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अपना एमपी गज्जब है..47 समाज समाज खेलने के चक्कर में सामाजिक समरसता दांव पर ?


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                  एमपी की राजधानी भोपाल में पिछले दिनों हुए करणी सेना के आंदोलन के दौरान और बाद में जो कुछ हुआ है उससे दो बड़े सवाल खड़े  हुए हैं!पहला -क्या एक समाज को साधने की कोशिश में पूरे प्रदेश की सामाजिक समरसता को दांव पर लगाया जा सकता है?दूसरा -क्या वरिष्ठतम मुख्यमंत्रियों में से एक शिवराज सिंह चौहान  के मंत्री ही उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं?पूछा यह भी जा रहा है कि क्या मुख्यमंत्री इतने "असहाय" और "लाचार" हो गए हैं कि  उनके प्रति सार्वजनिक रूप से अपशब्द कहने वालों के खिलाफ कठोर कदम नही उठा पा रहे हैं ?
                      इन सवालों पर बात करने से पहले एक बार फिर घटना पर नजर डाल लेते हैं।गत 8 से 12 जनवरी तक भोपाल में करणी सेना के एक गुट ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया।हालांकि आंदोलन को अनुमति सिर्फ एक दिन की थी लेकिन आंदोलनकारी एक सड़क पर धरना देकर बैठ गए।लाखों लोगों को भारी परेशानी हुई।इसी धरने के दौरान प्रदर्शन कर रहे कुछ युवकों ने मुख्यमंत्री को अश्लील गालियां दीं।बहुत ही आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया।वीडियो बनाया!उसे सोशल मीडिया पर वायरल किया।बताते हैं कि यह सब पुलिस की मौजूदगी में हुआ था। उसके बाद मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य ने धरना स्थल पर जाकर आंदोलनकारियों के नेता को जूस पिलाकर आंदोलन खत्म कराया।साथ ही सरकार की ओर से एक आश्वासन पत्र भी दिया कि  करणी सेना की 22 में से 19 मांगे मान ली जाएंगी। 
                    यहां यह बात भी लाजमी है कि अगर इन्हीं मंत्री जी को जूस  पिलाकर आंदोलन खत्म कराना था तो वे यह काम  5 जनवरी को मुख्यमंत्री निवास में भी कर सकते थे!ऐसा करके वे सरकार को फजीहत से और शहर के लाखों लोगों को परेशानी से बचा सकते थे। जब मंत्री आंदोलन खत्म करा रहे थे तब मुख्यमंत्री को गाली देने वालों का वीडियो सोशल मीडिया में घूम रहा था।उन्होंने मीडिया में इस बारे में कुछ नही कहा।न ही बाद में वे इस बारे में बोले।
                     अगले दिन जब हंगामा शुरू हुआ और मुख्यमंत्री के प्रति गलत भाषा के इस्तेमाल को लेकर आम आदमी में गुस्सा फैला तो पुलिस ने कुछ अज्ञात लोगों के नाम मुकदमा दर्ज किया।पुलिस आंदोलन करने वाले नेता और उसके साथियों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट नही कर पाई।बाद में पुलिस हरियाणा से एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी करके लाई। इस मामले में मंत्रीमंडल के एक अन्य सदस्य की इसी दौरान करणी सेना के कुछ सदस्यों की मुलाकात भी चर्चा में रही।साथ ही बीजेपी के ही एक अन्य पूर्व मंत्री के करीबी का भी नाम सामने आया।
                   शिवराज मंत्रिमंडल में इस समय 8 राजपूत मंत्री हैं।इनमें से एक महेंद्र सिंह सिसोदिया को छोड़ किसी ने भी अपने मुखिया को गालियां दिए जाने का विरोध नहीं किया।न ही किसी ने करणी सेना के इस कदम की सार्वजनिक निंदा की!कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए सिसोदिया ने इस पूरी घटना के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार बताया और कहा कि गाली देने वाले कांग्रेसी थे।मंत्रिमंडल के बाकी सदस्य  मौन रहे और आज भी मौन हैं।आंदोलन खत्म कराने वाले मंत्री महोदय भी कुछ नही बोले हैं। हां दो दिन बाद उन्होंने यह जरूर कहा है कि करणी सेना का आंदोलन राजनैतिक था।उसकी 22 मांगों में से 20 का राजपूत समाज से कोई लेना देना नही है।अब उनसे कौन पूछे कि अगर आंदोलन राजनैतिक था तो उससे सख्ती से क्यों नही निपटा गया।क्यों चार दिन तक लाखों लोगों को परेशानी में डाला गया?साथ ही उन्होंने 22 में से 19 मांगों पर सहमति पत्र क्यों दिया।क्यों अधिकारियों की समिति बनाने की बात मीडिया से कही।और फिर बाद में भी मुख्यमंत्री को गाली दिए जाने की निंदा क्यों नही की?अन्य राजपूत मंत्री क्या करणी सेना के डर के मारे मौन साधे हैं?
                    भोपाल में जब यह आंदोलन और धरना हुआ तब मुख्यमंत्री भोपाल में नही थे।वे इंदौर में अप्रवासी भारतीय सम्मेलन और ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में व्यस्त थे!सवाल यह भी है कि क्या प्रशासनिक अधिकारियों ने अपने स्तर पर इस समस्या का समाधान नहीं खोजा या फिर उन्हें यह कहा गया था कि कुछ नही करना है।शायद यही वजह है कि  आंदोलनकारियों के बीच चार दिन तक रहने के बाद भी ये पुलिस अफसर नामजद रिपोर्ट तक दर्ज नही कर पाए?क्या उन्हें आम आदमी की तरह प्रदेश के मुखिया के सार्वजनिक अपमान पर भी पहले सबूत चाहिए था ?सोशल मीडिया में वायरल वीडियो को उन्होंने गंभीरता से क्यों नही लिया?देखना यह होगा कि इन अफसरों के खिलाफ सरकार क्या कदम उठाती है।
                    आज हालत यह है कि मुख्यमंत्री को गाली दिए जाने के बाद पिछड़े वर्गो के लोग नाराज हैं।खासतौर पर मुख्यमंत्री से जुड़ा किरार और धाकड़ समाज बेहद आक्रोशित है।इस समाज के लोगों ने 20 जिलों में प्रदर्शन किया है, ज्ञापन दिए हैं। करणी सेना के खिलाफ करीब दो दर्जन मुकदमें भी दर्ज कराए हैं।धाकड़ और किरार समाज के लोग भोपाल में प्रदर्शन भी करने वाले थे।लेकिन उन्हें रोक लिया गया है।
 इस बीच पिछड़े वर्ग के सरकारी कर्मचारियों के संगठन अपाक्स ने भी मुख्यमंत्री को गाली दिए जाने की निंदा की है। अपाक्स ने कहा है कि आंदोलन करना सबका अधिकार है लेकिन भाषा शालीन होनी चाहिए।मुख्यमंत्री के प्रति अपशब्दों के इस्तेमाल की हम निंदा करते हैं।खबर यह भी है कि किरार और धाकड़ समाज इस मुद्दे पर बड़े आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। मतलब साफ है कि एक समाज के आगे सरकार की कमजोरी ने प्रदेश की सामाजिक समरसता को ही खतरे में डाल दिया है।यह सब जानते हैं कि प्रदेश में पिछड़े वर्ग का बहुमत है।इसी वजह से बीजेपी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी इसी वर्ग के लिए अघोषित रूप से आरक्षित कर रखी है। अगर यह समाज मुख्यमंत्री के अपमान को अपना अपमान मान के आगे बढ़ता है तो क्या स्थित बनेगी उसका अंदाज ही लगाया जा सकता है।
 वैसे इस मुद्दे पर अभी तक बीजेपी संगठन भी मौन है।उसकी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
                      संगठन और अधिकांश मंत्रियों के मौन से यह सवाल उठा है कि क्या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनों के बीच अलग थलग पड़ गए हैं?क्या वे अपनों के आगे लाचार हो गए हैं?या फिर उनकी पकड़ ढीली हो रही है ?
                    इतने बड़े मुद्दे पर उनका अपना समाज तो उनके साथ है लेकिन उनके अपने दल और मंत्रिमंडल के लोग कन्नी काट रहे हैं! क्या उनके अपने ही साथी उनके खिलाफ साजिश कर रहे हैं?और तो और राजपूतों को बीजेपी से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री निवास में बड़ा राजपूत सम्मेलन कराने वाले मंत्री भी करणी सेना के खिलाफ कुछ नही बोल रहे हैं।कहा यह भी जा रहा है कि मुख्यमंत्री निवास में 5 जनवरी को कराया गया राजपूत सम्मेलन अभी नए नए बने एक दागी राजपूत नेता को आगे लाने के लिए कराया गया था। यह  राजपूत  नेता केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में है।सम्मेलन में वह मुखमंत्री के साथ मौजूद था।
                  फिलहाल सबकी निगाहें शिवराज सिंह पर टिकी हैं!देखना यह है कि आगे वे क्या करते हैं!क्योंकि वे भले ही अपने अपमान को नजरंदाज करने की कोशिश करें लेकिन उनका समाज भृकुटी ताने खड़ा है।अगर वे मौन रहे तो उनका अपना समाज नाराज होगा और अगर कुछ किया तो 8 मंत्रियों का राजपूत समाज बीजेपी से छिटकेगा!कुल मिलाकर मुख्यमंत्री नट की तरह रस्सी पर चलते दिखाई दे रहे हैं!जरा सा भी असंतुलन खतरनाक साबित हो सकता है। जो भी हो पर इतिहास गवाह है कि एमपी में किसी  सीएम का ऐसा अपमान पहले कभी नही हुआ!न ऐसे हालात देखने को मिले!
 पर कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है ! है कि नहीं !

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