भाजपा में अहम है 14 फरवरी से 12 मार्च...
ना काहू से बैर
राघवेंद्र सिंह,वरिष्ठ पत्रकार
भोपाल । दिल्ली में लोक सभा का बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू होकर 6 अप्रैल तक चलेगा । इस बीच 14 फरवरी से 12 मार्च तक अवकाश भी रहेगा। यही अवकाश का समय भारतीय जनता पार्टी में उन राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है जहां 2023 के अंत तक विधानसभा के चुनाव होने है। मंत्रिमंडल विस्तार और संगठन में बदलाव की अटकलें लोकसभा बजट सत्र के अवकाश के दिनों में परवान चढेंगी। चुनाव होने वाले जिन नौ में से तीन महत्वपूर्ण हिंदी भाषी राज्यों को लेकर सबकी नजर लगी है उनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ के साथ मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा अहम है।
आमतौर से लोकसभा हो या विधानसभा बजट सत्र के चलते संगठन और सरकारों में बदलाव नहीं होते लेकिन यह मोदी और अमित शाह की भाजपा है। जो अभी तक नहीं होता आया है यह वही करने के लिए जानी जाती है। इसलिए कभी भी कुछ भी हो सकता है और इसके लिए तैयार रहना चाहिए। केंद्र में मोदी मंत्रिमंडल का भी विस्तार हो सकता है और जहां राज्यों में सरकारें हैं वहां मंत्रिमंडल और संगठन में भी फेरबदल भी संभव है। चूंकि भाजपा नेतृत्व को चौकाने की आदत है सो वह कभी भी कुछ भी कर सकता है। इसलिए नेतृत्व को जानने वाले भी ज्यादा गुणाभाग किए बिना जो करने को कहा जाए उसे पूरा करने में लगे रहते है। मध्यप्रदेश के संदर्भ में सोचा समझा जाए तो केंद्रीय नेतृत्व को यहां के लगभग हर खास नेता के बारे में सब कुछ पता है। उनकी आंख - कान बने सूत्र उन्हें सूबे की सियासत के बारे में सुना भी रहे और दिखा भी रहे हैं। संगठन और सरकार में चल रहे महाभारत को लेकर जहां- जहां केंद्रीय नेतृत्व के "संजय" बैठे है उनकी भूमिका हर गुजरते दिन के साथ अहम होती जा रही है। इसलिए बदलाव के साथ होने वाली सम्भावित बगावत को काबू में करने के नुस्खे तैयार रखे जा रहे है। जैसा गुजरात मे किया गया था। गुजरात मे बड़े बदलाव के बाद भी पार्टी में सुई पटक शांति थी। इसलिए परिणाम भी मनमाफिक आए। बहुमत रिकार्ड तोड़ मिला। लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जय प्रकाश नड्डा वाले हिमाचल में हालात एकदम विपरीत थे बगावत की महाभारत भी हुई और पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। केंद्रीय नेतृत्व में हिमाचल की हार को सबक के तौर पर लिया है। इसलिए मध्य प्रदेश, राजस्थान,छत्तीगढ़ और दक्षिण का कर्नाटक उनके रडार पर सबसे ऊपर है। लोकसभा सत्र के चलते 13 राज्यों के राज्यपाल और उपराज्यपाल बदल दिए गए। इसलिए जो नेता हाईकमान की नजर में चढ़े हैं और नजर से उतरे हैं सब दम साध कर बैठे हैं। उन्हें अंदेशा है कि कभी भी कोई सूची जारी हो सकती है। भाजपा के जानकार समझते हैं कि बदलाव की खबर भी बदलने वाले के घर भोजन पर दी जाए तो आश्चर्यजनक नही होगा। सबको पता है कि दिवगंत नेता पूर्व सीएम बाबूलाल गौर को जब मन्त्रिमण्डल से हटाया जा रहा था उसके कुछ घण्टे पहले ही दो वरिष्ठ नेता उनके आवास पर गए और उनसे कहा कि वे मंत्री पद से इस्तीफा दे दें क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व भी यही चाहता है। एक बार तो एक संगठन महामंत्री ने सीएम को बुलाकर कह दिया था कि पद से त्यागपत्र दे दीजिए क्योंकि आपने विधायक दल का विश्वास खो दिया है।
यह सब जनता पार्टी या भाजपा में हुआ ऐसा नहीं है। कांग्रेस में भी ऐसा कई दफे हुआ है। जैसे तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और दो दिन बाद ही उन्हें पंजाब का राज्यपाल बना दिया गया था। अलग बात है कि बाद में अर्जुन सिंह पुनः सक्रिय राजनीति में आए उन्होंने दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा और बाद में लंबे समय तक केंद्र में मंत्री रहे। कुल मिलाकर राजनीति में कब ऊंट किस करवट बैठेगा पता नही। क्योंकि सब अनिश्चितता से भरा है।
कांग्रेस में कमलनाथ ही कमलनाथ...
मौसम के हिसाब से बसंत का मौसम विदाई की तरफ है लेकिन कांग्रेस में कमलनाथ ऐसे मौसम की तरह हैं जो उनके विरोधियों के लाख चाहने पर भी विदा होने के मूड में नहीं हैं। पहले वे कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं फिर मुख्यमंत्री, पीसीसी चीफ के पद पर रहते हए 15 महीने सरकार चलाने के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनते है। नेता प्रतिपक्ष छोड़ने के बाद नाथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मजबूती से बने हुए और अब आए दिन "सीएम इन वेटिंग" और "मुख्यमंत्री अवश्यंभावी" के बीच तभी विधानसभा चुनाव लड़ने तो कभी नहीं लड़ने की बात कर सियासत के मौसम की सुर्खियों में बने हुए है। यद्यपि इस बीच प्रदेश कांग्रेस के दो बड़े नेता यह भी कहते हैं कांग्रेसमें मुख्यमंत्री विधायक चुनते है। इस तरह नाथ के सीएम प्रोजेक्ट होने के गुब्बारे की हवा निकल जाती है। पिछले दिनों कमलनाथ द्वारा मीडिया को दिया गया एक भोज भी खूब सुर्खियों में रहा इसमें प्रत्याशी चयन से लेकर महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करने के बजाए उन्होंने कहा किसानों की बातें कर्मचारियों की पेंशन के मुद्दे कांग्रेस के वचन पत्र में जोड़े जाएंग । इसलिए अभी कुछ भी कहना मुनासिब नहीं है। उम्मीदवार चयन को लेकर उन्होंने संकेत दिए कि पार्टी सर्वे के साथ वे खुद भी भारत जोड़ो यात्रा में मिले फीडबैक को अहम मानते हैं। इसके अलावा वे प्रदेश में जहां भी जा रहे हैं स्थानीय लोगों और कार्यकर्ताओं से बातचीत कर अपना भी सर्वे तैयार कर रहे हैं जो टिकटों का वितरण का आधार बनेगा।
कांग्रेस के भीतर एक बड़ा वर्ग जो पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से जुड़ा है उनके प्रदेश की राजनीति में लौटने की प्रतीक्षा कर रहा है पिछले दिनों राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में सूत्रधार के रूप में सक्रिय थे। उनकी वापसी पर मध्य प्रदेश कांग्रेस में लोगों की सक्रियता बढ़ेगी और प्रत्याशी चयन को लेकर गुणा भाग तेज हो जाएंगे।
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