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अपना एमपी गज्जब है..64 लाड़ली बहना करेगी बेड़ा पार.. उसे मिल जायेंगे पूरे चार हजार..


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार उदासी मन काहे को करे.. मशहूर गायक हरिओम शरण के गए भजन की इन लाइनों को आपने कभी न कभी जरूर सुना होगा!क्योंकि आमतौर पर हर मंदिर और भजन संध्या में यह भजन जरूर बजता है!या गाया जाता है। लेकिन इन दिनों एमपी में मुख्यमंत्री सहित पूरी बीजेपी इस भजन की पैरोडी गुनगुना रही लगती है।इस पैरोडी में भगवान की जगह "लाडली बहना" ले ली है।दरअसल चुनावी साल में मुख्यमंत्री ने इस बार "लाडली" बहना पर दांव लगाया है।इससे पहले वे बेटियों,भांजियों, बूढ़ी माताओं और विवाह योग्य कन्याओं पर "इन्वेस्ट" करते रहे हैं।उनके इस दांव से कांग्रेस चारो खाने चित्त हो गई है!अब वह मैं भी ,मैं भी का राग अलाप रही है! सब जानते हैं कि शिवराज सिंह जब विदिशा के सांसद थे तब अपने संसदीय क्षेत्र में गरीब कन्याओं के सामूहिक विवाह कराते थे।मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने प्रदेश में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के साथ लाडली लक्ष्मी योजना शुरू की।इस योजना को लगभग पूरे देश में ख्याति मिली।कई राज्यों और केंद्र की सरकार ने इसे अपनाया भी।इसके साथ ही उन्होंने बच्चियों और महिलाओं के लिए कई योजनाएं शुरू की।बुजुर्ग महिलाओं को सरकारी खर्च पर तीर्थयात्रा भी कराई। करीब 17 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर जमे शिवराज ने कुछ दिन पहले लाडली बहना योजना लाने की बात कही थी।एक मार्च 2023 को पेश अपने बजट में उन्होंने इस योजना को अमलीजामा भी पहना दिया। बजट घोषणा के मुताबिक शिवराज सिंह की सरकार 23 से 60 वर्ष तक की महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए की आर्थिक मदद देगी।इस काम के लिए उनकी कर्ज में डूबी सरकार ने अगले वित्तीय वर्ष में आठ हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।वैसे उनका पूरा बजट ही महिलाओं पर केंद्रित है।वित्तमंत्री के मुताबिक करीब 3,14,024 करोड़ के बजट में 1,02,976 करोड़ महिलाओं और बच्चियों के लिए रखे गए हैं।मतलब कुल बजट का करीब एक तिहाई हिस्सा "नारी शक्ति" को समर्पित किया गया है। यह भी जान लीजिए कि प्रदेश के कुल 5 करोड़ 39 लाख मतदाताओं में 2 करोड़ 60 लाख महिलाएं हैं।आदिवासी जिलों मंडला,डिंडोरी,बालाघाट,झाबुआ और अलीराजपुर की करीब डेढ़ दर्जन विधानसभा सीटों पर महिला मतदाता पुरुष मतदाताओं से ज्यादा हैं। आंकड़ों से यह साफ है कि इस फैसले का सीधा असर आधी आबादी पर पड़ेगा।जो सात महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों पर गहरा असर डालेगा।यह भी दीवार पर लिखा दिखाई दे रहा है कि इसका लाभ किसे मिलने वाला है! सरकार ने अब तक जो नियम बताए हैं उनके हिसाब से प्रदेश की करीब एक करोड़ महिलाएं इस योजना के दायरे में आएंगी। इनमें 23 साल से लेकर 60 साल तक की महिलाएं शामिल होंगी।अविवाहित लड़कियां इस योजना के दायरे में नहीं आएंगी। इस उम्र की जो महिलाएं अभी 600 रुपए पेंशन पा रही हैं उन्हें बढ़ाकर 1000 रुपए दिए जाएंगे। सरकार इसी सप्ताह से इस योजना के फार्म भरवाने का काम शुरू करेगी।उसका इरादा इस साल के अगस्त महीने से महिलाओं के खाते में पैसा पहुंचाने की है। राज्य में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं।अगर अगस्त में एक हजार रुपए लाभार्थी महिला के खाते में पहुंचना शुरू हुए तो जब तक वह वोट डालने जायेगी, कम से कम चार हजार रुपए उसके खाते में पहुंच जाएंगे!साथ में यह भरोसा भी रहेगा कि यदि बीजेपी सरकार रही तो आगे भी हर महीने घर बैठे हजार रुपए मिलते रहेंगे! अतः यह सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि वोट किसे और क्यों मिलेगा! वैसे आजकल देश में जो इलेक्शन पैटर्न बन गया है उसमें हर पार्टी और प्रत्याशी "एक वोट" पर औसत दो हजार रुपए तक खर्च करता है।इसमें नगदी, सामान और शराब शामिल रहती है। इस दृष्टि से भी देंखे तो बीजेपी का यह दांव "धोबीपाट" जैसा लगता है।पैसा सरकारी खजाने से!वोट अपने खाते में! इस पर कोई सवाल नही उठा सकता है।सरकार है.. वह अपनी "जनता" के कल्याण के लिए कुछ भी कर सकती है।घर बैठे करोड़ों लोगों को सालों तक मुफ्त खाना खिला सकती है।उनके खाते में पैसे भेज सकती है।रहने को घर और मकान बनाने को जमीन दे सकती है। भला कौन रोक सकता है उसे!इसमें अगर कोई टांग अड़ा सकता है तो वो है सरकारी अफसरों का "हिस्सा"! इसका ताजा उदाहरण भी देख लीजिए!जैसे ही वित्तमंत्री ने सदन में लाडली बहना को एक हजार देने की घोषणा की!कांग्रेस अध्यक्ष और प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री कमलनाथ चिल्ला पड़े ..हम डेढ़ हजार देंगे! वे यह नही कह पाए कि यह योजना वोट खरीदने को लाई गई है।अब कमलनाथ को यह कौन समझाए कि "देंगे" और "दे दिया" में बहुत फर्क है!इधर पैसा सरकारी खजाने से सीधा खाते में वह भी मतदान से पहले।और आप कह रहे हो हम भी देंगे!अरे दोगे तो तब जब देने लायक होगे! अभी तो खेल हो गया।चार हजार की पेशगी पर लाखों वोट पक्के हुए!वो कहावत है न.. हर्र लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए!सरकारी खजाने से सीधी " डील" हो गई।वह भी थोकबंद वोटों की! फिर अभी तो यह अंगड़ाई है..आगे बहुत लड़ाई है ..नारे की तर्ज पर बहुत कुछ आने वाला है। कुछ भी हो अपना एमपी है तो गज्जब! मुफ्त में वोट पक्के कर लिए!सामने वाला कुछ कह भी नही पा रहा है!

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