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अपना एमपी गज्जब है..66 घूँस देते देते थका तो जान देकर मुक्त हुआ शिक्षक...


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                   आज अपने एमपी के गुना जिले से खबर आई है कि एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने स्कूल में ही फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।यूं तो ये कोई खास खबर नही है।लोग आत्महत्या करते ही रहते हैं!एक शिक्षक भी उनमें शामिल हो गया तो कौन से बड़ी बात हो गई! लेकिन बड़ी बात है!बात यह है कि देश के नौनिहालों का भविष्य संवारने की जिम्मेदारी निभा रहा यह युवा शिक्षक रोज रोज की घूसखोरी के आगे विवश हो गया।अपने ऊपर वालों को पैसे नहीं दे पाया तो जान देकर हिसाब कर गया। पहले बात खबर की!42 साल के धर्मेंद्र सोनी गुना जिले की सिमरोद पंचायत के गमरिया का डेरा गांव के सरकारी स्कूल में तैनात थे।वे सालों से अकेले ही इस स्कूल की हर व्यवस्था संभाल रहे थे।जिसमें बच्चों को पढ़ाने से लेकर उनके खाने पीने और बड़े अफसरों की आवभगत भी शामिल थी।उन्होंने मंगलवार 18 अप्रैल को दोपहर में स्कूल में ही फांसी लगाकर जान दे दी। बताया यह भी गया है कि अभी कुछ दिन पहले सरकार ने उनके साथ एक और शिक्षक को नियुक्त  किया था।वह शिक्षक इन दिनों अवकाश पर था।वह गुना शहर में रहते थे और रोज स्कूल आते जाते थे। गांव वालों ने स्कूल में सोनी को लटके देखा तो पुलिस को सूचना दी।पुलिस ने पोस्टमार्टम कराया।बुधवार को सोनी का अंतिम संस्कार कर दिया गया।फिलहाल पुलिस मामले की जांच कर रही है। इस आत्महत्या का सबसे अहम पहलू यह है कि युवा शिक्षक ने अपने ही विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा रोज रोज की प्रताड़ना और पैसा वसूली की वजह से जान दी।इस संबंध में उसने मरने से पहले पूरा विवरण एक पत्र में दर्ज किया।फिर फांसी पर लटक गया।यह पत्र फिलहाल पुलिस के पास बताया गया है।
                    इस पत्र में धर्मेंद्र सोनी ने जो कुछ लिखा है वह प्रदेश के हालात का वह प्रमाण है जिसकी कल्पना शिक्षा विभाग में नही की जा सकती।सोनी ने अपने विभाग के दो वरिष्ठ अधिकारियों के नाम बताते हुए लिखा है कि किस तरह उन्हें वे दोनों ब्लैकमेल कर रहे थे।कैसे उन्हें छोटी छोटी बातों को लेकर प्रताड़ित किया जाता था।किस तरह उनसे नियमित वसूली ये दोनो अधिकारी करते थे!जानकारी के मुताबिक धर्मेंद्र सोनी ने मौत का फंदा पहनने से पहले अपना पूरा दर्द कागज पर उतार दिया था।जो प्रदेश सरकार की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था के अंदर फैल चुके कोढ़ का दस्तावेजी प्रमाण है।
 सरकारी व्यवस्था के मुताबिक धर्मेंद्र की आत्महत्या की जांच की जा रही है।उन दोनों अफसरों को हटा दिया गया है जिनके नाम सुसाइड नोट में धर्मेंद्र लिख गए हैं!आगे क्या होगा...पुलिस जाने!दस साल से अकेले स्कूल को संभाल रहे धर्मेंद्र सोनी तो खुद की बलि देकर मुक्त हो गए।
                  अभी तक आपने सरकार के तमाम विभागों में भ्रष्टाचार के बारे में सुना होगा।तमाम विभागों के किस्से रोज अखबारों में छपते हैं।सरकारी धन को सायफन करने के किस्से भी रोज सुर्खियों में रहते हैं।
 कारम बांध टूटने की खबर हो या राजधानी भोपाल के बगल में स्थित मंडीदीप में नए बने पुल के बहने की!आयुष्मान योजना में हिस्सा बांट की बात हो या परिवहन विभाग की मासिक वसूली की।पटवारी द्वारा जमीन नापने और नामांतरण किए जाने पर "साहब टैक्स" की वसूली हो या फिर थाने में घुसने पर भी "नजराना" देने की रवायत।सरकारी अस्पताल में दबा न मिलना और डाक्टर साहब द्वारा अलग से फीस वसूली की बात भी आम है।व्यापम के बारे में तो अब दुनियां जानती है।
                    लेकिन यह बात आम लोगों को पता नही थी कि राजस्व,परिवहन,स्वास्थ्य,पुलिस, पीडब्ल्यूडी, आबकारी और महिला एवम बाल विकास विभाग की तरह प्राथमिक शिक्षा विभाग में भी वसूली की चेन बनी हुई है।अकेले सरकारी स्कूल की व्यवस्था संभालने वाले शिक्षकों से भी सरकारी तंत्र नियमित वसूली करता है। हां तबादले के समय सब विभाग एक जैसे हो जाते हैं यह सर्वविदित था।
 यह भी तब हो रहा है जब राज्य में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बना चुके मुखिया मंच से यह घोषणा लगातार करते रहे हों कि भ्रष्टाचारियों को जमींदोज कर देंगे।किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे!उन्होंने कई अफसरों को सार्वजनिक मंच से निलंबित भी किया।रोज भ्रष्टाचार पर उनका नया बयान आता है। सब जानते हैं। मुखिया प्रदेश के बच्चों की अच्छी शिक्षा को लेकर बहुत फिक्रमंद हैं।इसलिए उन्होंने सीएम राइज स्कूल खोले हैं।और भी कई बड़े ऐलान किए हैं।यह अलग बात है कि धर्मेंद्र सोनी जैसे हजारों सरकारी शिक्षक अकेले दम पर अपने स्कूल चला रहे हैं।हजारों स्कूलों के पास अपने भवन नही हैं।जहां भवन हैं वहां मूलभूत सुविधाएं नही हैं।गांव की बात छोड़िए शहरों में भी बुरा हाल है। मुखिया भी क्या करें!घोषणा तो करते हैं! अब उन पर अमल नही होता तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा।देर सबेर कुछ न कुछ हो ही जायेगा। ऐसा नहीं है कि धर्मेद्र सोनी ने जान देने के अंतिम फैसले से पहले अपनी व्यथा किसी से कही नही होगी। ऐसा भी नही है कि मुखिया को "व्यवस्था" की जानकारी ही न हो।
 जो हालात हैं उन्हें देखकर ऐसा भी नही लगता कि धर्मेंद्र सोनी के बाद स्कूल को चलाने वाला शिक्षक इस जंजाल से मुक्त रहेगा।"व्यवस्था" ऐसे ही चलेगी ! मुखिया का दहाड़ना भी जारी रहेगा ! राजे महाराजों के जिले गुना में भी कुछ बदल जाएगा यह कहना मुश्किल है।लेकिन एक बात जरूर है कि परिवहन, राजस्व और पुलिस की तरह स्कूल शिक्षा विभाग में "नजराना"
प्रथा हैरान जरूर करती है।अन्य विभागों में तो जनता से सीधे वसूली होती है।लेकिन प्राइमरी स्कूल का शिक्षक कहां से वसूलेगा?वह या तो बच्चों का हक मरेगा या खुद का पेट कटेगा।जो नही कर पायेगा वह धर्मेंद्र सोनी बन जायेगा।किसे फर्क पड़ता है!"व्यवस्था" तो बनी ही रहेगी ! कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है ! है की नहीं ?

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