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क्लोज डक्ट प्रोजेक्ट : जनप्रतिनिधियों की चुप्पी है आश्चर्यजनक


 डॉ. चन्दर सोनाने
               सिंहस्थ 2016 में श्रद्धालुओं को शिप्रा का साफ पानी स्नान के लिए मिले, इसके लिए करीब 100 करोड़ रूपए की खान डायवर्जन योजना बनाई गई थी। किन्तु यह योजना पूरी तरह से असफल सिद्ध हो गई है। अब सिंहस्थ 2028 के लिए करीब 600 करोड़ रूपए की लागत से क्लोज डक्ट प्रोजेक्ट पर काम शुरू होने जा रहा है। 
                इन दोनों योजनाओं में मजेदार बात यह थी कि शिप्रा शुद्धिकरण के नाम से बनाई गई इन योजनाओं में शिप्रा शुद्धिकरण का कोई प्रावधान ही नहीं है। यह दोनों योजनाएँ शिप्रा नदी को अशुद्ध करने वाली खान नदी के गंदे पानी को उज्जैन में शिप्रा नदी में मिलने से रोककर करीब 19 किलोमीटर दूर कालियादेह महल के पास शिप्रा नदी में जैसी की वैसी ही मिलाने की योजनाएँ है। सिंहस्थ 2016 में बनी करीब 100 करोड़ रूपए की खान डायवर्जन योजना में ग्राम राघौपिपलिया से खान नदी के गंदे और दूषित पानी को पाईपलाईन के जरिए जैसा था वैसा ही 19 किलोमीटर दूर कालियादेह महल के आगे शिप्रा नदी में ही मिला दिया गया। इसे ही खान डायवर्जन योजना का नाम दिया गया। इस योजना के बनने से आज तक अनेक बार यह योजना असफल होते हुए उज्जैनवासियों और जनप्रतिनिधियों ने प्रत्यक्ष देखी है। 
                 अब फिर सिंहस्थ 2028 को देखते हुए शिवराज सरकार द्वारा 600 करोड़ रूपए की लागत से खान नदी के गंदे पानी को क्लोज डक्ट के माध्यम से खान नदी के दूषित पानी को गोठड़ा के स्टापडैम से डायवर्ट करते हुए कालियादेह महल के पास वापस शिप्रा नदी में बिना पानी को शुद्ध किए छोड़ दिया जायेगा। यह क्लोज डक्ट आरसीसी बॉक्स वाली पक्की नहर रहेगी। यह करीब साढ़े चार मीटर आयताकार की सीमेंन्ट, कॉन्क्रेट के बॉक्स वाली पक्की बड़ी नालेनुमा नहर होगी। यह नहर शिप्रा नदी के समानान्तर बनाई जायेगी। इस क्लोज डक्ट की लंबाई 16.7 किलोमीटर और चौड़ाई 4.5 मीटर रहेगी। इस नहर से 40 क्यूसेक पानी डायवर्ट किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि बारिश में यह नहर काम नहीं करेगी। यानी बारिश में खान नदी का दूषित पानी पहले की तरह शिप्रा नदी में मिलता रहेगा !
  उल्लेखनीय है कि शिप्रा नदी अपने उद्गम स्थल इंदौर के पास एक पहाड़ी से निकलकर 196 किलोमीटर की दूरी तय कर रतलाम जिले के आलोट के पास शिपावरा नामक स्थान पर चंबल नदी पर मिलती है। शिप्रा नदी अपने मार्ग के दौरान इंदौर, देवास, उज्जैन और रतलाम जिले के शहरों और ग्रामीण अचलों से होते हुए चंबल नदी में मिलती है। 
              शिप्रा नदी में हर तीज, त्यौहार और पर्वो पर हजारों श्रद्धालु शिप्रा नदी में स्नान के लिए आते है। तो अभी होता यह आ रहा है कि शिप्रा का पानी खान नदी के दूषित पानी से गंदा नहीं होने पाए, इसके लिए लगभग हर साल त्रिवेणी के खान नदी पर मिट्टी का कच्चा बाँध जलसंसाधन विभाग द्वारा बना दिया जाता है। अनेक बार विशेषकर शनिश्चरी अमावस्या के पर्व पर होता यह है कि खान का गंदा पानी कच्चे बांध को तोड़कर शिप्रा में मिल जाता है। और श्रद्धालुओं को दूषित जल में ही स्नान करने के लिए बाध्य होना पड़ता है। जिला प्रशासन बरसो से यही करता आया है। अभी तक यहाँ पक्का बाँध बनाया नहीं जा सका है !
             खान नदी को डायवर्ट करने वाली क्लोज डक्ट डायवर्जन योजना में भी खान नदी के दूषित पानी को उज्जैन के पास ग्राम कोठड़ा के स्टाप डैम में इकट्ठा करते हुए जैसे का वैसा ही दूषित जल कालियादेह महल में छोड़ा जायेगा। कालियादेह महल के बाद पड़ने वाले ग्रामीण क्षेत्रों और शहरों में शिप्रा नदी के पानी को खान नदी के पानी से दूषित करने की यह मूल योजना है। यहाँ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि उज्जैन के पास कालियादेह महल के बाद रतलाम जिले के आलोट में चंबल नदी में मिलने वाली इस नदी के मार्ग में आने वाले जितने भी जनप्रतिनिधि हैं, वे सब या तो इस योजना से अनभिज्ञ है अथवा उन्हें यह भान ही नहीं है कि वे अपने ही क्षेत्र में शिप्रा नदी को खान नदी के गंदे पानी से दूषित करने की योजना के प्रति मूकदर्शक बने हुए हैं। इन सभी क्षेत्रों के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी अत्यन्त दुःखद और आश्चर्यजनक है। इन सभी जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र की शिप्रा नदी के पानी को दूषित करने वाली क्लोज डक्ट योजना का विरोध करना चाहिए। इसके साथ ही जनप्रतिनिधियों द्वारा विधानसभा में इन क्षेत्रों के ग्रामीणजन की ओर से क्लोज डक्ट के विरोध का स्वर मुखर होना चाहिए। 
                 तो फिर जनप्रतिनिधियों को क्या करना चाहिए ? उन्हें चाहिए  कि वे एक ऐसी योजना की मांग करें, जिसमें शिप्रा नदी को दूषित करने वाली खान नदी का पानी कहीं भी किसी भी स्थल पर शिप्रा में मिलने नहीं पाए। इंदौर और देवास जिले के जितने भी उद्योग शिप्रा नदी के पानी को दूषित कर रहे हैं उन्हें न केवल सख्ती से रोका जाए, बल्कि उनके दूषित जल को शुद्ध करने के बाद ही खान नदी में छोड़े जाने की सुनिश्चित व्यवस्था की जाए। इसके साथ ही इंदौर, देवास, उज्जैन और रतलाम जिले के शिप्रा नदी के किनारे बसे सभी शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों का गंदा पानी भी शिप्रा नदी में मिलने से सख्ती से रोकने की योजनाएँ बनाई जानी चाहिए। इसके लिए जनजागरण अभियान भी चलाया जाना चाहिए, ताकि लोग शिप्रा के जल में गंदे पानी को मिलने से स्वयं रोक सके।
                यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि देशभर में जलपुरूष के रूप में प्रसिद्ध श्री राजेन्द्र सिंह जी की सेवा शिप्रा नदी को सदा नीरा और शुद्ध बनाने के लिए ली जानी चाहिए। श्री राजेन्द्र सिंह जी ने करीब 10 मृतप्राय हो चुकी नदियां को भी गाँव वालों की मदद से पुनर्जीवित कर दिखाया है। उन्होंने मुख्य रूप से राजस्थान और महाराष्ट्र की लगभग सूख चुकी नदियों को पुनः जनसहयोग से प्रवाहमान बनाकर इतिहास रच दिया है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को शिप्रा शुद्धिकरण के लिए और सिंहस्थ में ही नहीं बल्कि हर पर्व पर शिप्रा के जल से ही श्रद्धालुओं को स्नान कराने के लिए जलपुरूष की सेवाएं लेने के लिए ठोस पहल करनी ही चाहिए।
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