इसी तरह चौंकाने के लिए जाने जाते हैं दिग्विजय....
राज-काज
*दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
कांग्रेस के लिए कठिन माने जाने वाले विधानसभा क्षेत्रों के दौरे और अपने बयानों के कारण दिग्विजय इस समय चर्चा में हैं ही, उनके एक और कदम ने सभी को चौंका दिया है। सीहोर जिले के दौरे के दौरान अचानक वे पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा के घर पहुंच गए। पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा भोजपुर सीट से भाजपा के विधायक हैं। दिग्विजय उनके घर पहुंचे तो पहले स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा के चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके पैरों में सिर रखकर प्रणाम किया। इसके बाद स्वर्गीय पटवा की वयोवृद्ध पत्नी के पास पहुंचे और उनके पैरों में भी दंडवत होकर प्रणाम किया। दिग्विजय सुरेंद्र पटवा सहित पूरे परिवार से ऐसे मिले, जैसे वह उनका अपना परिवार हो। संभव है यह दिग्विजय की सौजन्य मुलाकात हो, लेकिन हर कोई जानता है कि विधायक सुरेंद्र पटवा नेतृत्व से नाराज हैं। वजह, भाजपा के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग, पूर्व मुख्यमंंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा के पुत्र ओम प्रकाश सकलेचा प्रदेश सरकार में मंत्री हैं लेकिन सुरेंद्र पटवा को जगह नहीं मिली। जबकि पटवा ने कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश पचौरी को दूसरी बार बड़े अंतर से हराया है। ऐसे में दिग्विजय की यात्रा से राजनीतिक मायने निकाले जाना स्वाभाविक है।
नेताओं को प्रभार देने में ‘अपने-पराए’ का खेल....
विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और कांग्रेस सत्ता में आने की लड़ाई लड़ रही है। बावजूद इसके पार्टी के अंदर गुटबाजी और अपने-पराए का खेल थम नहीं रहा है। कांग्रेस के 16 बड़े नेताओं को बांटे गए प्रभार पर नजर डालिए, तो भी इसके दर्शन हो जाएंगे। पहला यह कि कमलनाथ के नजदीकी नेताओं को पास के जिलों का प्रभार मिला है, इसके विपरीत अन्य को बहुत दूर का। जैसे, कमलनाथ की टीम के सदस्य सज्जन सिंह वर्मा, तरुण भनोट और बाला बच्चन को उनके गृह क्षेत्र के नजदीक के जिलों के प्रभार मिले हैं जबकि जिन नेताओं के साथ तालमेल ठीक नहीं है, ऐसे नेताओं अजय सिंह, अरुण यादव तथा डॉ गोविंद सिंह को दूसरे छोर के जिलों का दायित्व मिला है। प्रभार आवंटन में इस कारण भी नाराजगी है कि एक दूसरे के विरोधी नेताओं को उनके गृह जिले सौंप दिए गए हैं। जैसे, अजय सिंह-सुरेश पचौरी और कांतिलाल भूरिया-अरुण यादव के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहता है। विवाद को हवा देने के लिए सुरेश पचौरी को अजय सिंह के प्रभार वाले विंध्य के सीधी, रीवा, सिंगरौली का प्रभार सौंप दिया गया और कांतिलाल भूरिया को अरुण यादव के गृह जिले खरगोन, बड़वानी का। कमलनाथ ने अपने समर्थकों तरुण, सज्जन एवं बाला बच्चन को उनकी पंसद के जिले दिए हैं। इस बंटवारे से नेताओं में असंतोष है।
तो क्या मप्र में सिर्फ शिवराज राष्ट्रीय स्तर के नेता....!
कहने के लिए मप्र भाजपा और कांग्रेस में राष्ट्रीय नेताओं की भरमार है लेकिन कर्नाटक चुनाव के लिए जारी स्टार प्रचारकों की सूची कुछ अलग ही खुलासा करती है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दलों ने अपने 40-40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। आप ताज्जुब करेंगे इनमें एक मात्र नाम मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का है। इसका मतलब यह हुआ कि मप्र में सिर्फ शिवराज ही राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं, अन्य कोई नहीं। भाजपा की केंद्र सरकार में नरेंद्र सिंह तोमर, ज्योतिरादित्य सिंधिया, फग्गन सिंह कुलस्ते सहित मप्र के कई सांसद मंत्री हैं। कांग्रेस में भी कमलनाथ, दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज हैं। ये दोनों कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति में लंबे समय तक सक्रिय रहे हैं। हाल के लगभग 6 साल छोड़ दें तो कमलनाथ ने सिर्फ केंद्र की राजनीति ही की है। बावजूद इसके शिवराज के अलावा भाजपा- कांग्रेस के इन नेताओं में से एक को भी कर्नाटक चुनाव के लिए स्टार प्रचारक नहीं बनाया गया। साफ है कि दोनों दलों के नेता मुख्यमंत्री चौहान के साथ कितनी भी प्रतिस्पर्द्धा करें लेकिन इन दलों का नेतृत्व सिर्फ शिवराज को ही वोट कबाड़ू मानता है। इसीलिए दक्षिण के इस राज्य में भी वे अकेले स्टार प्रचारक हैं। इससे स्पष्ट है कि शिवराज ने 18 साल तक मुख्यमंत्री रहकर खुद को साबित किया है।
हद पार करता राजा-महाराजा के बीच का विवाद....
दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच छत्तीस का आंकड़ा नया नहीं हैं। अलबत्ता, विवाद अब पटरी से उतरता दिख रहा है। दोनों के बीच शुरू हुआ वाद-विवाद इस मायने में रोचक है कि लोग इसे चटखारे लेकर पढ़-सुन रहे हैं, लेकिन यह सारी हदें भी पार कर रहा है। शुरूआत दिग्विजय की ओर से हुई, जब उन्होंने सागर में सिंधिया पर तंज कसते हुए कहा कि ‘हमारे अजा-जजा वर्ग के विधायकों के पास भी आफर आए। उन्होंने 25 से 50 करोड़ तक के आफर ठुकरा दिए लेकिन बड़े-बड़े राजा-महाराजा बिक गए। अगली बार ध्यान रखेंगे कि हमारे प्रत्याशी टिकाऊ हों, बिकाऊ नहीं।’ इसके बाद उज्जैन पहुंचे दिग्विजय ने फिर तंज कसा कि ‘हे प्रभु महाकाल! दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में पैदा न हों।’ बस क्या था, विवाद बढ़ गया। जवाब में सिंधिया ने कहा कि ‘हे प्रभु महाकाल! दिग्विजय सिंह जैसे देश विरोधी और मप्र के बंटाढार भारत में पैदा न हों।’ सिंधिया समर्थक प्रदेश सरकार के मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया दो कदम और बढ़कर बोले कि ‘हे प्रभु महाकाल दिग्विजय जैसे मप्र के बंटाढार नेता का अगला जन्म पाकिस्तान हो। एक अन्य मंत्री तुलसी सिलावट चार कदम बढ़ते हुए बोले कि ‘दिग्विजय कांग्रेस के कोरोना वायरस हैं। महाकाल से प्रार्थना है कि उनका अगला जन्म चीन में हो।’
कमलनाथ-दिग्विजय के बयान से बात का बतंगड़....
कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ एवं राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह द्वारा संगठन को लेकर कही जाने वाली अलग-अलग बातों से बात का बतंगड़ खड़ा हो गया। भाजपा को भी तंज कसने का अवसर मिल गया। दोनों नेताओं द्वारा संगठन को लेकर व्यक्त की गई अलग-अलग राय से भ्रम के हालात बने। बीना पहुंचे कमलनाथ ने कहा कि कांग्रेस संगठन मजबूत हुआ है। धीरे-धीरे और मजबूत हो रहा है। दूसरी तरफ दौरे पर निकले दिग्विजय ने कह दिया कि कांग्रेस संगठन कमजोर है, इसलिए हम मतदाताओं को वोट देने के लिए घरों से बाहर नहीं निकाल पाते जबकि लोग कांग्रेस को वोट देना चाहते हैं। बस क्या था भाजपा नेताओं को मौका मिल गया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस को कमजोर बताकर दिग्विजय ने कमलनाथ को आइना दिखा दिया क्योंकि पांच साल से भी ज्यादा समय से वे ही पार्टी के अध्यक्ष हैं। इसे कांग्रेस के अंदर की अंदरूनी खींचतान भी बता दिया। बता दें, कमलनाथ और दिग्विजय के कंधों पर ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की नैया पार लगाने का दायित्व है। कमलनाथ प्रदेश के हर जिले में जा रहे हैं जबिक दिग्विजय को उन 66 विधानसभा सीटों की जवाबदारी सौंपी गई है, जहां कांग्रेस लंबे समय से हार रही है। कम से कम इन बड़े नेताओं हर मसले पर एक जैसी राय रखनी चाहिए ताकि ऐसे हालात न बने।
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