कक्षा पहली से आंठवीं तक फिर से हों परीक्षाएँ
संदीप कुलश्रेष्ठ
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत कक्षा 6 से 8 तक फिर से परीक्षाएँ कराने के लिए तैयारी कर रहा हैं। अब कक्षा पहली से पांचवी तक में परीक्षाएं नहीं होगी। अर्थात कक्षा पहली से पांचवी तक के छात्रों को फेल नहीं किया जा सकेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का यह मानना हैं कि आंठवी तक के छात्रों को फेल नहीं करने की नीति लागू करने के बाद विद्यार्थियों में फेल होने का डर समाप्त हो गया था। इससे गलत परिणाम देखने को मिल रहे थे। इसके साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही थी।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब दोहरी नीति अपनाने जा रहा हैं। शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया था की परीक्षाओं का डर बच्चों के दिलों दिमाग से हटाने के लिए कक्षा पहली से आंठवी तक की परीक्षाएं नही होगी। अर्थात कक्षा पहली से आंठवी तक कोई फेल नही होगा। इसका परिणाम यह हुआ कि माध्यमिक विद्यालय के बच्चों में प्राथमिक विद्यालय के स्तर का भी ज्ञान नहीं देखा और पाया गया। शिक्षाविदों ने इस संबंध में काफी विचार विमर्श किया। फेल नहीं करने की नीति की काफी आलोचनाएं भी हुई । तब जाकर यह माना गया कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए परीक्षाएँ होनी चाहिए। इसलिए अब कक्षा 6 से 8 वीं तक की कक्षाओं में फेल नहीं करने की परिपाटी समाप्त होने जा रही हैं। अर्थात अब कक्षा 6 से आंठवी तक की कक्षाओं में परीक्षाएँ होगी। और परिणाम के अनुरूप बच्चों को आगे की कक्षा में बढ़ाया जाएगा।
यहाँ सवाल यह उठता हैं कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए माध्यमिक कक्षाओं में फिर से परीक्षाएँँकराने का निर्णय लिया जा रहा हैं , वहीं शिक्षा की बुनियाद प्राथमिक कक्षाओं में परीक्षाएँ नहीं कराकर किसी को फेल नहीं करने की नीति लागू रखकर वह क्या कहना चाहता हैं ? यह सब भली भांति जानते हैं कि बच्चों की बुनियाद प्राथमिक स्कूलों में ही पडती हैं। यदि नींव ही कमजोर हुई तो उस पर भवन बनाना और बहुमंजिला भवन बनाना संभव ही नहीं होगा। इसलिए जरूरत इस बात कि हैं कि बुनियाद पर ध्यान दिया जाए। नींव को मजबूत किया जाए।
यह भी सभी जानते हैं कि सरकारी स्कूलों मे गरीब परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। वहाँ यह नीति लागू की जाएगी कि कक्षा पहली से पांचवी तक किसी को भी फेल नहीं किया जाएगा । सबको पास किया जाएगा। कोई भी परीक्षाएँ नहीं होगी और सबको बिना परीक्षा के हर साल आगे बढाते हुए कक्षा 6 तक पहुंचा दिया जाएगा। वहीं, हम निजी स्कूलों की बात करें तो यह सबको अच्छी तरह ज्ञात हैं कि वहां निजी स्कूलों में बच्चे कक्षा पहली से भर्ती नहीं होते हैं । बल्कि तीन साल की उम्र से ही बच्चे को नर्सरी, केजी 1, और केजी 2 में पढ़ाने के बाद ही कक्षा पहली में प्रवेश दिया जाता हैं। अर्थात निजी स्कूलों में कक्षा पहली में प्रवेश से पूर्व ही करीब तीन साल तक बच्चों को मूलभूत ज्ञान दिया जाकर इस लायक बना दिया जाता हैं कि वह कक्षा पहली में प्रवेश प्राप्त करें। ऐसी स्थिति मे निजी स्कूलों के बच्चों का शैक्षणिक स्तर निसंदेह सरकारी स्कूल के बच्चों की तुलना मे उच्च ही रहेगा। शुरूआत में ही कक्षा पहली में प्रवेश के समय ही बच्चों की शिक्षा में जमीन आसमान का अंतर होने के कारण शिक्षा में समानता कहां रही ?
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को इस दिशा में गंभीरता पूर्वक सोचने की जरूरत हैं कि अब फिर से कक्षा पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में परीक्षा होनी चाहिए। प्राथमिक विद्यालय में किसी भी बच्चे को फेल नहीं करने की नीति को बंद कर दिया जाना चाहिए। शिक्षा के अधिकार अधिनियम में आधी अधूरी शुरूआत की जरूरत नहीं बल्कि जो भूल 2009 में अधिनियम बनाते समय की थी वह भूल सुधार का समय अब आ गया हैं। शिक्षा की गुणवत्ता के आधार पर अब जब कक्षा 6 से 8 तक की परीक्षाएँ फिर से लागू करने की मषक्कत की जा रही हैं। इसमें कक्षा पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में भी परीक्षाएं नहीं होने व फेल नहीं करने के नियम को बदले जाने की आवष्यकता हैं। यही समय की पुकार हैं । समय की मांग भी यही हैं।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर से अपेक्षा हैं कि वे इस दिशा में भी गंभीरता से सोंचे चाहे तो फिर से एक बार शिक्षाविदों की राय लें ले । शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाते समय सन 2009 मे जो भूल हुई थी अब उसे आधी अधूरी नहीं बल्कि उसमें पूरी तरह से सुधार करने की आवश्यकता हैं। अन्यथा नींव कमजोर रहेगी। और इतिहास फिर किसी को माफ नहीं करेगा।