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शिक्षा का अधिकार अधिनियम का अधिकारियों ने उड़ाया मजाक



डॉ. चंदर सोनाने
 
                 गरीबी के रेखा से नीचे रहने वाले परिवार के बच्चों को भी निजी स्कूलों में पढ़ने का मौका मिले, इसके लिए राज्य सरकार ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम बनाया हैं। इसमें गरीब परिवार के बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ने पर फीस सरकार भरती हैं। अधिनियम के अंतर्गत उज्जैन जिले के 845 प्राइवेट स्कूलों में 24,304 बच्चों को निशुल्क प्रवेश का अवसर मिलने वाला था । किंतु राज्य शिक्षा केंद्र और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की घोर लापरवाही के कारण प्रथम चरण में केवल 1,474 बच्चों को ही निजी स्कूलों में प्रवेष मिल पाया हैं। अभी भी 20,792 सीटें खाली पड़ी हैं। दूसरे चरण के अंतर्गत भी सीटों को भरने के लिए बार बार तारीखें बढ़ाने का ढ़ोंग रचा जा रहा हैं। कई बार ऑनलाइन एडमिशन के लिए दूसरे चरण की तारीख बढ़ने के बाद अब 10 अक्टूबर को लॉटरी से सीटें आबंटित करने की बात राज्य शिक्षा केंद्र और जिला पयिजना समन्वयक द्वारा कही जा रही हैं। इस तरह शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा शिक्षा का अधिकार अधिनियम की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। इस और कोई देखने वाला नहीं हैं। राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारियों द्वारा इस व्यवस्था के अंतर्गत गरीब बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भर्ती की व्यवस्था को मजाक बना के रख दिया हैं।
               यह सर्वज्ञात सत्य है कि सभी प्राइवेट स्कूलों में भर्ती प्रक्रिया हर साल मई माह में आरंभ कर दी जाती हैं। प्राइवेट स्कूलों में 15 जून से स्कूल आरंभ भी कर दिए जाते है। ष्सरकारी स्कूलों में 1 जुलाई से स्कूल शुरू हो जाते हैं। इसके बावजूद राज्य शिक्षा केंद्र और शिक्षा विभाग के अधिकारियों द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत ऑनलाइन प्रवेश के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह दोषपूर्ण हैं। जिले के प्राइवेट स्कूलों में आरक्षित सीटों के मुकाबले अब तक प्रवेश प्राप्त बच्चों को प्रतिशत मात्र 6 हैं। अर्थात 94 प्रतिशत सीटें अभी भी खाली हैं। आश्चर्य की बात यह हैं कि प्राइवेट स्कूलों में नए सत्र की प्रथम त्रैमासिक परीक्षा तक पूरी हो गई है। नए सत्र को शुरू हुए करीब चार माह से अधिक का समय हो चुका हैं। ऐसी स्थिति में यदि किसी बच्चे का अक्टूबर माह में निजी स्कूलों में प्रवेश होता भी है तो वह बच्चा उस स्कूल के बच्चे से पढ़ाई में निश्चित रूप से पीछे होगा। इस पर किसी का ध्यान नही हैं
                 शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत प्रथम चरण के अंतर्गत ही चार-चार बार  तारीख बढ़ाने के बाद ऑनलाइन लाटरी के माध्यम से सीटों का आबंटन हुआ था। अब दूसरे चरण की भर्ती में भी चार-चार बार प्रवेश की तारीखों में बदलाव किया गया हैं। यह सब अधिकारियों की घोर लापरवाही का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
                  मप्र के खंडवा जिले में शिक्षा के अधिकार अधिनियम (आरटीई) के अंतर्गत वर्ष 2011 से 2015 तक 11,239 बच्चों का एडमिशन हुआ था। वहां पर भी प्रवेश में लेतलाली होने के कारण 1,490 बच्चें निजी स्कूलों को छोड चुके हैं। और वापस उन्होंने सरकारी स्कूल में एडमिषन ले लिया है। यह आंकड़े चौंकाने वाले हैं।इस पर गहन अध्ययन की आवश्यकता हैं।
                 केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम में अंतर्गत गरीब बच्चों को अच्छे निजी स्कूल में भर्ती कराने के अच्छे उद्देश्य को अधिकारियों की लापरवाही के कारण पलीता लग रहा हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के मंत्री श्री विजय शाह , अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री एस.आर. मोहन्ती , उजैन संभाग के संभागायुक्त डॉ. रवीन्द्र पस्तोर व कलेक्टर श्री संकेत भोंडवे से अपेक्षा हैं की वे इस और ध्यान देंगे और गरीब बच्चों को उनका अधिकार दिलाएंगे।
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