नाटू नाटू...क्या भारतीय फिल्मों के सुनहरे संगीत का दौर लौटेगा ?
अजय बोकिल ,वरिष्ठ पत्रकार
बेशक भारतीय सिने जगत के लिए खुशी से नाचने (नाटू नाटू) का यह दुर्लभ अवसर 110 साल बाद आया है, जब हमे दो अलग अलग श्रेणियो में सिनेमा के नोबल पुरस्कार सी प्रतिष्ठा रखने वाले आॅस्कर अवाॅर्ड एक साथ मिले। वह भी मौलिक काम के लिए। इस बार तीन श्रेणियों में भारत की प्रविष्टियों को नामांकन िमले थे। 95 वीं ऑस्कर सेरेमनी में पहला आॅस्कर भारात को ‘द एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को बेस्ट डाॅक्युमेंट्री शाॅर्ट फिल्म को मिला। हालांकि भारत की एक और डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म ‘ऑल दैट ब्रीथ्स’ रेस से बाहर हो गई। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा रही राजमौलि की सुपरहिट फिल्म ‘आरआरआर’ के महासुपरहिट गाने ‘नाटू नाटू’ की। उसे बेस्ट अोरिजिनल सांग का अवाॅर्ड मिला। जैसे ही इस अवाॅर्ड की घोषणा हुई मानो हर भारतीय के पैर खुद ब खुद खुशी से थिरकने लगे। ‘नाटू नाटू’ मूल तेलुगू गाना है, जिसका हिंदी, अंग्रेजी व अन्य भारतीय भाषाअों में डब िकया गया है। लास एंजेल्स के डाॅल्बी थियेटर में हो रहे पुरस्कार वितरण समारोह में जैसे ही इस गाने के कंपोजर एम. एम. किरावानी और गीतकार चंद्रबोस ने आॅस्कर की सुनहरी ट्राफी स्वीकार की समूचे देश की रगो में बिजली सी कौंध गई। साथ यह सवाल भी मन में तैरने लगा कि क्या भारतीय फिल्मों के सुनहरे संगीत का वह दौर फिर लौटेगा, जिसमें मेलोडी के साथ सार्थक शब्द और भावों का बेमिसाल तड़का होता था। ये गीत अब हमारी सांस्कृतिक विरासत बन गए है। यह बात इसलिए कि ‘नाटू नाटू’ भले ही तेज गति का नृत्य गीत हो, लेकिन इसमें सुरीली रिदम, तूफानी गति और सार्थक शब्दों का अनूठा मेल है। इसके बोल दमदार और माटी की महक लिए हुए हैं, ठीक वैसे ही कि जैसे पचास, साठ और सत्तर के दशक के फिल्मी गाने अपने भीतर एक शाश्वत महक को समेटे हुए थे। वो गाने जो लिखे भले ही फिल्म की सिचुएशन पर गए थे, लेकिन उनकी मधुर और सरल धुनो, अलौकिक सुरों और झरने से बहते संगीत ने कदरदानों के कानो को ही नहीं बल्कि आत्मा को तृप्त कर दिया था। यही कारण है कि आज भी वो गीत उतने ही ताजे और संजीवनी लिए महसूस होते हैं।
अमूमन माना जाता है कि आॅस्कर अवाॅर्ड बहुत कड़ी प्रतिस्पर्द्धा और परीक्षण के बाद मिलते हैं। इसके लिए नामांकन मिलना ही अपने अाप में बड़ी बात होती है। ऐसे में अंतिम दौर में पहुंच कर अवाॅर्ड अपने नाम कर लेना कोई सामान्य बात नहीं है। अच्छी बात यह रही िक ‘नाटू नाटू’ के लिए आॅस्कर लेने स्टेज पर केवल संगीतकार किरवानी और गीतकार चंद्रबोस पहुंचे। इसके निर्देशक और गायकों ने खुद को पीछे रखा ( हालांकि गायको ने स्टेज पर लाइव परफार्मेंस दिया)। इससे यह संदेश गया कि फिल्मी गीत मूलत: संगीतकार और गीतकार की कृति है। गायक उसे केवल परफार्म करता है। हालांकि इस पर विवाद भी हो सकता है, क्योंकि कई बार गायक अपनी प्रतिभा से संगीत रचना को इतनी ऊंचाई तक पहुंचा देता है, जिसकी कल्पना संगीतकार भी कम ही कर पाता है।
यह बात इसलिए भी अहम है, क्योंकि आजकल फिल्मी गीतों के नाम पर जो पिज्जा बर्गर टाइप का संगीत हम सुन और देख रहे हैं, उसमें बेमतलब थिरकने, उछलकूद या झूमने से ज्यादा कुछ भी साध्य नहीं है। अब तो साल दो साल पहले के गाने तक रीमिक्स करके लांच करने का चलन है। शब्दो और उनके स्पष्ट उच्चारण का महत्व हाशिए पर चला गया है। यह कमी नाटू नाटू में भी नजर आती है। उसकी रिदम तो समझ आती है,लेकिन शब्द रचना बहुत ध्यान से सुनने पर ही समझ आती है। कई बार लगता है कि आज हिंदी फिल्म संगीत के सुनहरे आकाश को हल्के पंजाबी गीतों ने मानो ढंक लिया है। नई पीढ़ी में कम ही लोग हैं, जो लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या आशा भोसले की अप्रतिम गायकी और उस जमाने के दर्जनों संगीतकारों के अविस्मरणीय काम को जानते हों, वो लोग जो जाने अनजाने में इतिहास रच रहे थे और भारतीय सुगम संगीत की नई विरासत छोड़कर जा रहे थे।
खास बात यह है कि पूर्व में भी भारत को यदा कदा आॅस्कर अवाॅर्ड मिले हैं। लेकिन खरे सोने की तरह शुद्ध भारतीय काम की यह पहली वैश्विक स्वीकृति है। जिन एम.एम. कीरवानी की संगीत रचना को यह अवाॅर्ड मिला, उन्हें हिंदी सिने संगीत में कम ही लोग जानते हैं। 1994 में आई हिंदी फिल्म ‘क्रिमिनल’ का कुमार सानू और अलका याज्ञिक का गाया गाना ‘तुम मिले दिल खिले, मुझे जीने को और क्या चाहिए’ आज भी लोगों के जेहन में है। उसका संगीत एम.एम.करीम ने दिया था। यह करीम साहब ही नाटू नाटू वाले किरावानी हैं। यह भी दिलचस्प बात है कि भारतीय फिल्मोद्योग और खासकर बाॅलीवुड में मुस्लिम कलाकारो ने हिंदू नामों काम किया और शोहरत भी पाई, लेकिन इस तेलुगू संगीतकार ने मुस्लिम नाम से संगीत दिया और अपना अलग मुकाम हासिल किया। इसका अर्थ यह भी है कि कीरावानी साहब के लिए नाम धर्म से ज्यादा अहम काम है। हालांकि कीरावानी का असली नाम तो कोडुरी मर्कटमणि कीरावानी है। लेकिन आरआरआर में भी उन्होंने इस के बजाए एम.एम.कीरावानी के नाम से संगीत दिया है। दक्षिण की फिल्मों के तो वो मशहूर संगीतकार हैं हीं, अब ‘नाटू नाटू’ के जरिए वो वैश्विक संगीतकार भी हो गए हैं। इसके पहले यह सम्मान संगीतकार ए.आर. रहमान को गीतकार गुलजार के साथ संयुक्त रूप से मिला था। विचित्र बात यह है कि कीरावानी अच्छे संगीत के साथ ज्योतिष में भी अंधश्रद्धा की हद तक आस्था रखते हैं। कहते हैं कि बगैर मुहूर्त के वो गाड़ी से नीचे भी नहीं उतरते।
इस ‘नाटू नाटू’ गीत के गीतकार चंद्रबोस का पूरा नाम कनुकुंतला सुभाष चंद्र बोस है। लेकिन वो गीत चंद्रबोस के नाम से ही लिखते हैं। वो खुद पार्श्वगायक भी हैं। उनके पास प्रौद्योगिकी की िडग्री है, लेकिन जीवन गीत लेखन और संगीत को समर्पित है। कहते हैं कि नाटू नाटू का मुखड़ा उन्हें कार चलाते हुए सूझा। इस मूल तेलुगू गीत के बोल अर्थ भरे हैं। मसलन हिंदी में इसका अर्थ है‘खेतों की धूल में कूदते हुए आक्रामक बैल की तरह तुम नाचो, ढोल जोर से बज रहा है,
बेटा राजू उड़ो और नाचो। खुरदरे जूतों से छड़ी की लड़ाई हो और युवा लड़कों के उस गिरोह की तरह नृत्य करें जो नीचे इकट्ठा हो रहे हों बरगद के पेड़ की छाया में…ऐसे नाचो जैसे कि तुम मिर्च के साथ ज्वार की रोटी खा रहे हो। चलो नाचो, नाचो और नाचो, चलो पागलपन से नाचो। ऐसे बोल आजकल के फिल्मी गीतों में अपवाद स्वरूप ही सुनने को मिलते हैं। हालांकि बाजार के दबाव के बीच कुछ नए गीतकार अच्छा भी लिख रहे हैं, लेकिन संगीत में सुकून का नितांत अभाव है। हो सकता है कि कुछ लोग आज के फिल्मी गीतो में आधुनिकजीवन की आपाधापी, सतत बेचैनी, सुकून की असमाप्त तलाश, गलाकाट स्पर्द्धा और गहरी अनिश्चितता का दर्शन महसूस करें। लेकिन ऐसे गीतों की खुद की जिंदगी भी पानी के बुलबले की मानिंद होती है। अलबत्ता ‘नाटू नाटू’ में कुछ ऐसा तत्व है, जो इस गाने को लंबे समय तक जिंदा रखेगा। इस गाने को मूल तेलुगू में गायक राहुल िसपलीगंज तथा कीरावानी के बेटे काल भैरव ने गाया है। जबकि इसका हिंदी वर्जन रिया मुखर्जी ने लिखा है और गाया राहुल सिपलीगंज तथा विशाल मिश्रा ने है। आॅस्कर अवाॅर्ड गाने के तेलुगू वर्जन को ही मिला है। पर्दे पर इस गीत पर जबदस्त डांस तेलुगू अभिनेता रामचरण और एनटीआर जूनियर ने किया है। एनटीआर जूनियर का जन्म 1983 में उनके दादा एनटी रामाराव के आंध्रप्रदेश (अविभाजित) के मुख्यमंत्री बनने के कुछ दिनो बाद ही हुआ था। इसकी कोरियाग्राफी ( नृत्य संयोजन) प्रेम रक्षित ने की है। इस नृत्य शूटिंग में 20 दिन लगे। 43 बार रीटेक हुए। वैसे भी भारतीय फिल्मों में दो पुरूष नर्तकों का एकसाथ एक गति और लय में डांस करना अपने आप में अभूतपूर्व है। अमूमन फिल्मो में महिला नर्तको के साथ तो यह होता आया है। ‘नाटू नाटू’ में तो कई विदेशी सह कलाकार भी हैं। प्रेम रक्षित के अनुसार फिल्म के निर्देशक एस.एस. राजमौलि कुछ अलग और मौलिक चाहते थे। वही उन्होंने करने की कोशिश की अौर उसे वैश्विक स्वीकृति भी मिली। ‘नाटू नाटू’ गाना लाजवाब तो है ही, यह उस यूक्रेन देश के लिए अपने आप में शांति और उमंग का संदेश भी लिए है, जो साल भर से रूस के आक्रमण से जूझ रहा है। ऐसा आक्रमण जिसका औचित्य ही नहीं है। सिवाय एक काल्पनिक भय और दबंगई दिखाने के। ‘नाटू नाटू’ यूक्रेन की राजधानी कीएव के उस भव्य राष्ट्रपति भवन की पृष्ठभूमि में फिल्माया गया है, जो आज निर्लज्ज सैन्य आक्रामकता के आगे सीना ताने खड़ा है। जब यह गाना शूट हो रहा था, तब यूक्रेन में शांति और सुकून था। रूस और यूक्रेन के बीच जारी यह युद्ध आज विश्व की महाशक्तियों के शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा बन चुका है। लेकिन यह युद्ध कभी न कभी तो खत्म होगा। तब वहां के लोग फिर ‘नाटू नाटू’ गाने के साथ नाचे तो हमे आश्चर्य नहीं होना चाहिए। काश, वो दिन जल्द आए !
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