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अपना एमपी गज्जब है..67 अदालतें पस्त ... सरकार मस्त......


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                   एमपी में इन दिनों हर स्तर की अदालत चर्चा में है।खासतौर पर पिछले कुछ दिनों में हाईकोर्ट ने जो टिप्पणियां की हैं उनकी बात हर तरफ हो रही है।इन टिप्पणियों से यह भी जाहिर हो रहा है कि सरकार अदालतों के प्रति उपेक्षा का भाव ले कर चल रही है।अदालतें कुछ भी कहती रहें ,उस पर कोई असर पड़ता नही दिख रहा है। पिछले एक सप्ताह में तीन से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें अदालतों ने सरकार के फैसलों और रुख पर गंभीर सवाल उठाए  हैं।लेकिन सरकार पूरी तरह उदासीन बनी हुई है।ऐसा लग रहा है कि जैसे उसे किसी तरह का कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।शायद यही वजह है कि "पंच परमेश्वर" और ज्यादा तल्ख हो रहे हैं ! बुधवार 19 अप्रैल को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की ग्वालियर खंड पीठ की एक बेंच ने प्रदेश के नर्सिंग घोटाले से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान सरकार के रवैए पर कड़ी आपत्ति जताई।दो वरिष्ठ जजों की इस बेंच ने कहा - हम हैरान हैं कि किस तरह के लोग सरकार चला रहे हैं,जिनको आमजन के स्वास्थ्य की बिल्कुल चिंता नही है।
 यही नहीं बेंच ने नर्सिंग घोटाले में सरकार का पक्ष रख रहे महाधिवक्ता से कुछ सवाल पूछे।जिनका वे कोई उत्तर नही दे सके।
                 उल्लेखनीय है कि प्रदेश में व्यापम घोटाले की तर्ज पर नर्सिंग घोटाला हुआ है।इसका खुलासा भी ग्वालियर से ही हुआ था।बाद में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई तो पता चला कि पूरे प्रदेश में फर्जी नर्सिंग कालेज चल रहे हैं।फिलहाल करीब 500 नर्सिंग कालेज सीबीआई की जांच के दायरे में हैं।मजे की बात यह है कि घोटाला सामने आने के बाद से परीक्षा पर बैन लगा हुआ है।लेकिन जहां कालेज नए छात्रों को प्रवेश दे रहे हैं वहीं प्रदेश की एकमात्र मेडिकल यूनिवर्सिटी बैक डेट से इन कालेजों को अफिलियशन दे रही है। अदालत परेशान है क्योंकि सरकार की ओर से कोई संतोषजनक उत्तर ही नही आ रहा।उल्टे अदालत से तथ्य छिपाने की कोशिश की जा रही है। बुधवार को ही एक अन्य मामले की सुनवाई में ग्वालियर खंडपीठ की इसी बेंच ने चंबल नदी में अवैध खनन के मामले की सुनवाई करते हुए भरी अदालत में सरकार के दो अफसरों को भ्रष्ट कहा।उन्हें अदालत की अवमानना का दोषी माना।अदालत के आदेश का पालन न करने वाले खनन विभाग के दोनों अफसरों से कहा कि आप भ्रष्ट हो।आदतन बदमाश हो।बेंच ने दोनों को खूब खरी खोटी सुनाई।होना तो यह चाहिए था कि इन अफसरों के खिलाफ तत्काल कदम उठाया जाता।लेकिन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी।उसने अदालत की इन गंभीर टिप्पणियों पर कोई संज्ञान लिया हो ऐसा प्रतीत नही हुआ।मजे की बात यह है कि ग्वालियर खंडपीठ ने ही पिछले सप्ताह राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए सरकारी वकीलों की योग्यता पर सवाल उठाया था।तब बेंच ने राज्य के विधि सचिव से यह भी पूछा था कि सरकार कैसे कैसे लोगों को अपना वकील नियुक्त कर देती है।ये न तो मामलों को समझते हैं और न ही अदालत की मदद करने की स्थिति में रहते हैं।अदालत ने अयोग्य वकीलों की नियुक्ति भी टिप्पणी की थी।
                     मजे की बात यह है कि कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी मध्यप्रदेश के सरकारी वकीलों की योग्यता पर सवाल उठाया था।लेकिन तब भी बात आई गई हो गई थी।इस बार भी ऐसा ही हुआ है।
 इससे पहले एक घटना और हुई थी।जबलपुर हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह छिंदवाड़ा के एसपी को तत्काल सस्पेंड करने के आदेश दिए थे।दरअसल कोर्ट ने छिंदवाड़ा एसपी को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के एक अधिकारी के खिलाफ गैरजमानती वारंट तामील कराने के निर्देश दिए थे।एसपी साहब ने वारंट तामील कराने के बजाय हाईकोर्ट को चिट्ठी लिख दी कि संबंधित अधिकारी का तबादला हो गया है।इसलिए वे वारंट तामील नही करा सकते। एसपी के इस उत्तर को कोर्ट ने अपनी तौहीन माना।कोर्ट ने एसपी को सस्पेंड करने का आदेश देते हुए डीजीपी को निर्देश दिया कि वे  खुद 19 अप्रैल तक वारंट तामील करा के बेंच के सामने  हाजिर हों। चूंकि मामला एक एसपी से जुड़ा था इसलिए इस आदेश से सरकार में भगदड़ मच गई।आनन फानन में वारंट वाले अधिकारी को खोजा गया।अगले दिन खुद एसपी आरोपी अफसर के साथ कोर्ट के सामने पेश हुए।माफी मांगी।इसके बाद कोर्ट में निलंबन का आदेश वापस लिया।तब कहीं जाकर मामला शांत हुआ।
  यह तो कुछ उदाहरण हैं।पिछले कुछ समय में अदालत ने कई बार सरकार के रवैए पर नाखुशी जाहिर की है।सख्त टिप्पणियां भी की हैं।लेकिन सरकार पर कोई असर पड़ता नही दिख रहा है।
 न उसने अयोग्य वकीलों को हटाया है न ही कोई अन्य कदम उठाया है। दरअसल कोई भी दल सत्ता में आने के बाद सबसे पहले अपने लोगों को सरकारी वकील बना कर उपकृत करता है।कुछ लोग मोटी दक्षिणा देकर भी सरकारी वकील बनते हैं।बदले में सरकारी खजाने से मोटी रकम पाते हैं।सरकारी वकीलों का मूल काम सरकार का पक्ष मजबूती से रखना और अदालत की मदद करना है।लेकिन सरकार ज्यादातर सिफारिशी लोगों को नियुक्त कर देती है।यही वजह है कि ज्यादातर मामलों में सरकार को मुकदमों हार का ही सामना करना पड़ता है।आरोप तो यह भी लगता रहा है कि सरकारी वकील सामने वाले पक्ष से मिल जाते हैं। पिछले सप्ताह में अदालत ने जो तल्खी जबलपुर से ग्वालियर तक दिखाई है उससे सरकार को थोड़ा झटका जरूर लगा है।लेकिन उसने सुधार की दिशा में कोई कदम अभी तक नही उठाया है।चुनावी शतरंज की तैयारी में जुटी सरकार इस ओर ध्यान भी देगी,इसमें संदेह है।
                        इसीलिए जज साहबान हैरान और परेशान हैं। उनकी समस्या यह है कि वे कुछ और कर भी नही सकते हैं। ऐसे में अब "पंच परमेश्वर" चाहे गुस्सा करें या अफसरों को भृष्ट कहें!वकीलों की योग्यता पर सवाल उठाए या सरकार से सवाल पूछें।कुछ होने वाला नहीं है। शायद इसी रुख के चलते स्पष्ट निर्देश और आदेश के बाद भी खुद सरकार से जुड़े लोगों को न्याय नहीं मिल रहा है।आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हों या फिर दूसरे कर्मचारी,उनसे जुड़े मामलों में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।पर सरकार चल रही है।वह सत्ता में वापसी के लिए हर उपाय कर रही है।यही उसकी प्राथमिकता है !  इन हालात में फिलहाल तो यही कहा जा  सकता है कि.. सरकार मेहरबान तो पिद्दा पहलवान!अब पंच परमेश्वर  हैरान और दुखी होते हैं तो होते रहें!वैसे भी टिप्पणी से ज्यादा वे और कर भी क्या लेंगे!गैंडे से मोटी चमड़ी वाली सरकार पर टिप्पणियों का कोई असर नहीं पड़ने वाला। शायद इसीलिए तो कहते हैं कि अपना एमपी गज्जब है ! है की  नहीं ?

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