राजवाड़ा-2-रेसीडेंसी ,बात यहां से शुरू करते हैं...
अरविंद तिवारी,वरिष्ठ पत्रकार
हिसाब-किताब हो गया और पेंडिंग फाइलें भी निपट गईं
विकास यात्रा के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सभी मंत्रियों को अचानक भोपाल तलब कर लिया। जैसे ही सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल हुई कई मंत्रियों के दिल की धड़कन बढ़ गई। वे इसे मंत्रिमंडल के संभावित विस्तार से जोड़कर देखने लगे और अपने संपर्कों के माध्यम से यह टटोलना शुरू कर दिया कि कहीं उन्हें रवानगी तो नहीं मिल रही है। कुछ ने दिल्ली दरबार के दरवाजे भी खटखटा दिए, कुछ हिसाब-किताब व्यवस्थित करने में लग गए तो कुछ ने पेंडिंग फाइलें निपटा दी। ऐसा कुछ नहीं हुआ, तो सबने राहत की सांस ली। हां, भोपाल से लौटने के बाद अब मंत्री यह जरूर कह रहे हैं कि अब काम में मन लगा रहेगा।
कभी गुस्सा कभी प्यार,अरुण यादव की मजबूरी
भावी मुख्यमंत्री के मुद्दे पर मुखर होकर अरुण यादव ने एक तरह से कमलनाथ से अपनी नाराजगी का इजहार किया था। 'साहब' से नाराज कांग्रेसी यादव की इस मुखरता के बाद उम्मीद से हो गए थे। यादव के बाद अजयसिंह राहुल भी इसी लाइन पर मुखर हुए तो उम्मीद और बढ़ गई। लेकिन कुछ ही दिन बाद यादव कमलनाथ के साथ बागेश्वर महाराज के दरबार में धोक लगाते नजर आए, तो माजरा समझ में आ गया। दरअसल, यादव यह अच्छे से समझते हैं कि यदि प्रदेश में राजनीति करना है तो बिना कमलनाथ के ठोर ठिकाना मिल नहीं सकता। वैसे इस स्टाइल में नाराजगी का इजहार यादव समय-समय पर करते रहते हैं और कमलनाथ उन्हें समझा भी लेते हैं।
इस बार किसके हाथ में रहेंगे 'जावली' के सूत्र
उड़ती-उड़ती खबर तो यह आ रही है कि इस बार का जावली मंत्री भूपेन्द्र सिंह के चार इमली स्थित निवास पर बनेगा। जावली माने भाजपा की चुनावी रणनीति का पर्दे के पीछे का सबसे बड़ा केंद्र। 2003 में जब प्रदेश में उमा भारती की अगुवाई में चुनाव लड़ा गया था, तब अनिल दवे और उनकी टीम बेहद सक्रिय थी और उन्हीं की रणनीति के कारण भाजपा भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। इसके बाद भी ऐसा प्रयोग हर चुनाव के दौरान हुआ, लेकिन जो करिश्मा दवे और उनकी टीम ने दिखाया था, वह फिर संभव नहीं हो पाया। अब दवे इस दुनिया में नहीं हैं, उनके खास सहयोगी की भूमिका निभाने वाले विजेश लुणावत भी दिवंगत हो चुके हैं। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि इस बार जावली की कमान किसके हाथों में रहेगी।
सबकी निगाहें प्रतिनिधि सभा की बैठक पर
मार्च के पहले पखवाड़े में होने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधिसभा की बैठक पर सबकी निगाहें हैं। इस बैठक में संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के जिम्मेदार लोग तीन दिन तक एक साथ बैठकर इस बात पर विचार-विमर्श करेंगे कि अगले 12 महीने के लिए किन मुद्दों पर सबसे ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। इस बैठक के निष्कर्ष सरकार के लिए मार्गदर्शी सुझाव के रूप में होते हैं और पुराना अनुभव तो यही कहता है कि इन्हें जस का तस मान भी लिया जाता है। इस बार इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि सालभर बाद होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही ज्यादातर मुद्दे तय होना है।
अपनों ने ही चर्चा में ला दी सेठ और हाली की कहानी
बेटे को अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रहे प्रदेश के कैबिना मंत्री तुलसी सिलावट की परेशानी उनके ही कुछ पुराने सहयोगी समय-समय पर बढ़ाते रहते हैं। ये सहयोगी आए तो सिलावट के साथ ही कांग्रेस से भाजपा में हैं, लेकिन इन दिनों इनकी महत्वाकांक्षा ज्यादा ही कुलाचे मारने लगी है। पिछले दिनों विकास यात्रा के दौरान मंत्री पुत्र ने एक जगह ग्रामीणों के बीच हाली और सेठ की कहानी रोचक अंदाज में सुना दी। उनका इतना कहना भर था कि कुछ ही मिनटों में यह खबर इस अंदाज में वायरल हो गई मानो चिंटू ने किसानों का बड़ा अपमान कर दिया। चिंटू और सिलावट के समर्थक संभलते तब तक तो अर्थ का अनर्थ जैसी स्थिति हो गई।
तौबा-तौबा... रिटायरमेंट के बाद भी इतनी सक्रियता
बी.आर. नायडू भारतीय प्रशासनिक सेवा में अलग-अलग भूमिका में रहते हुए इतने चर्चित नहीं हुए, जितना रिटायरमेंट के बाद हो रहे हैं। नायडू की बेटी और दामाद दोनों आईपीएस अफसर हैं। बेटी जिस अंदाज में काम कर रही है, उसकी पुलिस मुख्यालय में बड़ी चर्चा है और मामला लिखा-पढ़ी में भी आ गया है। दामाद एक बड़े शहर में जिम्मेदार पद पर हैं, बहुत सौम्य और शालीन हैं, पर किसी जिले में पोस्टिंग नहीं हो पा रही है। इसके पीछे भी बड़ा कारण नायडू को ही माना जा रहा है। वैसे रिटायरमेंट के बाद जिस तरह से जमीन से जुड़े मामलों में उनकी दिलचस्पी बढ़ी है, उसका नुकसान भी बेटी तो नहीं दामाद को जरूर हो रहा है।
यहां भी रुतबा था, वहां भी दबदबा है
अलग-अलग विभागों में महत्वपूर्ण भूमिका में रहे चुके मध्यप्रदेश कॉडर के 1992 बैच के दो आईएएस अफसर वी.एल. कांताराव और उनकी पत्नी नीलम राव का दबदबा दिल्ली में भी देखने को मिल रहा है। राव केंद्रीय दूरसंचार मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव हैं, तो श्रीमती राव देश की एम्प्लाई प्राविडेंट फंड कमिश्नर। दोनों ही बहुत साफ-सुथरी छवि वाले दबंग अफसर हैं और जल्दी ही भारत सरकार के सचिव पद के लिए इनका एम्पैनलमेंट होने वाला है। दोनों की खासियत यह भी है कि मध्यप्रदेश में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो या भाजपा की, दोनों ही दौर में राव दंपति अहम भूमिका में ही रहे।
चलते-चलते
संभागायुक्त पवन शर्मा की हाजिर जवाबी की इन दिनों नेताओं और अफसरों के बीच बड़ी चर्चा है। पिछले दिनों हुए चार-पांच बड़े आयोजनों के दौरान संभागायुक्त अक्सर जनप्रतिनिधियों से रूबरू हुआ करते थे। विषय को बहुत ही सरलता से रखने और उस पर उठने वाले सवालों का बेबाकी से जवाब जनप्रतिनिधियों का खासा पसंद आया और इसी कारण कई मौकों पर मातहत अफसर चुने हुए लोगों के निशाने पर आने से बच भी गए।
पुछल्ला
मध्यप्रदेश इस बार भले ही रंजी ट्रॉफी नहीं जीत पाया है, लेकिन जिस तरह से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड एमपीसीए पर भरोसा जता रहा है, उससे यह तो स्पष्ट हो ही गया है कि अभिलाष खांडेकर के नेतृत्व में जो टीम काम कर रही है, उस पर अब बीसीसीआई आंख मीचकर भरोसा करने लगा है। यही कारण है कि तमाम प्रदेशों के दावों को बावजूद हिमाचल प्रदेश के हाथ से निकला भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट इंदौर को मिल गया।
अब बात मीडिया की
वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने स्व. काशीनाथ त्रिवेदी स्मृति व्याख्यान में जिस बेबाकी से अपनी बात कही, उसने सभागार में मौजूद लोगों को बुरी तरह झकझोर दिया। इंदौर की समृद्ध विरासत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी गुल्लक अब खाली हो गई है और दुर्भाग्य है कि इस शहर को अब पोहे-जलेबी के शहर के नाम से जाना जाता है।
दैनिक भास्कर में एक बड़ा हादसा पिछले दिनों टल जरूर गया, लेकिन इस हादसे के बाद जिस तरह से मेल के माध्यम से बातें रखी जा रही हैं, वह मैनेजमेंट के लिए एक नई चिंता का विषय हो गया है। वह यह पता लगाने में लगा हुआ है कि आखिर घटना का कारण था क्या? कहावत है न, जितने लोग, उतनी बातें।
महाशिवरात्रि के मौके पर कवरेज के लिए उज्जैन पहुंची टाइम्स नाउ की सीनियर एंकर नैना यादव के साथ जो कुछ घटा उसकी गूंज उज्जैन से लेकर दिल्ली तक रही। नैना ने जिस अंदाज में सोशल मीडिया पर अपनी आपबीती सुनाई, उससे सरकार की चिंता बढऩा स्वाभाविक है।
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