सामरिक ठिकाने तक आसानी से पहुंचा जा सकेगा. अनिनी चीन की सीमा से सिर्फ 100 किलीमोटर ही दूर है. अब 8 घंटे का सफर 4 घंटे में इससे पहले अरुणांचल जाने के दूसरे सड़क रास्ते से 8 घण्टे का वक़्त लगता था और फेरी यानी नाव से साढ़े 4 घण्टे. लेकिन इस पुल के बनने से यह दूरी केवल आधे घंटे में पूरी कर ली जा सकेगी यानी कम से कम 4 घंटे की सीधी बचत. वरिष्ठ पत्रकार कृष्णा उपाध्याय का कहना है कि 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के वक़्त अगर यह पुल देश के पास होता तो उस वक़्त स्थिति कुछ और ही होती. उस वक़्त यह पुल होता तो न केवल सैन्य टुकड़ियां बल्कि हथियार, असलहा-बारूद बड़ी आसानी से सीमा तक पहुंच पाता. अब उस पुल के बन जाने से चीन को किसी भी स्तिथि में जवाब से पाना बेहद आसान हो जाएगा. प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से साढ़े नौ किलोमीटर लंबे इस पुल के मॉनसून से ठीक पहले किए जा रहे उद्घाटन को असम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों के लिए बड़ा उपहार माना जा रहा है. क्योंकि इन दोनों राज्यों के लोगों को नदी पार करने के लिए काफी दूरी तय करनी पड़ती है या फिर नाव के जरिए जाने पर चार घंटे का समय लगता है. भले ही इस पुल के बन जाने से आम जनता बेहद खुश है लेकिन इससे जो लोग सबसे ज्यादा आहत है वो है फैरी सेवा से जुड़े हुए लोग. इन लोगों का कहना है कि उन्हें इस बात की खुशी है कि लोगों को एक बड़ा तोहफा मिला है, लेकिन इस बात का दुख भी है कि पुल की आवाजाही शुरू हो जाने से उनका धंधा बंद हो जाएगा और वो कहीं के नहीं रह जाएंगे. विकास को पंख लगेंगे असम का पूर्वोत्तर इलाका आज भी काफी पिछड़ा हुआ है. इस लिहाज से इसके उत्तरी और दक्षिणी इलाके के इस पुल से जुड़ने के बाद विकास की पहुंच असम के पूर्वोत्तर इलाके तक पहुंचेगी. फिलहाल, तिनसुकिया के आसपास ऐसा कोई भी मजबूत पुल नहीं है जिसके जरिए टैंकों को एक जगह से दूसरी जगहों पर लेकर जाया जा सके और सेना के जवान अरूणाचल प्रदेश पहुंच सके. दो लाइन के इस पुल को कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है कि इस पर 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से गाड़ियां चल सके ताकि तेज आवाजाही हो पाए. एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत करते हुए असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल ने कहा, चीन की सीमा के पास इस पुल के बने होने के चलते युद्ध के दिनों में इसकी मदद से तेज़ी से सैन्य सामानों की आवाजाही हो सकेगी. असम में ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपर बने इस पुल की शुरुआत साल 2011 में हुई थी जिसके लिए तय बजट 876 करोड़ था. इसे साल 2015 में पूरा कर लिया जाना था. इस प्रोजेक्ट के मैनेजर बी सूर्यराजू के मुताबिक बाढ़ और बेमौसम बरसात के कारण इस प्रोजेक्ट पर पूरे साल में केवल 4-5 महीने ही ठीक से काम हो पाता था. बावजूद इसके इसे 2017 में पूरा कर लिया गया है जो करीब 1000 करोड़ में बनकर तैयार हुआ है.

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