लोक सेवाओं के प्रदाय की गारंटी, देश में अपनी तरह का पहला कानून
उज्जैन । मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के द्वारा प्रदेश में लागू किये गये सुशासन के प्रयासों में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में लोक सेवाओं के प्रदान की गारंटी अधिनियम, 2010 का क्रियान्वयन किया जा रहा है। नागरिकों को इससे बहुत सुविधा हो रही है। अब चिंहित सेवाओं को प्राप्त करने के लिए आम जन को किसी की इच्छा पर निर्भर नहीं रहना होता है, बल्कि अधिनियम में उनको सेवाओं के प्रदान करने की गारंटी दी गई है। सेवाएं प्राप्त करना अब नागरिकों का अधिकार हो गया है।
वस्तुत: इस कानून से मुख्यमंत्री ने आम जन के याचना भाव को शक्ति में बदल दिया है। इसका उददेश्य यह भी है कि प्रशासन से जनता के जो दैनंदिक कार्य होते है। उन्हें पूरा करने के लिए लोक सेवक सतर्क रहें और सेवा प्रदान करने के लिए अपने उत्तरदायित्व का प्रभावी ढंग से निर्वहन करें। इसके लिए प्रत्येक चिन्हित सेवा को प्रदाय करने के लिए समय सीमा निर्धारित की गई है।
देश में सुशासन के लिए अपने स्वरूप की प्रथम ऐतिहासिक और अभिनव पहल करने वाला म.प्र. पहला राज्य है। पूर्व में लोक सेवा गांरटी अधिनियम 2010 के अंतर्गत 9 विभागों की 26 सेवाओं को शामिल किया गया था, परंतु अब 23 विभागों की 164 सेवाओं को अधिनियम के दायरे में लिया गया है। वर्तमान में अधिसूचित 164 सेवाओं में 110 सेवाओं के ऑनलाईन आवेदन दिये जा रहे हैं।
प्रदेश के नागरिकों को सरलता पूर्वक अधिसूचित सेवाएं प्राप्त हो सकें, इसे ध्यान में रखते हुए शासन द्वारा म.प्र. में 400 से अधिक लोक सेवा केंन्द्र संचालित किये जा रहे हैं।
अभियान के तहत अब तक करोड़ों डिजीटल हस्ताक्षरित रंगीन प्रमाण पत्र प्रदान किये जा चुके हैं। यह समस्त जारी किये गये डिजिटल हस्ताक्षरित सर्टिफिकेट एक कॉमन रिपोजेट्री वेबसाईट www.mpedistrict.mp.gov.in पर उपलब्ध हैं। सेवाओं को ऑनलाईन प्रदान करने के तहत कई सेवाओं के ऑनलाईन डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट प्रदान किये जा रहे हैं। अधिसूचित सेवाओं को ऑनलाईन प्रदान करने हेतु अब तक म.प्र. में हजारों से भी अधिक अधिकारियों के डिजिटल सिग्नेचर बनवाये गये हैं।
इस अधिनियम के सफल क्रियान्वयन के लिए लोक सेवा प्रबंधक विभाग को पूर्व में कई अवार्ड प्राप्त हो चुके हैं।
अधिनियम की विशेषताएं
यह कानून देश मे अपनी तरह का पहला कानून है जिसे प्रदेश में क्रियान्वित किया जा रहा है। लोक सेवाओं को प्रदान करने के लिए निश्चित समय सीमा निर्धारित की गई है। समय सीमा में कार्य न करने या अनावश्यक देरी करने वाले अधिकारी-कर्मचारी को दंड का प्रावधान किया गया है। जहां द्वितीय अपील प्राधिकारी की यह राय हो कि पदाभिहित अधिकारी बिना पर्याप्त तथा युक्ति-युक्त कारण से सेवा प्रदान करने में असफल रहा है तो पदाभिहित अधिकारी पर ऐसी एक मुश्त शास्ति अधिरोपित कर सकेगा जो पॉच सौ रूपये से कम तथा पॉच हजार रूपये से अधिक नहीं होगी।
जहां द्वितीय अपील प्राधिकारी की यह राय हो कि पदाभिहित अधिकारी ने बिना पर्याप्त तथा युक्ति युक्त कारण से सेवा प्रदान करने में विलंब किया है तो वह पदाविहित अधिकारी पर ऐसे विलंब के लिए 250 रूपये प्रतिदिन के मान से शास्ति अधिरोपित कर सकेगा, जो अधिकतम 5000 हजार रूपये हो सकेगी। उल्लेखनीय है कि दंड के रूप में मिलने वाली राशि पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति के रूप में इस अधिनियम के तहत दी जाती है।