सियासतदानों की खुदा जाने, आदिवासियों का खुदा हाफिज़...
ना काहू से बैर
राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल- शांति के सूबे मध्यप्रदेश की सियासत में इन दिनों आदिवासियों का जबरदस्त रंग घुला हुआ है। हाल ही में रंगों के उत्सव वाला फ़ाग होली - रंगपंचमी के बाद विदा भले ही हो गया हो लेकिन चुनावी साल में राजनीति करने वालों का फ़ाग तो अब जोर पकड़ रहा है। इसमें कई चेहरे- दल और उनके छोटे बड़े किरदार रंग - गुलाल के बजाए नीति और नैतिकता से अलग ओछे- स्तरहीन आरोपों में डूबे और बदबू से बजबजाती कीचड़ में सने दिखेंगे। इसकी एक दरिंदगी दिखी महू (इंदौर)में। एक आदिवासी युवती की कथित हत्या पर फैलाए गए वॉट्सऐप मेसेज और उससे उपजी हिंसा ने एक आदिवासी युवक की जान ले ली। इससे एक परिवार भले ही बेसहारा हो गया हो लेकिन राजनीति करने वालों की तो मानो पौ बारह हो गई। सरकार भी बड़े राजनीतिक नुकसान की आशंका से सक्रिय हो गई। प्रशासन ने भी चौबीस घण्टे में दस लाख की सहायता का चेक मृतक युवक के परिजनों को सौंप दिया। परिवार के एक सदस्य को नौकरी भी जल्द मिल जाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी पीड़ित परिवार के घर पहुंच गए और कांग्रेस की तरफ से मृतक युवती और आदिवासी युवक को पांच-पांच लाख की सहायता देने का ऐलान भी कर आए। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी महू पहुंच गए क्योंकि वह वहां से विधायक भी रह चुके हैं। लिहाजा उन्होंने मृतक युवक के परिवार को अपना पारिवारिक सदस्य बताया और उनके क्षेत्र की समस्याओं में 15 दिन के भीतर बिजली की आपूर्ति सुचारू करने के निर्देश भी अधिकारी को दे दिए। विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। सत्ता - विपक्ष आदिवासियों के कितने हमदर्द हैं इस मुद्दे पर आमने- सामने हैं। विधानसभा में आदिवासियों पर केस दर्ज करने के मामले में रोने जैसी घटनाएं भी होने लगी हैं। सज्जनों-सुधिजनो से आग्रह है कि वे थोड़ा स्मरण करें कि क्या चुनावी साल के पहले हमारे राजनेताओं को कभी शोषित आदिवासियों की भूख-प्यास, कुपोषण और बीमारियों से होने वाली मौतों पर आंसू बहाते देखा है..? भाजपा ने तो आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने के लिए देश व्यापी रोडमेप बनाकर काम शुरू कर दिया है। जाहिर है आने वाले दिनों में इसपर कुछ बड़े काम भी होते हुए दिखेंगे। हिंदी भाषी मप्र,राजस्थान, छत्तीसगढ़ और दक्षिण के दो बड़े राज्य कर्नाटक और तैलंगाना में विधानसभा के चुनाव भी हैं। सो सारे दल बढ़चढ़ कर आदिवासी वर्ग के पैरोकार बनते दिखेंगे और इस प्रयास अटपटी बातें, चटपटी मांगें और घोषणापत्रों में शेखचिल्ली जैसे अजीबोगरीब वादे और सरकार में आने के लिए मुंगेरीलाल के हसीन सपने भी देखने- सुनने को मिलेंगे। आदिवासियों को लेकर सियासी दलों की कवायदों को लेकर एक मशहूर फिल्म ' ये रास्ते हैं प्यार के ' का दिलकश गाना याद आ रहा है।
" तुम जिस पर नजर डालो उस दिल का खुदा हाफिज
कातिल की खुदा जाने बिस्मिल का खुदा हाफिज"...
चुनावी साल है और आदिवासी वोट बैंक पर राजनेताओं की नजर पड़ चुकी है राजनेताओं को जीत मिलेगी हार सरकार बनेगी या नहीं यह तो वही जाने लेकिन अब तक के तजुर्बे से तो यही लगता है कि आदिवासियों का खुदा हाफिज यह तय है...
राजेन्द्र कृष्ण के लिखे इस गाने को गाया है मखमली आवाज के शहंशाह मोहम्मद रफी सा ने और संगीतबद्ध किया है संगीतज्ञ रवि ने। आर के नारायण के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में मुख्य कलाकार हैं - सुनील दत्त, लीला नायडू, अशोक कुमार, शशि कला, तबस्सुम, मोतीलाल, मनमोहन और रहमान। सियासत भी ऐसे ही किरदारों और इनसे भी बड़े-बड़े कलाकारों, निर्माता - निर्देशकों से भरी पड़ी है। रोजमर्रा की राजनीति में सड़क से संसद तक मौके बेमौके बड़ी निर्लज्जता के साथ नजर भी आते हैं। सिल्वर स्क्रीन के एक्टर तो ट्रेजडी किंग से लेकर एंग्री यंगमैन तक उनके सामने पानी भरते दिखाई पड़ते हैं।
"सब्र करते अगर अपनी ज़िंदगी का हमें एतबार होता... "
भाजपा और कांग्रेस में उम्र में 55 और जोशोखरोश में बचपन का दिल रखने वाले टिकट के दावेदार और तव्वजो मुन्तज़िर वफ़ादार नेता- कार्यकर्तओं में अजब सी बेचैनी देखी जा रही है। इसे महसूस कर जो भी दल इसकी चिंता कर लेगा कहा जा सकता है वह सत्ता बनाने के उतने ही नजदीक होगा। इसके लिए पार्टियां डेमेज कंट्रोल का सिस्टम मजबूत करने की रणनीति पर काम भी कर रही हैं। अभी तक नेतृत्व और नेताओं के वादे पर एतबार के खेल में साठ की उम्र के करीब या पार हो रहे नेताओं के सब्र के तटबन्ध कमजोर पड़ रहे हैं। इस सबके लिए प्रसिद्ध शायर जनाब दाग देहलवी नवाब मिर्ज़ा खान की गजल खूब मौजू है।
इनकी शायरी में चुस्ती शोख़ी और मुहावरों का बेहतरीन अंदाज़ में इस्तेमाल होता है-
अजब अपना हाल होता जो विसाल-ए-यार होता
कभी जान सदक़े होती कभी दिल निसार होता
ये मज़ा था दिल-लगी का कि बराबर आग लगती
न तुझे क़रार होता न मुझे क़रार होता
न मज़ा है दुश्मनी में न है लुफ़्त दोस्ती में
कोई ग़ैर ग़ैर होता कोई यार यार होता
तिरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी ज़िंदगी का हमें ए'तिबार होता...
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