‘मिल बांचें म.प्र.’ कार्यक्रम के लिये जिले में 5 हजार से ज्यादा पंजीयन हुए
उज्जैन । ‘मिल बांचें म.प्र’ कार्यक्रम 18 फरवरी से प्रारम्भ होगा। इसके लिये वेब साइट पर पंजीयन का कार्य जारी है। कोई भी इच्छुक वेब साइट www.schoolchalehum.mp.gov.in पर पंजीयन करवाकर कार्यक्रम में सहभागी बन सकता है। इस कार्यक्रम के तहत उज्जैन जिले में 5412 पंजीयन हो चुके हैं। इसमें शासकीय सेवकों की संख्या 1256 है।
मिल बांचें मप्र कार्यक्रम में उज्जैन जिले से शासकीय सेवकों के अलावा डॉक्टरों, इंजीनियरों, मीडिया कार्यकर्ता, सेवा निवृत्त व्यक्तियों, व्यवसायियों, स्वैच्छिक संगठनों, विद्यार्थियों, गृहिणियों, जनप्रतिनिधियों ने भी अपना पंजीयन कराया है। अब तक जिले में 50 अधिवक्ताओं, 27 इंजीनियरों, 111 गृहिणियों, 1210 विद्यार्थियों, 637 जनप्रतिनिधियों, 32 डॉक्टरों, 816 निजी क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों, 193 सेवा निवृत्त व्यक्तियों, 13 स्पोर्ट्सपर्सन, 325 व्यवसायियों, 104 स्वैच्छिक संगठन कार्यकर्ताओं ने पंजीयन कराया है। अब तक पंजीकृत व्यक्तियों में 23 प्रतिशत शासकीय सेवक तथा शेष निजी क्षेत्र के व्यक्ति सम्मिलित हैं।
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश अनुसार 18 फरवरी को जनप्रतिनिधिगण, स्कूल चलें हम अभियान के तहत पंजीकृत प्रेरक, कार्यरत/सेवा निवृत्त शासकीय अधिकारी/सेवक, निजी क्षेत्र में कार्यरत पेशेवर व्यक्ति, शालाओं के पूर्व छात्रों को जो उस शासकीय शाला में, जिसमें वह पढ़े हैं या अन्य शासकीय प्राथमिक एवं माध्यमिक शाला में जाकर ‘मिल बांचें’ कार्यक्रम में सम्मिलित होने हेतु अनुरोध किया गया है।
‘मिल बांचें मध्य प्रदेश’ कार्यक्रम की विषयवस्तु
कार्यक्रम अन्तर्गत जनप्रतिनिधि अथवा इच्छुक व्यक्ति द्वारा हिन्दी पाठ्यपुस्तक अथवा शाला पुस्तकालय में उपलब्ध रूचिकर पुस्तकों में से किसी पुस्तक के एक अंश/पाठ का वाचन किया जायेगा। वाचन के उपरान्त कक्षा में उपस्थित बच्चों से रूचिकर प्रश्न, सामूहिक परिचर्चा, संवाद एवं पढ़ने की कला से परिचित कराया जायेगा।
जीवन में सफलता पाने हेतु शिक्षा आवश्यक है एवं इसकी नीव स्कूली शिक्षा मानी जाती है। भाषा ज्ञान बच्चों में न केवल आधारभूत बौद्धिक कौशल का विकास करता है, बल्कि यह अन्य विषयों की समझ एवं रूचि विकास में सहायक है। इसलिये यह आवश्यक है कि प्रारम्भिक तौर पर दी जा रही शिक्षा में भाषा ज्ञान सहजता से प्राप्त हो, ताकि बच्चे आसानी से अपनी बात एवं भावों को अभिव्यक्त कर सकें। साथ ही बच्चों में पाठ्यक्रमों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों के पढ़ने एवं समझने की रूचि विकसित हो सके।