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पेंशनरों की पेंशन आयकर से हो मुक्त ! जनप्रतिनिधियों को भी नहीं दी जाए पेंशन !


डॉ. चन्दर सोनाने
 
                   केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों को 60 वर्ष या 62 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर उन्हें पेंशन की पात्रता होती है। पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है। करीब 35-40 साल की सेवा करने के बाद ही उन्हें पेंशन की पात्रता होती है। और यह पेंशन वेतन नहीं होता है। यह पेंशन जीवन निर्वाह भत्ता होता है ! सरकार वेतन पर तो आयकर ले सकती है, किन्तु जीवन निर्वाह भत्ते पर उसे आयकर लेने का नैतिक और संवैधानिक अधिकार नहीं है। इसलिए पेंशनरों की पेंशन पर आयकर तत्काल बंद किया जाना चाहिए। 
                 लोकसभा सदस्यों और राज्यसभा सदस्यों को भी पेंशन मिल रही है। इसी प्रकार राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों को अर्थात् विधायको को भी पेंशन दी जा रही है। जनप्रतिनिधियों को पेंशन देना संवैधानिक नहीं है। इसलिए लोकसभा और राज्यसभा सदस्य तथा राज्यों के विधायको को पेंशन देना तत्काल बंद कर देना चाहिए। सांसदों और विधायकों को एक बार भी चुने जाने के बाद उन्हें पेंशन दी जा रही है और यदि वे दूसरी, तीसरी या अनेक बार सांसद या विधायक चुने जाते हैं तो उन्हें अनेक पेंशन और सांसद विधायक का वेतन भी मिलता है। ये दोहरी - तिहरी सुविधा तत्काल बंद होना चाहिए। जनप्रतिनिधि 5 साल के लिए चुने जाते हैं, जबकि शासकीय कर्मचारी 35-40 साल की सेवा देने के बाद ही पेंशन के लिए पात्र होते हैं। इसलिए भी जनप्रतिनिधियों की पेंशन देना तत्काल बंद किया जाना चाहिए।
              जनप्रतिनिधियों को पेंशन देने के बारे में एक महत्वपूर्ण याचिका की सुनवाई राजस्थान हाईकोर्ट में फिलहाल चल रही है। राजस्थान के 508 पूर्व विधायकों को हर माह पेंशन देने के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश श्री पंकज मित्थल और जस्टिस सुधा मेहता की खंडपीठ में यह सुनवाई चल रही है। श्री मिलापचंद डांडिया की जनहित याचिका पर उनके अधिवक्ताओं ने अदालत को बताया कि राजस्थान प्रदेश में 508 पूर्व विधायकों को करीब 26 करोड़ रूपए सालाना पेंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं। इनमें से कई वर्तमान में भी विधायक हैं। राज्य सरकार राजस्थान विधानसभा अधिकारियों और सदस्यों की परिलब्धियाँ एवं पेंशन अधिनियम 1956 और राजस्थान विधानसभा सदस्य पेंशन नियम 1977 बनाकर पूर्व विधायकों को पेंशन का लाभ दे रही है। जबकि संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्यसूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायक को पेंशन देने का प्रावधान ही नहीं है। याचिका में यह भी कहा गया कि पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है, जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते है, बल्कि वे जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते है और उनका तय 5 साल का कार्यकाल होता है। याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी है कि जनप्रतिनिधि को राज्य का सेवक भी नहीं माना जाता। विधायकों की पेंशन आमजन पर भार है और ऐसे में इन पूर्व विधायकों पर पैसा नहीं लुटाया जा सकता। याचिकाकर्ता ने इस बात पर भी जोर दिया कि पूर्व विधायकों को संविधान में पेंशन का प्रावधान ही नहीं है, इसलिए यह संवैधानिक भी नहीं है। 
                 राजस्थान की ही तरह देश के सभी राज्यों में पूर्व विधायकों को पेंशन दी जाती है। इसी प्रकार सांसदों को भी हर महीने पेंशन के रूप में मोटी रकम मिलती है। मजेदार बात यह भी है कि यदि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बन जाता है तो वह इस सुविधा का पात्र हो जाता है। कई बार विधायक अगर सांसद भी बन जाता है वह दोनों की पेंशन का लाभ उठाता है। कई राज्यों में 7-7 बार चुने गए विधायक हैं और वे सातों बार की पेंशन ले रहे हैं। इन्हीं सभी विसंगतियों को देखते हुए देश में पहली बार आप की पंजाब सरकार ने यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया है कि कोई भी विधायक कितनी बार भी विधायक बने, उसे पेंशन सिर्फ एक बार ही मिलेगी। यह भी नहीं मिलना चाहिए। किन्तु पंजाब की आप सरकार ने क्रान्तिकारी निर्णय लेकर अन्य राज्यों के सामने एक आदर्श उदाहरण तो प्रस्तुत कर ही दिया है।
                  चूँकि शासकीय कर्मचारी एक लोकसेवक होता है और लोकसेवक को पेंशन देने का संवैधानिक प्रावधान भी है। किन्तु गौर करने लायक बात यह है कि सेवा से निवृत्त हुए कर्मचारी को मिलने वाली पेंशन उसके और उसके परिवार के लिए जीवन निर्वाह के लिए होती है। इसलिए इस पर आयकर लगना न्याय संगत नहीं है। अतः पेंशनरों की पेंशन पर आयकर लेना तत्काल बंद किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सांसदों और विधायकों को भी मिलने वाली पेंशन पूर्णतः बंद की जानी चाहिए। इस पर केन्द्र और राज्यों को गंभीरतापूर्वक सोचना चाहिए। 
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