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उपाध्याय निर्भयसागर महाराज ने कहा जैसी संगति होगी वैसा ही जीवन बनेगा



उज्जैन| पाषाण की प्रतिमा संतों के मंत्र अनुष्ठान से पूज्य भगवान बन जाती है उसकी प्रकार संस्काराें से एक साधारण मनुष्य भी संत बनकर पूज्य हो जाता है। जैसी संगति करेंगे वैसा जीवन बनेगा। इसलिए श्रेष्ठ मनुष्यों की संगति करो। यह बात उपाध्याय निर्भयसागर महाराज ने सोमवार को पुरानी सब्जी मंडी फ्रीगंज स्थित श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन तेरह पंथी पंचायती मंदिर के पास पंडाल में आयोजित रणयसार ग्रंथ प्रवचनमाला में कही। उन्होंने कहा जैन दर्शन गुणों की पूजा करता है। जो वीतरागी सर्वज्ञ हितोपदेशी हो उसे परमात्मा स्वीकार कर पूजता है। आज भौतिकवादी युग में अन्य कामों के लिए तो सबसे पास समय है पर धर्म, संस्कृति, संस्कारों के लिए समय नहीं है। जब तक हम आत्मकल्याण के लिए समय नहीं निकालेंगे तब तक जीवन में श्रेष्ठ संस्कार नहीं आएंगे। बच्चे सिखाने से कम दिखाने से ज्यादा सीखते हैं, जो संस्कार माता-पिता बच्चों में देखना चाहते हैं पहले वह स्वयं करें। हम जैसा व्यवहार स्वयं के लिए चाहते हैं वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करने का प्रयास करें तभी हम, बच्चे व परिवार सुधरेगा।श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन धार्मिक ट्रस्ट अध्यक्ष नरेंद्रकुमार बड़जात्या ने बताया प्रवचन के दौरान श्रीफल समर्पण, भक्तिगीत, पाद प्रक्षालन, आरती, शास्त्र भेंट, अतिथि सम्मान आदि आयोजन भी हुए।

 

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