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महसंघ के प्रांतीय सम्मेलन में 100 से ज्यादा शाखाओं ने भाग लिया



सामाजिक एकता, तीर्थ रक्षा, समाज सुरक्षा, राजनीतिक आधार जैसे उद्देश्यों
पर प्रतिनिधियों ने रखे विचार
उज्जैन। अ.भा. श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक युवक महासंघ का प्रांतीय
अधिवेशन रविवार को प्रेमछाया परिसर में आोजित हुआ। प्रांत की लगभग 100 से
अधिक शाखाओं ने इसमें भाग लिया। सामाजिक एकता, तीर्थ रक्षा, समाज
सुरक्षा, राजनीतिक आधार जैसे उद्देश्यों पर सभी प्रतिनिधियों ने अपने
विचार रखे।

संजय जैन मोटर्स के संयोजन एवं प्रदेश अध्यक्ष अजेश कोठारी की अध्यक्षता
में आयोजित इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि गुजरात शासन के मंत्री सुनील
सिंघी, उर्जा मंत्री पारस जैन एवं महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूना के
हरेशभाई शाह थे। विशेष अतिथि महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनोद
बरबोटा, सुनील गांग, डाॅ. संतोष जैन, नरेन्द्र बाफना, सौरभ भंडारी एवं
विजय मेहता थे। मीडिया प्रभारी वीरेन्द्र गोलेचा के अनुसार अतिथियों ने
दीप प्रज्जवलन कर सम्मेलन का प्रारंभ किया। संचालन संजय कोठारी एवं रूपेश
नाहर ने किया। राजेन्द्र पटवा एवं संजय तरवेचा द्वारा मंगलाचरण के बाद
अतिथियों का स्वागत रितेश खाबिया, प्रमोद जैन, दीपक डागरिया, प्रकाश
गांधी, अभय जैन भय्या, संजय जैन ज्वेलर्स, अनिल कंकरेचा, अश्विन मेहता,
शीतल चत्तर, राहुल सर्राफ, नवीन गिरिया, ललित कोठारी, राहुल कटारिया,
राजेश पटनी, विजय कोठारी, निलेश सक्सेना, राजेश दुग्गड़, जितेन्द्र
रूनवाल, रजत मेहता आदि ने किया। स्वागत भाषण अजेश कोठारी ने दिया एवं
आभार राजेश रांका ने माना। विकास पगारिया एवं दिनेश सोलंकी ने भजनों से
समा बांधा। वीरेन्द्र गोलेचा के अनुसार सम्मेलन में हजारों सदस्यों के
साथ ही विभिन्न ट्रस्टों के ट्रस्टीगण एवं सोश्यल ग्रुप के प्रतिनिधियों
ने भी भाग लिया। सभी शाखाओं के प्रतिनिधियों ने अपनी अपनी गतिविधियां एवं
प्रस्ताव प्रस्तुत किये। सम्मेलन में अनिल जैन कालूहेड़ा, संजय जेन
खलीवाला, नितेश नाहटा, संजय गिरीया, सोहन आंचलिया आदि उपस्थित थे। मुख्य
वक्ता सुभाष बडोदावाले ने अपने उद्बोधन में जीवन में धर्म की महत्ता
बताते हुए कहा कि सामाजिक पद से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पद
है। सभी का उद्देश्य ज्ञान को सीखकर उसे दूसरों को बढ़ाने का होना चाहिये।
लक्ष्मीपति बनना सरल है लेकिन सरस्वतीपति बनना कठिन है। सुनील सिंघी ने
अपने उद्बोधन में सभी समाजजनों से एकता की अपील करते हुए आपसी मतभेद को
मनभेद तक नहीं पहुंचने देने का संकल्प दिलाया। आपने कहा संकल्प का कोई
विकल्प नहीं होता। हमें अभाव से प्रभाव की ओर जाना चाहिये। जिससे लगाव
अपने आप आ जाएगा। हमें सांसारिक जीवन में रहते हुए प्रभावी व्यावहारिक
आचरण अपनाना चाहिये। जिस प्रकार अमावस के बाद उजाला होता है ठीक उसी
प्रकार यह सम्मेलन हमारे संगठन में एक नया उजाला लेकर आएगा।

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