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अब खुद से सरक भी नहीं सकते; जहरीले हवा-पानी से 40 की उम्र में हो रहे बूढ़े


मध्यप्रदेश में एक जिला ऐसा भी है, जहां दिल्ली से तीन गुना ज्यादा प्रदूषण है। प्रदूषण इस कदर है कि यहां के लोग 40 की उम्र में ही बूढ़े होने लगे हैं। यहां हवा-पानी के साथ मछलियां भी जहरीली हो गई हैं। यह जिला है सिंगरौली। यहां के ​​​​​​चिलकाटाड़ गांव के नंदलाल 40 की उम्र में ही बूढ़े हो गए। 15 की उम्र तक सामान्य थे। इसके बाद हडि्डयां गलनी शुरू हुईं। कमर झुक गई। अब वे खुद से सरक तक नहीं सकते हैं। 18 साल की बेटी, छोटा भाई और उसके बच्चे की स्थिति भी ऐसी ही है।सिंगरौली में प्रदूषण से बेकाबू हालात का मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में पहुंचा है। एक याचिका की सुनवाई करते हुए NGT ने प्रदूषण से लोगों के जीवन पर पड़ रहे असर पर रिपोर्ट बनाने के लिए हाई लेवल जांच कमेटी सिंगरौली भेजी। कमेटी ने लोगों के बाल और ब्लड के साथ मिट्‌टी, पानी और फसलों के सैंपल कलेक्ट किए।धूल और धुएं के चलते आंखों में तेज जलन होती है। सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था। यहां से आगे हम कोल खदान पहुंचे। वहां धूल का गुबार ऐसा उड़ता है कि सामने 100 मीटर दूर की चीजें भी दिखाई नहीं देती हैं। सिंगरौली जोन में PM 2.5 कणों की संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु गुणवत्ता मानक से 8.6 गुना अधिक है।सिंगरौली में ऐसे 12 रोड और चौराहे हैं, जहां पूरे समय धूल और धुएं से कोहरा छाया रहता है। यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स 900 से 1200 के बीच रहता है। जो मानक स्तर से 20 से 25 गुना ज्यादा है। एनसीएल के सूर्य किरण गेट पर ये औसतन 500 के ऊपर रहता है। यह भी लाइव अपडेट नहीं होता। यहां प्रदूषण के आंकड़े छिपाने के लिए एक दिन बाद मैन्युअल डाटा अपडेट किया जाता है। जबकि दिल्ली में जब पराली जलाने का समय होता है, तब AQI अधिकतम 400 तक पहुंचता है। इसका कारण कोयला, उसकी राख और कोयला ढोने वाले हजारों वाहनों का धुआं है।सिंगरौली की जमीन भी दूषित हो चुकी है। मिट्‌टी की जांच में पारे की मात्रा अधिक मिली है। यहां प्रति किलो मिट्‌टी में 10.009 मिलीग्राम पारा मिला है, जबकि मानक 6.6 होना है। खाद्यान्न के सैंपल की जांच में भी इसकी पुष्टि हो चुकी है। इसी जमीन से पैदा होने वाली सब्जियां और अनाज खाकर लोग बीमारियों की चपेट में रहे हैं। रिहंद सहित उसकी सहायक नदियों और नालों का पानी पारायुक्त होने से मछलियां भी जहरीली हो रही हैं। प्रति किलो मछली में 0.505 मिलीग्राम पारा मिला है, जो 0.25 मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए।

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