‘तीन तलाक’ इस्लाम में धार्मिक मुद्दा है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट जांचेगी वैधता
सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार (11 मई) को तीन तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती याचिकाओं पर सुनवाई की और पूछा कि क्या यह इस्लाम का बुनियादी हिस्सा है. इस मामले के लिए गठित संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर ने कहा, "हम तीन तलाक की वैधता पर फैसला करने जा रहे हैं."
न्यायमूर्ति खेहर ने संबंधित पक्षों से कहा कि वे इस बात पर ध्यान दें कि क्या तीन तलाक इस्लाम का बुनियादी हिस्सा है. उन्होंने संबंधित पक्षों से यह भी बताने को कहा कि उनके हिसाब से क्या तीन तलाक लागू करने योग्य बुनियादी अधिकार है. अदालत की संवैधानिक पीठ ने तलाक के मुद्दे पर फैसला करने के दौरान निर्देश जारी करने को लेकर व्यापक मानदंडों पर सुझाव भी मांगे.
संवैधानिक पीठ में खेहर के अलावा न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर शामिल हैं. अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों को मामले में अपने तर्क रखने के लिए दो-दो दिन दिए जाएंगे. उसके बाद दोनों पक्षों को प्रत्युत्तर देने के लिए एक-एक दिन दिया जाएगा.
मुस्लिम समाज का एक वर्ग तीन तलाक के विरोध में है, जबकि कुछ का मानना है कि इसे बदला नहीं जा सकता क्योंकि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ का हिस्सा है.
मोदी सरकार चाहती है कि देश में तीन तलाक की प्रथा बंद हो. पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देशों में इस प्रथा का पालन नहीं किया जाता.
पति-पत्नी में सुलह की कोशिश नहीं तो तलाक अवैध : खुर्शीद
इस मुद्दे पर जब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद से पक्ष रखने को कहा तो खुर्शीद ने कहा कि तीन तलाक कोई मुद्दा नहीं है. क्योंकि तलाक से पहले पति और पत्नी के बीच सुलह की कोशिश जरूरी है. अगर सुलह की कोशिश नहीं हुई तो तलाक वैध नहीं माना जा सकता. एक बार में तीन तलाक नहीं बल्कि ये प्रक्रिया तीन महीने की होती है. जस्टिस रोहिंग्टन ने खुर्शीद से पूछा, क्या तलाक से पहले सुलह की कोशिश की बात का कहीं जिक्र है तो खुर्शीद ने कहा - नहीं.
सलमान खुर्शीद की बातों का कपिल सिब्बल ने किया समर्थन
पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कपिल सिब्बल ने भी सलमान खुर्शीद की इस बात का समर्थन किया कि ट्रिपल तलाक कोई मुद्दा नहीं है. खुर्शीद निजी तौर पर कोर्ट की मदद कर रहे हैं. कपिल सिब्बल ने कहा, ये पर्सनल लॉ का मामला है. सरकार तो कानून बना सकती है, लेकिन कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए. जस्टिस कूरियन ने कहा, ये मामला मौलिक अधिकारों से भी जुड़ा है. जस्टिस रोहिंग्टन ने जब केंद्र से पूछा कि इस मुद्दे पर आपका क्या स्टैंड है? तो केंद्र की ओर से एएसजी पिंकी आनंद ने कहा, सरकार याचिकाकर्ता के समर्थन में है कि ट्रिपल तलाक असंवैधानिक है. बहुत सारे देश इसे खत्म कर चुके हैं.
बहुविवाह पर सुनवाई नहीं करेगा सुप्रीम कोर्ट : सीजेआई
सुप्रीम कोर्ट फिलहाल मुसलमानों में तीन तलाक और निकाह हलाला पर ही सुनवाई करेगा. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर पीठ सुनवाई नहीं करेगा. इनमें पांच याचिकायें मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं जिनमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया है. सुनवाई कर रही पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर शामिल हैं.
हर धर्म के जज शामिल हैं संविधान पीठ में
संविधान पीठ के सदस्यों में सिख, ईसाई, पारसी, हिन्दू और मुस्लिम सहित विभिन्न धार्मिक समुदाय से हैं. इस मामले की सुनवाई इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है क्योंकि शीर्ष अदालत ने ग्रीष्मावकाश के दौरान इस पर विचार करने का निश्चय किया और उसने यहां तक सुझाव दिया कि वह शनिवार और रविवार को भी बैठ सकती हैं. ताकि इस मामले में उठे संवेदनशील मुद्दों पर शीघ्रता से निर्णय किया जा सके.
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी करेंगे पीठ की मदद
अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी इस मामले में संविधान पीठ की मदद करेंगे और यह भी देखेंगे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में अदालत किस सीमा तक हस्तक्षेप कर सकता हैं. शीर्ष अदालत ने स्वत: ही इस सवाल का संज्ञान लिया था कि क्या महिलाएं तलाक अथवा उनके पतियों द्वारा दूसरी शादी के कारण लैंगिक पक्षपात का शिकार होती हैं. शीर्ष अदालत इस मसले पर विचार करके मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिकता और वैधता पर अपना सुविचारित निर्णय देगी.
तीन तलाक है असंवैधानिक : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इस मामले में सुनवाई और भी महत्वपूर्ण इसलिए हो गई है क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अप्रैल के अंतिम सप्ताह में ही अपने एक फैसले में तीन तलाक की प्रथा को एकतरफा और कानून की दृष्टि से गलत बताया था. हाईकोर्ट ने अकील जमील की याचिका खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया था. अकील की पत्नी ने उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दायर करके आरोप लगया कि वह दहेज की खातिर उसे यातना देता था और जब उसकी मांग पूरी नहीं हुई तो उसने उसे तीन तलाक दे दिया.