पुलिस की साप्ताहिक छुट्टी पर करें दो टूक फैसला
श्रीप्रकाश दीक्षित ,वरिष्ठ पत्रकार
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ने पुलिस के मैदानी अमले की चौबीस घंटे ड्यूटी पर घड़ियाली आंसू बहाते हुए उन्हें साप्ताहिक छुट्टी देने की पैरवी की है.अलबत्ता तुरंत यह सुविधा देने के बजाए उन्होंने इस पर विचार के लिए हाई पावर टीम (कमेटी) बनाने को कहा है.अभी बहुत समय नहीं हुआ जब गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने कहा था की साप्ताहिक अवकाश देने के लिए विधानसभा में विधेयक लाया जाएगा.? उनके बयान से किनारा करते हुए अब मुख्यमंत्री १३+३ साल कार्यकाल के बाद सिर्फ विचार करने की घोषणा कर रहे हैं.कुल मिलकर पुलिस फोर्स को साप्ताहिक छुट्टी देने पर उनके इरादे नेक नजर नहीं आते,तभी तो विचार ही करने और संस्थागत व्यवस्था बनाने जैसी लटकाने वाली बातें वो कर रहे हैं.
साप्ताहिक छुट्टी विधेयक के गृहमंत्री मिश्र के बयान से मुझे पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू करने की तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह की झाँसेबाजी याद हो आई.इसे लागू करने के लिए विधानसभा में बिल पारित कराने का नाटक कर मंजूरी के लिए केंद्र की भाजपा सरकार को भेज दिया था जबकि साधारण अधिसूचना से यह लागू की जा सकती थी.इसे शिवराज द्वारा पिछले साल रातोंरात लागू करने से समझा जा सकता है.वो मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रणाली लागू करने की घोषणा करते रहे पर १३+२ साल तक लागू नहीं किया.जब प्रधानमंत्री मोदी ने हैदराबाद और लखनऊ की आईपीएस बैठकों में प्रणाली की हिमायत की तब शिवराज ने आनन फानन में इसे लागू कर दिया.
जहाँ तक साप्ताहिक छुट्टी की सुविधा का सवाल है तो क्या कमलनाथ,क्या बाबूलाल गौर और क्या शिवराज सबने पुलिस फोर्स को छला है.फिलहाल पुलिस विभाग में बीस बाईस हजार पद खाली पड़े हैं जबकि उसे नित नई जवाबदारियों से लादा जा रहा है.ऐसे में बिना राजनैतिक इच्छाशक्ति के यह सुविधा मिलना दूर की कौड़ी ही लगती है.इसलिए शिवराज चिंतन मनन और विचार की दुहाई दे रहे हैं.उन्हें बयानबाजी के बजाए अविलम्ब साप्ताहिक छुट्टी की घोषणा करना चाहिए.
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