स्व.वैद्य स्मृति स्वर्ण जयंती व्याख्यानमाला गांधीजी ने कहा था, आजादी के बहुत खतरे ....सेनानी प्रेमनारायण पत्रकारिता में अब झूठ सच की पहचान मुश्किल ...कीर्ति राणा समाचार पत्रों की खबरों में ही विश्वसनीयता.....सुनील जैन स्व.वैद्य की स्मृति में राष्ट्रीय पुरस्कार मिले...पूर्व सांसद
उज्जैन- पूर्व सांसद, प्रखर पत्रकार एवं स्वाधीनता सेनानी स्व.कन्हैयालाल वैद्य की 50वीं पुण्यतिथि (स्वर्ण जयंती) के अवसर पर सोमवार शाम को राजेन्द्र जैन सभागृह में व्याख्यानमाला का आयोजन हुआ। स्वाधीनता आंदोलन और पत्रकारिता विषय पर अतिथियों ने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद सत्यनारायण पंवार ने की। मुख्य अतिथि स्वाधीनता सेनानी एवं वरिष्ठ पत्रकार प्रेमनारायण नागर (शिवपुरी) थे। बतौर विशेष अतिथि वरिष्ठ पत्रकार द्वय कीर्ति राणा इंदौर एवं सुनील जैन उज्जैन ने शिरकत की। गत 50 वर्षों से निरंतर जारी यह व्याख्यानमाला स्वर्ण जयंती समारोह के रूप में हुई। स्व.वैद्य के अनन्य साथी एवं महात्मा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद की पीढ़ी के साथ आजादी के आंदोलन में भाग लेने वाले मुख्य अतिथि 99 वर्षीय श्री नागर नेे कहा - आज देश में जो हालात बन रहे उसकी कल्पना महात्मा गांधी ने उसी समय कर ली थी। गांधीजी के साथ बिताए पलों के संस्मरणों की याद को ताजा करते हुए उन्होंने कहा - आजादी मिलते ही गांधीजी ने कहा था आजादी तो आ रही, लेकिन इससे खतरा भी आएगा।
वे बोले - जब देश की समस्त 562 रियासत मिल रही थी, उस समय इंदौर और भोपाल ने मिलने से मना कर दिया था। फिर सरदार पटेल ने उस समय दोनों रियासत के लोगों को समझाया और इनको राजी किया। स्व.वैद्यजी का आजादी के आंदोलन में योगदान को याद करते हुए उन्होंने कहा देश के गिने-चुने सेनानियों ने आजादी के बाद सरकार से मिलने वाली सम्मान निधि को त्याग की भावना से ठुकरा दिया था जिसमें वे (वैद्यजी) भी शामिल थे। अपने जमाने की पत्रकारिता को याद करते हुए श्री नागर ने कहा अब पत्रकारिता समाप्त हो गई। आज पत्रकारिता और राजनीति एक हो गई है। जबकि पूर्व में पत्रकारिता और राजनीति अलग-अलग होती थी। इन दिनों संपादक की गरिमा गिरी है। प्रत्येक नागरिक अब पत्रकार वरिष्ठ पत्रकार श्री राणा ने अपनी चिरपरिचित शैली में कहा सोशल मीडिया के इस दौर में हर नागरिक पत्रकार बन गया है। पत्रकारिता में सच और झूठ की पहचान करना मुश्किल हो गया। पत्रकारिता का यह मिशन अब कमीशन में बदल गया। पत्रकारिता इन दिनों संक्रमणकाल से गुजर रही और विश्वसनीयता पर संकट आ गया है। सोशल मीडिया ने पत्रकारिता को आसान कर दिया है। अब लिखने में सावधानी रखना पड़ती है। पूर्व में पत्रकार खबर के लिए जेल भी जाना पसंद करते थे।
वे बोले - इन दिनों बाबा लोग सरकार को बनाने एवं बिगाड़ने में योगदान करने लगे है। स्व.वैद्य की स्मृति में लगातार 50 वर्ष से जारी व्याख्यानमाला पर एक स्मारिका का प्रकाशन का आपने सुझाव दिया।