मंत्रीजी भस्मारती पर शुल्क का विरोध चुनावी शिगुफा नहीं, आस्था का विषय है
आप आपके समाज के कार्यक्रम में रोड़ा बन रही सड़क को सुधरवाने के लिए धरने पर बैठ गए थे, तो फिर महाकाल के नाम पर चुप्पी क्यों
उज्जैन। भगवान महाकालेश्वर की भस्मारती पर शुल्क लगाए जाने का विरोध महाकाल के भक्तों का चुनावी शिगुफा नहीं आस्था का विषय है। हिंदू होने के नाते हमारी आस्था भगवान महाकाल पर है पर विधायक व प्रदेश के केबिनेट मंत्री पारस जैन की आस्था महाकालेश्वर पर नहीं है तभी वो भस्मारती से भक्तों को दूर करने वाले मंदिर समिति के निर्णय पर चुप रहकर ये बता रहे हैं कि हमारा विरोध चुनावी शिगुफा है।
उक्त प्रतिक्रिया महाकाल भक्त मंडल के अरूण वर्मा ने विधायक व शिवराजसिंह चैहान की केबिनेट के सदस्य पारस जैन के उस बयान पर दी जिसमें उन्होंने कहा कि भगवान महाकाल की भस्मारती को सशुल्क करने का विरोध मात्र चुनावी शिगुफा है। वर्मा ने दुखी मन से मंत्री जैन की पक्षपातपूर्ण कार्यशैली पर कहा कि वे किसी पार्टी के विधायक या मंत्री नहीं है उन्हें सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रशासन के मनमाने, तानाशाही पूर्वक लिए गए निर्णय का विरोध करना चाहिये था। आपने मंत्री को याद दिलाया कि क्या वो पिपलीनाका में पीडब्ल्यूडी की सड़क पर गड्ढो को दुरूस्त करवाले को लेकर दिए धरने को भूल गए हैं, क्योंकि भैरवगढ़ क्षेत्र में उनके समाज के एक धार्मिक स्थल पर हुए भव्य आयोजन की तैयारी में गड्ढे वाली सड़क रोड़ा बन रही थी। वर्मा ने कहा कि श्री महाकाल मंदिर प्रबंध समिति में मंत्री पारस जैन सहित सांसद, विधायक, महापौर आदि भी सदस्य होते हैं और समिति अगर वर्षों से निःशुल्क चली आ रही भस्मारती के दर्शनों पर शुल्क लगाकर भक्तों से वसूली करती है तथा मंत्री, सांसद, विधायक, महापौर आदि गूंगे बन चुप्पी साधे रहते हैं तो यही माना जाएगा कि अधिकारियों के तानाशाही पूर्वक लिये निर्णय में उनकी सहमति है। ऐसे में श्री जैन का यह कहना कि शुल्क मैने नहीं लगाया, असत्य बयान है। अगर जैन की इसमें सहमति नहीं है तो वे अभी तक जनविरोधी निर्णय की खिलाफत करने सामने क्यों नहीं आए। मंत्री जैन एक नहीं कई बार मंत्री पद पर रहते हुए धरना प्रदर्शन कर चुके हैं तो महाकाल के भक्तों के लिए वे चुप क्यों हैं।