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जातिगत जनगणना पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर


डॉ. चन्दर सोनाने
                 देश में 2021 की जनगणना कोरोना के कारण स्थगित हो गई थी। उसे अब 2023 में शुरू करने की केन्द्र सरकार की योजना है। इस जनगणना में जातिगत गणना करने से केन्द्र सरकार ने इंकार कर दिया है। किन्तु, देश में सबसे पहले बिहार ने अपने राज्य के सभी राजनैतिक दलों की सहमति से अपने राज्य में जातिगत जनगणना का निर्णय लिया है। बिहार सरकार ने 7 जनवरी 2023 से जातिगत जनगणना का काम भी शुरू कर दिया है। 
                बिहार सरकार द्वारा अपने राज्य में की जा रही जातिगत जनगणनाओं पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अनेक लोगों और संस्थाओं ने अर्जी लगाई थी। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में की जाने वाली जनगणना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से इंकार कर दिया और उन्हें खारिज कर दिया। 
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर गवई और जस्टिस विक्रमनाथ की पीठ ने याचिकाओं की सुनवाई करते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि अगर जातिगत जनगणना नहीं होगी तो राज्य सरकार आरक्षण जैसी नीति सही तरीके से कैसे लागू कर पाएगी ? कोर्ट ने सभी चुनौती देने वाली याचिकाओं को वापस लेने की अनुमति देते हुए उन्हें खारिज भी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय सही मायने में दूरगामी और महत्वपूर्ण है। एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत जनगणना की पैरवी करते हुए यह प्रश्न उठाया कि अगर जातिगत जनगणना ही नहीं होगी तो राज्य सरकार कैसे पता लगाएगी कि उस राज्य में किस जाति के कितने लोग है ? इसी प्रकार राज्य सरकार आरक्षण जैसी नीति सही तरीके से लागू भी कैसे कर पायेगी ?
                  सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहार की जातिगत जनगणना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाया है। यह प्रश्न यूं तो बिहार सरकार द्वारा बिहार में की जा रही जातिगत जनगणना को अनुमति देने से संबंधित है। किन्तु, बिहार सरकार द्वारा अपने राज्य में की जा रही जातिगत जनगणना को अनुमति देकर एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने जातिगत जनगणना की महत्ता ही सिद्ध की है। सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ के दोनों जस्टिसों ने यह मूलभूत प्रश्न भी उठाया है कि अगर जातिगत जनगणना नहीं होगी तो राज्य सरकार आरक्षण जैसी नीति को कैसे सही तरीके से लागू कर पाएगी ? 
                 सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय को हम व्यापक परिप्रेक्ष्य में देंखे तो यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान में जातिगत जनगणना के कोई अधिकृत आँकड़े उपलब्ध नहीं है, क्योंकि जातिगत जनगणना अभी तक की ही नहीं गई है। इस कारण सभी राजनैतिक दल अपने-अपने हितों को देखकर मनमर्जी से जातिगत जनगणना का अनुमान लगाकर अपने-अपने हितों का संरक्षण करते रहते हैं। वैसे देखा जाए तो कोई भी राजनैतिक दल सही मायने में जातिगत जनगणना नहीं चाहते हैं। क्योंकि अगर एक बार जातिगत जनगणना हो गई तो देश में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग और सामान्य वर्ग के अधिकृत आंकड़े सामने आ जायेंगे। इसी कारण सभी राजनैतिक दल जातिगत जनगणना से बचते आए हैं। देश की आजादी से लगाकर आज तक देश में कांग्रेस के अतिरिक्त जनता दल और भारतीय जनता पार्टी की सरकारें रही है। किन्तु, किसी भी राजनैतिक दल ने जातिगत जनगणना करवाने की हिम्मत नहीं दिखाई। सत्ता छिनने के डर से कोई भी राजनैतिक दल जातिगत जनगणना नहीं करना चाहती ! 
                  विश्व के सभी देश यह बात मानते है कि सही सांख्यिकी आँकड़ों पर ही देश के बहुमुखी विकास की सही योजनाएँ बनाई जा सकती है। कमजोर और पिछड़े वर्गो के सही आँकड़े उपलब्ध नहीं होने के कारण अनुमान के आधार पर ही आँकड़े माने जाते रहे हैं और इस कारण सुनियोजित तरीके से उनके विकास की योजनाएँ नहीं बनाई जा सकी। केवल अनुमान के आधार पर यह काम नहीं हो सकता ! 
                  वर्ष 2011 की जनगणना से पहले लोकसभा ने भी सर्व सहमति से प्रस्ताव पारित कर कमजोर वर्ग और पिछड़े वर्ग सहित हर जाति की जातिवार जनगणना का समर्थन किया था। वर्ष 2018 में तो तात्कालिक गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह ने औपचारिक घोषणा भी कर दी थी कि 2021 की जनगणना में पिछड़े वर्ग की भी गिनती होगी। संसद की सामाजिक न्याय समिति भी इसकी सस्तुति कर चुकी है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी केन्द्र को जातिगत जनगणना करने की सिफारिश भेज दी थी। देश के अनेक राज्यों द्वारा भी जातिवार जनगणना करने के प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजे हुए हैं। 
                 जातिवार जनगणना के पक्ष में इतने प्रस्ताव पारित होने के बावजूद सत्ता के कानों पर जूं नहीं रैंगती है। हर बार जनगणना के पहले हर सरकार यह प्रस्ताव ठुकरा देती है। प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जहा रजिस्ट्रार जर्नल के प्रस्ताव को ठुकराया, वहीं श्री मनमोहन सिंह की सरकार ने तो संसद के सर्वसम्मत प्रस्ताव को ही ठोकर मार दी। और इस मौजूदा सरकार ने तो अपनी ही घोषणा से मुँह मोड़ लिया। मौजूदा मोदी सरकार ने संसद में उत्तर देते हुए स्पष्ट कर दिया कि आने वाली जनगणना में पिछड़े वर्गों और सामान्य वर्ग की जातिवाद जनगणना नहीं की जायेगी ! 
                 राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने देश की आजादी के समय देश के कर्णधारों को एक मंत्र दिया था। उन्होंने कहा था, “ देश के लिए किए गए हर काम की कसौटी यह होनी चाहिए कि उसके द्वारा देश के सबसे गरीब और पिछड़े आदमी के आंसू पोंछे जा सकते या नहीं ?“ उनका यह स्पष्ट रूप से मानना था कि जब ऐसा दिन आयेगा, तब यह माना जायेगा कि हमारा राष्ट्र एक सुखी राष्ट्र हो गया है। उनके सपने को साकार करने के लिए यह जरूरी है कि देश के हर वर्ग से गरीबों की सही-सही पहचान की जाए। चाहे वह अनुसूचित जाति का हो, जनजाति का हो या वह पिछड़े वर्ग का हो या, सामान्य वर्ग का गरीब। गरीबों के आंसू पांछने और उनके सर्वांगीण विकास के लिए हर तरह से मदद की जानी आवश्यक है। इसके लिए जरूरी है कि हमारे पास उनकी वास्तविक संख्या हो और यह हम केवल जनगणना से ही प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए आगामी जनगणना जातिवार होना ही चाहिए! 
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