मंत्रिमंडल के दावेदारों को मिली फिर नई तारीख....
राज- काज, दिनेश निगम ‘त्यागी
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अचानक दिल्ली जाकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिले तो मंत्रिमंडल में फेरबदल की चचार्एं तेज हो गईं थीं। हमेशा की तरह मीडिया बताने लगा कि विधानसभा के बजट सत्र से पहले राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल होने वाला है। हटने और शामिल होने वाले मंत्रियों की संख्या भी बता दी गई। पर नतीजा वही 'ढाक के तीन पात'। मंत्री पद के दावेदारों को 'तारीख पर तारीख' मिल रही है लेकिन नतीजा सिफर है। अब खबर है कि बजट सत्र के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल का काम होगा। इसमें उन मंत्रियों की छुट्टी की जाएगी, भाजपा की आंतरिक रिपोर्ट में जिन पर हार का खतरा मंडरा रहा है। उनकी जगह क्षेत्रीय एवं जातीय संतुलन साधते हुए मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाएगा। निर्णायक मंडल में शामिल पार्टी के एक पदाधिकारी का कहना था कि फेरबदल चूंकि चुनाव से ठीक पहले हो रहा है, इसलिए मंत्रिमंडल में जगह नेताओं का चेहरा देखकर नहीं दी जाएगी। निर्णय विधानसभा चुनाव में लाभ को ध्यान में रख कर लिया जाएगा। इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित भाजपा के अन्य बड़े नेताओं को भरोसे में ले लिया गया है। सिंधिया का जिक्र इसलिए जरूरी है क्योंकि उनके समर्थकों की वजह से मंत्रिमंडल में संतुलन नहीं है। फेरबदल में इस कमी को दूर किया जाएगा।
लोकसभा का अनुसरण कर टाल सकते थे विवाद....
हंगामे की भेंट चढ़ना मध्यप्रदेश विधानसभा की नीयति बन गई है। सदन के अंदर गुरुवार-शुक्रवार को जो हुआ, साफ है कि बजट जैसा महत्वपूर्ण सत्र भी खत्म होने की ओर अग्रसर है। यह स्थिति कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी के निलंबन के बाद निर्मित हुई। स्पीकर और सत्तापक्ष चाहते तो इस मामले का पटाक्षेप लोकसभा की तर्ज पर कर सकते थे। लोकसभा में राहुल गांधी ने अडानी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर आरोप लगाए। सत्तापक्ष का कहना था कि सभी आरोप गलत हैं। यहां राहुल गांधी के निलंबन की मांग करने की बजाय उनके द्वारा मोदी-अडाणी को लेकर कहीं गई बात कार्रवाई से विलोपित कर दी गई। पटवारी ने कोई गलत बात कह दी थी तो लोकसभा का अनुसरण कर उसे कार्रवाई से विलोपित किया जा सकता था। इसकी बजाय उन्हें निलंबित कर विवाद बढ़ा दिया गया। लिहाजा, हंगामा हो गया। कांग्रेस स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आई। नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने पुस्तक उनकी ओर फेंकने का आरोप लगा कर संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा को निलंबित करने की मांग कर डाली। सत्तापक्ष ने सज्जन वर्मा और विजयलक्ष्मी साधौ के खिलाफ विशेषाधिकार हनन की सूचना दे दी। हंगामा हुआ और सदन की कार्रवाई 13 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी गई। अब बजट सत्र में कुछ न होना तय है।
‘विंध्य’ को साधे रखने शिवराज की ‘तुरुप चाल’....
विधानसभा के पिछले चुनाव में विंध्य अंचल ने भाजपा की झोली सीटों से भर दी थी। उसे 30 में से 24 सीटों पर जीत मिली थी। पिछले कुछ समय से भाजपा को रिपोर्ट मिल रही है कि विंध्य में इस बार पांसा पलट सकता है। भाजपा की तुलना में कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। बस क्या था, भाजपा और सरकार चौकन्ने हुए और पूरा ध्यान इस अंचल पर केंद्रित कर दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा की गईं दो घोषणाएं विंध्य को साधे रखने की दिशा में चली गईं ‘तुरुप चाल’ हैं। उन्होंने 7 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की प्रतिमा का अनावरण करने की घोषणा कर दी। अर्जुन सिंह कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे हैं और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह के पिता हैं। खास बात यह है कि विंध्य का नायक कह कर उनकी मूर्ति के अनावरण की मांग भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी द्वारा की जा रही थी। दूसरा, रीवा जिले के मऊगंज में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने मऊगंज को नया जिला बनाने का ऐलान कर दिया। इसमें रीवा जिले की चार तहसीलें शामिल होंगी। अर्जुन सिंह से जुड़ी घोषणा कर मुख्यमंत्री ने एक तीर से कई निशाने साधे। अपने विधायक नारायण की नाराजगी दूर की और अर्जुन सिंह को चाहने वालों की सहानुभूमि हासिल कर ली। मऊगंज को प्रदेश का 53 वां जिला घोषित कर दूरदराज के लोगों का दिल भी जीत लिया।
नरोत्तम के दिल्ली दौरे से अटक गई थीं सांसें...!
प्रदेश भाजपा में बदलाव को लेकर पार्टी नेताओं में किस कदर डर है, यह गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा के अचानक दिल्ली जाने के दौरान देखने को मिला। भाजपा में सन्नाटे की स्थिति थी। दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिस तरह निश्चिंत होकर काम कर रहे हैं, इसे देख कर उनकी कुर्सी खतरे से बाहर बताई जाने लगी है। उनके नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव की चर्चा होने लगी है और अटकलें हैं कि मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए उन्हें फ्री हैेंड मिल गया है। लेकिन संगठन में बदलाव को लेकर चचार्एं अब भी नहीं थमी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि नेतृत्व संगठन में बदलाव कर सकता है। इसीलिए बजट सत्र के दौरान जैसे ही नरोत्तम अचानक हवाई यात्रा कर दिल्ली गए, अटकलों का बाजार गर्म हो गया। कहा जाने लगा की नरोत्तम को प्रदेश संगठन की कमान सौंपी जा सकती है। समूचा भाजपा कार्यालय सन्नाटे में आ गया। भाजपाई खेमों में ‘कहीं खुशी, कहीं गम’ के नजारे दिख गए। हालांकि बाद में जब पता चला कि नरोत्तम एक व्यक्तिगत केस के सिलसिले में दल्ली गए हैं, तब नेताओं के दिमाग का टेंशन कम हुआ। इससे भाजपा के अंदर बदलाव को लेकर संशय की स्थिति का पता चलता है। भाजपा के मौजूदा नेतृत्व ने अपनी इमेज ही ऐसी बना रखी है कि वह कब क्या निर्णय ले ले, कोई नहीं जानता।
मुसीबत से घिरे जीतू को याद आए भावी सीएम....
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से चेहरा कौन होगा और होगा भी या नहीं, इसे लेकर संशय की स्थिति है। पार्टी के अंदर इसे लेकर बवाल मच चुका है। जीतू पटवारी के एक कथन से यह मामला फिर गरमा सकता है। विधानसभा में बजट सत्र के लिए निलंबित किए जाने के बाद पटवारी ने पहली बार कहा कि कांग्रेस भावी मुख्यमंत्री कमलनाथ के नेतृत्व में यह लड़ाई लड़ेगी। कांग्रेस ने जो प्रेस नोट जारी किया, उसमें भावी मुख्यमंत्री शब्द पर खास फोकस किया गया। कमलनाथ ने इस पर आपत्ति भी नहीं जताई। इससे पहले कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताते हुए प्रदेश भर में बैनर-पोस्टर लगाए गए थे। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी जेपी अग्रवाल ने साफ कर दिया था कि पार्टी में चेहरा आगे कर चुनाव लड़ने की परंपरा नहीं है। चुनाव बाद कांग्रेस विधायक दल और पार्टी नेतृत्व इस बारे में फैसला लेगा। यही बात अरुण यादव और अजय सिंह ने दोहराई थी। जीतू पटवारी ने भी लगभग ऐसी ही बात कही थी। कमलनाथ को कहना पड़ा था कि वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं है। इसके बाद कमलनाथ को भावी मुख्यमंत्री बताते हुए लगाए गए पोस्टर-बैनर गायब हो गए थे। निलंबन के कारण मुसीबत में घिरे पटवारी ने फिर यह राग छेड़ दिया। एक सवाल के जवाब में अरुण यादव ने फिर पुरानी बात दोहरा दी, मामला फिर गरमा सकता है।
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