लोक कला माच के लिए सम्मान; बोले- 8 साल का था, तब से नाटक लिख रहा,उज्जैन के ओमप्रकाश शर्मा को पद्मश्री
ओमप्रकाश शर्मा उज्जैन के अथर्व विहार के रहने वाले हैं। 86 साल ओमप्रकाश शर्मा की जिंदगी लोक कला माच के लिए समर्पित रही। उन्होंने उस्ताद कालूराम जी से माच कला सीखी। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 5 साल की उम्र में ही उन्होंने माच का अध्ययन और पिता पं. शालीग्राम से शास्त्रीय गायन की शिक्षा लेना शुरू कर दी थी।
शास्त्रीय गायन में महारथ हासिल करने के लिए रघुनाथ राव वाघ, शोभा गुर्टू, भाईलाल बरोद और उनके बड़े भाई मदन लाल शर्मा से प्रशिक्षण हासिल किया। वायलिन बजाना भी सीखा। कई बड़े नाटक, टीवी सीरियल और फिल्म्स में अपना योगदान दिया।
शर्मा ने रवींद्र जैन, अनूप जलोटा, अनुराधा पौडवाल, उद्भव ओझा, सतीश देहरा जैसे गायक, गीतकार और संगीतकार के लिए संगीत निर्देशन किया। रंगमंच हस्ती बीवी कारंत के निर्देशन में बनी फिल्म 'औरत भली रामकली' में अदाकार और सह-संगीत निर्देशक की भूमिका में रहे।
मप्र के हिस्से में 4 पद्मश्री आए हैं। MP के कालूराम बामनिया, ओमप्रकाश शर्मा को लोक कला माच, भगवती राजपुरोहित को साहित्य व शिक्षा, जबकि सतेंद्र सिंह लोहिया को खेल के क्षेत्र में यह पुरस्कार दिया जाएगा। माच मालवा का प्रमुख लोक नाट्य रूप है।
उन्होंने बताया, 'जब मैं 8 साल का था, तभी से माच को लेकर रुचि जागृत हुई और माच पर लिखना और सीखना शुरू कर दिया। गुरु दादा उस्ताद कालूराम जी, पिता शालिग्राम जी रहे। मैंने कई नाटकों में संगीत दिया, माच गायन किया। हिंदी के अलावा पारसी थिएटर में भी माच किया है। बाबा कारंत जैसे निर्देशक के साथ लंबे समय तक काम किया है।'