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शून्य बजट खेती के तरीकों पर तीन-दिवसीय प्रशिक्षण 11 फरवरी से



 
शून्य बजट प्राकृतिक कृषि का तीन-दिवसीय प्रशिक्षण शिविर 11 फरवरी को प्रारंभ होगा। शिविर में प्रदेश के सभी 313 विकासखण्ड के 1500 किसान और अधिकारी भाग लेंगे। शिविर में प्राकृतिक खेती के विशेषज्ञ और पद्मश्री से सम्मानित कृषि ऋषि श्री सुभाष पालेकर इस विशेष खेती के बारे में किसानों को बतायेंगे। प्रशिक्षण शिविर का समापन 13 फरवरी को होगा।

पर्यावरण प्रदूषण और कीटनाशक दवाओं से कृषि उत्पादन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के लिये मोतीलाल नेहरू स्टेडियम में किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में विस्तार से बताया जायेगा। तीन-दिवसीय इस शिविर में अलग-अलग सत्र में शून्य बजट खेती के बारे में जानकारी दी जायेगी।

यह है शून्य बजट खेती
शून्य बजट खेती की अवधारणा गाय पर आधारित है। एक देशी गाय से 30 एकड़ में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। मुख्य फसल का लागत मूल्य साथ में उत्पादित सह-फसलों के विक्रय से निकाल लेना और मुख्य फसल को बोनस के रूप में लेना है। कोई भी संसाधन (बीज, खाद, कीटनाशक आदि) बाजार से न लेकर इसको अपने घर या खेत में तैयार कर बाजारी लागत शून्य करना है। किसान बाजार से कुछ खरीदेगा नहीं, तो कर्ज भी नहीं लेगा। शून्य आधारित खेती में देशी गाय, देशी केंचुए, बीजामृत, जीवामृत, घनजीवामृत (जीवाणुयुक्त सूखा खाद) आदि पद्धति से शून्य बजट की खेती की अवधारणा प्रतिपादित की गयी है। श्री सुभाष पालेकर इस दिशा में निरंतर काम कर रहे हैं।

शून्य बजट खेती को पूरे भारत में 50 लाख किसान ने अपनाया है। अन्य देशों के किसान भी इस पद्धति से खेती कर रहे हैं। शून्य बजट खेती से पोषक कृषि उपज, चिंतामुक्त, विषमुक्त, रोग कीटमुक्त, ओला-वृष्टि से होने वाले नुकसान पर अंकुश के साथ ही कैंसर, डायबिटीज और हार्ट-अटैक जैसी बीमारियों से भी बचा जा सकता है।
मनोज पाठक

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