राज-काज , माता सीता, रामसेतु पर बैकफुट में भाजपा....
दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
राजनीति भी अजब है, ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ वाली। माता सीता, रामसेतु को ही ले लीजिए, इसे लेकर भाजपा हमलावर रहती थी और कांग्रेस बचाव की मुद्रा में। अब बाजी पलट गई है क्योंकि कांग्रेस इन्हें लेकर घेर रही है और भाजपा बैकफुट पर। रामायण के एक प्रसंग की चर्चा करते हुए प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने माता सीता से तलाक शब्द को जोड़ दिया। कांग्रेस ने इसे लपकने में देर नहीं की और भाजपा पर माता सीता को अपमानित करने का आरोप जड़ दिया। मामले ने इतना तूल पकड़ा कि संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा को सीता माता के लिए तलाक शब्द का इस्तेमाल करने के लिए मोहन यादव की ओर से माफी मांगना पड़ी। दूसरा, रामसेतु कांग्रेस को घेरने के लिए भाजपा का पसंदीदा शस्त्र रहा है, यूपीए सरकार के समय कोर्ट में रामसेतु को काल्पनिक जो बता दिया गया था। अब वही गलती केंद्र की भाजपा सरकार ने कर दी। लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में सरकार ने कह दिया कि पत्थर तो दिख रहे हैं लेकिन यह रामसेतु ही है, कह नहीं सकते। बस क्या था, कांग्रेस ने जवाबी हमला बोल दिया। कमलनाथ से लेकर दिल्ली तक नेताओं ने भाजपा को घेर लिया है। कांग्रेस का कहना है कि भाजपा राम सेतु को नकार कर भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठा रही है। है न राजनीति अजब।
कमलनाथ जी! इस बार आपने हद ही कर दी....
पहले विधानसभा की कार्रवाई को बकवास कहना और अब अपनी ही पार्टी द्वारा लाए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन से अनुपस्थिति रह कर मप्र कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ हद कर दी? नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। सदन में लंबी चर्चा हुई लेकिन कमलनाथ पांच मिनट के लिए भी सदन के अंदर नहीं गए। कांग्रेस ने पार्टी विधायकों को व्हिप जारी किया था। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। फिर सत्ता में आने के सपने देख रही है। क्या ऐसे में कमलनाथ को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मौजूद नहीं रहना चाहिए? क्या पार्टी व्हिप उन पर लागू नहीं होता? खास यह भी कि अचानक डॉ सिंह की मां का स्वास्थ्य खराब हो गया। उन्हें लहार जाना पड़ा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ढाई घंटे तक अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब दिया और सामने कांग्रेस बिना सेनापति की फौज की तरह थी। तब भी कमलनाथ नहीं पहुंचे। सरकार के वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव ने इस पर चुटकी ली और कांग्रेस विधायकों को सलाह दी कि आप लोग बैठकर पहले अपना नेता चुन लीजिए। क्या इसका मतलब यह है कि कमलनाथ एवं डॉ गोविंद सिंह के बीच तगड़े मतभेद हैं? क्या गोविंद सिंह के अविश्वास प्रस्ताव पर कमलनाथ की सहमति नहीं थी?
अति उतावलेपन में फंस गए जीतू पटवारी....
जीतू पटवारी कांग्रेस के ऊजार्वान एवं सक्रिय विधायक हैं, लेकिन कई बार अति उतावलेपन में सीमा लांघ कर फंस जाते हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी ऐसा हुआ। आधी-अधूरी जानकारी के साथ उन्होंने सरकार पर आरोप जड़ दिया कि भाजपा की बैठक में हुए भोजन-नाश्ते का भुगतान सरकार ने कर दिया। जोश में उन्होंने कुछ कागज लहराते हुए कहा कि सरकार ने यह एक प्रश्न के जवाब में स्वीकार किया है। बस क्या था, अगले ही दिन भाजपा उन पर हमलावर थी और वे बगलें झांक रहे थे। संसदीय कार्यमंत्री नरोत्तम मिश्रा और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने जीतू पर जवाबी हमला बोला। मिश्रा ने कहा कि जीतू ने गलत जानकारी देकर सदन को गुमराह किया है। उन्होंने खाने-नाश्ते का जिक्र तो किया लेकिन जवाब में भाजपा द्वारा भुगतान करने का उल्लेख था, उसे छिपा गए। मिश्रा ने मामला विधानसभा की प्रश्न संदर्भ समिति में ले जाने की बात कही। इसी आधार पर वीडी ने भी जीतू पर भाजपा को बदनाम करने के आरोप लगाए और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की बात कही। सवाल ये है कि जीतू जैसा पढ़ा-लिखा विधायक इनता उतावलापन क्यों दिखाता है? मामला प्रश्न संदर्भ समिति अथवा कानून के दायरे में पहुंचा तो जीतू को लेने के देने पड़ सकते हैं।
कर्जमाफी पर कांग्रेस को भाजपा का सर्टिफिकेट....!
लीजिए, अब तक भाजपा किसान कर्जमाफी को लेकर कांग्रेस को घेरती थी और अब उसने ही कांग्रेस को कर्जमाफ करने का सर्टिफिकेट दे दिया। इससे कांग्रेस को संजीवनी मिली है। विधानसभा के पिछले चुनाव में किसान कर्जमाफी कांग्रेस का बड़ा मुददा था। इसकी सवारी कर वह सत्ता तक पहुंची थी। भाजपा लगातार आरोप लगाती थी कि कांग्रेस ने किसानों को सिर्फ गुमराह किया। उनका कर्ज माफ नहीं हुआ और किसान डिफाल्टर हो गए। अचानक भाजपा ने ही कांग्रेस की किसान कर्जमाफी पर मुहर लगा दी। विधानसभा में अवश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस को किसानों का 53 हजार करोड़ रुपए का कर्ज माफ करना था, लेकिन सब कचरा कर दिया। सिर्फ 7 हजार करोड़ रुपए ही माफ हुआ। मुख्यमंत्री का यह कथन कांग्रेस के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं था। कांग्रेस विधायक उछल पड़े। पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव, पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोट सहित कई विधायकों ने खड़े होकर कहा कि अब तो मुख्यमंत्री ने ही स्वीकार कर लिया है कि कांग्रेस सरकार ने किसानों का कर्ज माफ किया। उन्होंने मांग की कि भाजपा सरकार शेष किसानों का कर्ज माफ करे। वादा भी कर दिया, हम आए तो माफ करेंगे। साफ है कि आगे भी किसान कर्जमाफी कांग्रेस का मुद्दा होगा।
तो छतरपुर में भी कांग्रेस का भगवान मालिक....!
बुंदेलखंड में विधानसभा के पिछले चुनाव में दहाई की संख्या तक पहुंचने वाली कांग्रेस की हालत नाजुक है। सागर में विधायक और मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के बाद पहले पूर्व विधायक अरुणोदय चौबे और अब बृज बिहारी पटैरिया ने कांग्रेस को टाटा कह दिया है। दमोह में विधायक राहुल लोधी और छतरपुर में प्रद्युम्न लोधी पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं। टीकमगढ़ में वरिष्ठ विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन के बाद प्रथ्वीपुर सीट हाथ से निकल चुकी है। छतरपुर में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी। भाजपा सिर्फ एक सीट जीत सकी थी। प्रद्युम्न के बाद भाजपा ने बिजावर में सपा से जीते राजेश शुक्ला को भी पार्टी में शामिल कर लिया है। शेष बचे तीन विधायकों का पूर्व विधायक शंकर प्रताप सिंह बुंदेला ‘मुन्नाराजा’ के साथ छत्तीस का आंकड़ा है। मुन्ना राजा कांग्रेस के बड़ा मलेहरा, राजनगर एवं लवकुश नगर में हुए कार्यक्रमों में अपनी ताकत दिखा चुके हैं। कार्यक्रमों की सफलता से साफ है कि वे अकेले मौजूदा विधायकों पर भारी हैं। विधायकों में राजनगर से विक्रम सिंह नातीराजा पिछली बार 5-7 सौ वोटों के अंतर से जीते थे। इस बार उनकी स्थिति कमजोर है। छतरपुर और महाराजपुर में भी कांग्रेस की राह आसान नहीं है। छतरपुर में मुन्ना राजा और विधायकों के बीच गिले-शिकवे दूर न हुए तो यहां भी कांग्रेस का भगवान मालिक है।
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