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अधिकारियों और कर्मचारियों में वेतन का भेदभाव हो खत्म


डॉ. चन्दर सोनाने
                      हाल ही में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने नवनियुक्त शिक्षक के प्रशिक्षण कार्यक्रम में नए कर्मचारियों के लिए प्रोबेशन अवधि को 3 साल से घटाकर 2 साल कर दिया है। यह एक अच्छी पहल है, किन्तु इसमें भी भेदभाव दिखाई दे रहा है। मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग से नौकरी शुरू करने वाले अधिकारियों और तृतीय श्रेणी कार्यपालिक पदां पर नियुक्ति पाने वाले कर्मचारियों को पहले साल से ही 100 प्रतिशत वेतन मिल रहा है। अब यह हो गया है कि कर्मचारी चयन मंडल और अन्य माध्यमों से तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की होने वाली नियुक्तियों में उन्हें पहले साल में 70 प्रतिशत वेतन मिलेगा और दूसरे साल में 100 प्रतिशत वेतन मिलेगा। राज्य शासन का यह दोहरा मापदंड है और भेदभावपूर्ण है। इसे खत्म होना चाहिए।
                        हालांकि मुख्यमंत्री को इस बात का श्रेय जायेगा कि उन्होंने प्रोबेशन पीरियड के लिए तीन साल से घटाकर दो साल कर दिया है। इसके पूर्व तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने 12 दिसम्बर 2019 को तृतीय श्रेणी ( लिपीक वर्गीय ) सेवा भर्ती नियमों में संशोधन कर दिया था। उसके अनुसार नए कर्मचारियों का प्रोबेशन पीरियड 3 साल कर दिया गया था। इसे ही मुख्यमंत्री ने हाल ही में 2 साल किया है। मुख्यमंत्री की पहल के बाद नए भर्ती होने वाले कर्मचारियों का प्रमोशन पीरियड 3 वर्ष से घटाकर अब 2 साल हो गया है। 
                         हाल ही में मध्यप्रदेश में शिक्षकों की भर्ती के लिए विशेष अभियान चलाया गया है। इसके अन्तर्गत इस साल के अंत तक प्रदेश में 60,000 शिक्षकों की भर्ती का लक्ष्य तय किया गया है। इसमें से अभी तक 22,000 शिक्षकों की भर्ती कर ली गई है। इसमें खास बात यह है कि उक्त भर्ती के शिक्षकों में से करीब आधे शिक्षक जनजाति बहुल इलाकों के विद्यालयों में नियुक्त किए गए हैं। मध्यप्रदेश के इस प्रयास की प्रधानमंत्री जी ने भी सराहना की है। 
                       यूं तो मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा कि है कि इस साल 1 लाख से अधिक रिक्त पदों पर भर्ती का लक्ष्य तय किया गया है। अब यहाँ खास बात यह है कि विभिन्न विभागों में 1 लाख के रिक्त पद हो कैसे गए ? अर्थात कई सालों से रिक्त पदों की पूर्ति करने में राज्य सरकार द्वारा कोई रूचि नहीं ली गई और न ही कोई प्रयास किए गए ! इसी कारण विभिन्न विभागों में रिक्त पदों की संख्या बढ़कर 1 लाख हो गई ! रिक्त पदों की इतनी बड़ी संख्या होना कोई उपलब्धि नहीं है, बल्कि शर्म का विषय है ! यह सरकार की अकर्मण्यता को दर्शाता है। अब हो यह रहा है कि सालों रिक्त पदों की पूर्ति नहीं की जाए और चुनावी साल में 1 लाख रिक्त पदों की भर्ती का ढिंढौरा पीटा जाए। इसमें अभी मात्र 22 हजार रिक्त पदों की ही पूर्ति हो पाई है। चुनाव की घोषणा होने के पूर्व राज्य सरकार के पास मात्र 4-5 महीने का समय बचा है। अब सवाल यहाँ यह है कि जो सरकार बरसों तक रिक्त पदों की पूर्ति नहीं कर पा रही है। वह आगामी 4-5 महीने में क्या करीब 80 हजार रिक्त पदों की पूर्ति कर पाएगी ? यह यक्ष प्रश्न है। देखा जाए तो यह बेरोजगारों के साथ सरासर धोखा है !
                       अब फिर आते हैं मूल प्रश्न पर। क्या कारण है कि राज्य सरकार अधिकारियों की नियुक्ति के समय उनको पहले साल से ही पूरा वेतन दे रही थी, दे रही है और देती भी रहेगी ? और दूसरी तरफ छोटे कर्मचारी हैं। ये कर्मचारी तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी है। संख्या से देखा जाए तो प्रदेश के अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या में सर्वाधिक सख्ंया इन्हीं तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की होती है। ये कम आय वाले छोटे कर्मचारी होते है। इनके साथ ही यह विरोधाभास और भेदभावपूर्ण व्यवहार क्यों ?
                      मुख्यमंत्री ने तृतीय श्रेणी और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के प्रोबेशन पीरियड को 3 साल से घटाकर 2 साल करके सराहनीय कार्य किया है। किन्तु मुख्यमंत्री को चाहिए कि वे इन छोटे कर्मचारियों के साथ बरसों से हो रहे भेदभाव और दोहरे मापदंड को खत्म करें। जिस प्रकार अधिकारियों को पहले वर्ष से ही पूरा वेतन प्राप्त करने का अधिकार है। उसी प्रकार छोटे कर्मचारियों को भी पूरा वेतन प्राप्त करने का अधिकार है। उनके साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने की जरूरत है। जिस दिन उन्हें पहले साल से ही पूरा वेतन मिलेगा, तभी उन्हें सही मायने में न्याय मिल सकेगा। यह वर्ष चुनाव वर्ष है। यदि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान छोटे कर्मचारियों के साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करते है तो उन्हें उसका प्रतिसाद भी जरूर मिल सकता है !
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