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“ राज बब्बर , दिल में उतरता फ़साना “


रविवारीय गपशप लेखक डॉ आनंद शर्मा रिटायर्ड सीनियर आईएएस अफ़सर हैं और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी हैं। पिछले दिनों सिने जगत के प्रसिद्ध अभिनेता और भारतीय राजनीति में अपनी प्रभावकारी पहचान बना चुके राज बब्बर के जीवन के विभिन्न रंगों पर हरीश पाठक जी की संपादकीय में एक किताब प्रकाशित हुई है “ राज बब्बर , दिल में उतरता फ़साना “। ग्वालियर में हुए इसके विमोचन पर साहित्य जगत और समाज के अन्य क्षेत्रों की महत्वपूर्ण हस्तियों के साथ ख़ुद राज बब्बर भी उपस्थित हुए । अपने विनम्र उद्बोधन में उन्होंने कहा कि मैं इतना बड़ा आदमी नहीं कि मुझ पर किताब लिखी जावे , पर समारोह में उपस्थित सभी गणमान्य पुस्तक पर लिखे प्रसंगों और राज बब्बर के जीवन के अनछुए पहलुओं को जानकार गदगद थे । हरीश पाठक जो न केवल एक जाने माने पत्रकार हैं , बल्कि राज बब्बर के करीबी मित्र रहे हैं , उन्होंने इस किताब में चित्रा मुद्गल , अतुल तिवारी , शाहरुख़ ख़ान , राजा बुंदेला सहित अनेक प्रसिद्ध हस्तियों के राज के जीवन से जुड़े पहलुओं को बड़ी ख़ूबसूरती से उकेरा है । हेमंत पाल जो ख़ुद एक प्रसिद्ध पत्रकार और फ़िल्मी दुनिया के पहलुओं पर अपनी क़लम को लेकर अलग धार रखते हैं , ने भी इसमें राज से जुड़ी अपनी यादें साझा की हैं । ख़ुशक़िस्मती से मैं उनके इसरार पर ही राज से जुड़े एक प्रसंग को इसमें साझा कर पाया हूँ । प्रशासनिक जगत से जुड़े दो व्यक्तियों के लेख इस पुस्तक में हैं , मेरे और इन्दौर में अपर कलेक्टर श्री अभय बेडेकर के । मैं अपने प्रसंग को यहाँ साझा कर रहा हूँ बाक़ियों के प्रसंग आप पुस्तक ख़रीद कर पढ़ सकेंगे । राज बब्बर ————- राज बब्बर का बॉलीवुड की दुनिया में चाकलेटी खलनायक के रूप में प्रवेश हुआ था , हालाँकि उनकी पहली फ़िल्म थी क़िस्सा कुर्सी का लेकिन उनकी कीर्ति की पताका लहराई फ़िल्म इंसाफ़ के तराज़ू से जो बी आर चोपड़ा ने बनाई थी और इस फ़िल्म में उनका नामांकन फ़िल्म फ़ेयर अवार्ड के लिए चला गया | उनके पहले फ़िल्मी दुनिया में विलेन का रूप विन्यास ऐसा था कि शक्ल देखते ही लग जाता था की ये फ़िल्म का विलेन है , राज बब्बर ने हिरोनुमा विलेन के रूप में एंट्री ली | नेशनल स्कूल आफ ड्रामा के छात्र रहे राज़ खलनायक के रूप में भी लोगों को लुभाते रहे | उनके अभिनय की अदायगी और चाकलेटी छवि के चलते लड़कियाँ उनकी ग़ज़ब की दिवानी थीं | राज बब्बर की इस धमाकेदार शुरुआत के बाद उनके पास फ़िल्मों की क़तार लग गयी , और जैसा कि हर सितारे के साथ होता है , वे बहुत जल्द खलनायकी के किरदार को छोड़ नायक के रूप में फ़िल्मों में आने लगे | हिंदी फ़िल्मों के साथ साथ उन्होंने पंजाबी फ़िल्मों में भी अनेक सफल पारी खेली हैं | कालेज के दिनों से ही छात्र राजनीति के बीज ने उन्हें फ़िल्मों की रंगीली दुनिया से जल्द ही राजनीतिक गलियारे में खींच लिया | दक्षिण में तो अनेक सितारे ऐसे रहे हैं जो फ़िल्मों के साथ साथ राजनीति में भी हिट रहे हैं , पर उत्तर भारतीय क्षेत्र में राज बब्बर इकलौते ऐसे सितारे हैं जिन्होंने फ़िल्मों के साथ साथ राजनीति में भी सफल पारियाँ खेली हैं | सन 1989 में व्ही पी सिंह की आभा से प्रभावित होकर जनता दल में शामिल होने के बाद जल्द ही वे मुलायम सिंह जी की शागिर्दी में शामिल हो कर समाजवादी पार्टी में आ गए और इसी पार्टी से वे राज्यसभा और लोक सभा के सदस्य रहे | कुछ वर्षों बाद उनकी वहाँ बनी नहीं और वे कांग्रेस पार्टी में शामिल होकर पुनः सांसद बने , जिससे ये सिद्ध हुआ की उनकी लोकप्रियता में पार्टी के साथ साथ उनका भी करिश्मा रहा आया था | बाद के वर्षों में अपने कुछ बेतुके बयानों से उन्होंने आलोचनाएँ भी झेलीं और शनैः शनैः उनकी लोकप्रियता का ग्राफ़ गिरता ही गया | संयोग से मेरी राज बब्बर से मुलाक़ात उन दिनों में हुई जब वे राजनीति में प्रवेश कर चुके थे और आगरा से सांसद थे | हुआ कुछ यूँ की मेरी पदस्थापना उन दिनों ग्वालियर में भू अभिलेख विभाग में थी | वर्ष 2003 के दौरान का वाक़या है तब राज बब्बर राजनीति में प्रवेश कर समाजवादी पार्टी के चमकदार सितारे बन चुके थे | ग्वालियर के कुछ परिचित सज्जन राज बब्बर से मिलने आगरा जा रहे थे | मुझे अपने किसी निजी काम से आगरा जाना था तो रास्ते के साथ और फ़्री की लिफ़्ट के मोह से मैं उन सज्जनों के साथ आगरा चला गया | आगरा जाकर जब उन्होंने कहा कि राज बब्बर से पहले मिल लें फिर आपको वहाँ छोड़ देंगे जहाँ आपको काम है तो मैं मना न कर सका , आख़िर राज बब्बर से कौन मिलना न चाहता | हम सुबह सुबह नौ बजे के आसपास राज बब्बर के बँगले पहुँच गए , उनके सेक्रेटरी ने हमें बाहरी बैठक में बैठा दिया और कहा की राज साहब उठ कर अपने दैनिक कार्यों से निवृत होकर अभी नीचे आते हैं | हम नीचे बैठ गये , और प्रतीक्षा करने लगे | अभी नाश्ता कर रहे हैं , अभी योगा , अभी पेपर देख रहे हैं , ऊपरी माले से ख़बर आती रही और मेरा मित्र मुझे दिलासा देता रहा कि बस दस मिनट की बात है और दस दस मिनट होते दोपहर के दो बज गए | मेरा समय हो रहा था और मैं कहने ही वाला था कि भाई मैं टेक्सी लेकर चला जाता हूँ तभी राज बब्बर सीढ़ियों से नीचे उतरते दिखे | नीचे आते ही मेरा मित्र लपक कर उनसे मिला और इन्हें शिकायती लहजे में बताया कि इतनी देर से हम आपका इन्तिज़ार कर रहे हैं और आप अब आ रहे हैं | राज बब्बर ने अपने सेक्रेटरी की ओर घूम कर उसे डाँटा “ तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि मनोज मिलने आया है , आइन्दा ध्यान रखना ये आएँ तो तुरंत मिलाना | इसके बाद जब मेरा परिचय कराया गया तो मुझसे तो ऐसे मिले जैसे बरसों के परिचित हों | मैं समझ गया , राजनीति में अभिनेता क्यों सफल रहते हैं |

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