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अपना एमपी गज्ज़ब है..37 यहां नेताओं को बुढ़ापे में भी "दहेज" मिलता है....


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                       हिंदुस्तान में "दहेज" का रिवाज बहुत पुराना है।अब तो हर धर्म और जाति के लोग इस रिवाज को मानने लगे हैं। आमतौर पर दहेज शादी के समय दिया जाता है।लेकिन अपने एमपी में  बुढ़ापे की दहलीज पर खड़े एक नेता जी को मिला दहेज इन दिनों खासा चर्चा में है।"दहेज" भी छोटा मोटा नही बल्कि करोड़ों का।अनोखी बात यह है कि यह दहेज नेता जी के ससुर ने बल्कि साले ने दिया है।
 मजे की बात तो यह है कि ये नेता जी मामा की सरकार में मंत्री भी हैं।पूरी जिंदगी कांग्रेस में निकाल कर उन्होंने 2020 में "संघ दीक्षा" ली थी।भाजपाई तो यहां तक कहते हैं कि खोई सरकार पाने के लिए  जो "मैत्री करार" हुआ था उसमें कुछ संताने भी साथ आई थीं।अब सरकार को बचाए रखना है तो इन संतानों को "प्यार" से रखना ही पड़ेगा।उनकी हर हरकत को अनदेखा करना ही एकमात्र उपाय है।
 चलिए अब दहेज की बात करते हैं ! भ्रष्टाचार के खिलाफ लगातार "इवेंट्स" कर रहे मुख्यमंत्री की सरकार के सबसे मलाईदार विभाग उन संतानों के पास हैं जो करार के साथ आई थीं।ऐसे ही एक विभाग के मंत्री आजकल चर्चा में हैं।बीजेपी के ही एक दिलजले नेता ने 58 साल के इन मंत्री को मिले दहेज का खुलासा किया है।
                     सूत्रों के मुताबिक साले साहब ने अपने जीजा को पचास एकड़ कीमती जमीन "गिफ्ट" की है। यह जमीन मंत्री उनकी पत्नी और उनके पुत्र के नाम कराई गई है।इसकी कीमत करोड़ों में बताई जा रही है।वैसे मंत्री जी के घर किसी बात की कमी नहीं है।कमलनाथ की सवा साल की सरकार में भी वे उसी विभाग के मंत्री थे जिसके अब हैं।लक्ष्मी जी तो उनके घर में सागर सी हिलोरें ले रही हैं।ऐसे में कुछ करोड़ की जमीन दान में मिलने से ज्यादा फर्क पड़ने वाला नही है।
                   लेकिन इस दहेज की सबसे खास बात यह है कि देने वाले "दानवीर" की खुद की हैसियत ऐसे नही है जो वे अपने जीजा को इतना बड़ा "गिफ्ट" दे सकें।कहा यह भी जा रहा है कि वे खुद इस जमीन के मालिक कुछ समय पहले ही बने थे।
                 एक बड़ी झील की वजह से "सागर" नाम वाले जिले के भाजपाई इन दिनों इस दहेज के साथ साथ और भी बहुत सी बातों पर चटखारे ले रहे हैं।मंत्री को एक जमाने में किसने मुर्गा बनाया और किसने उन्हें बचाया था ! कौन सा स्कूटर मंत्री जी चलाते थे!कौन उसमें पेट्रोल डलाता था!आदि..आदि...सब तरह की बातें हो रही हैं। इस दहेज के अलावा मंत्री जी  के कर्मों का पूरा चिट्ठा "ऊपर" तक पहुंचा दिया गया है।साथ ही सोशल मीडिया पर भी मंत्री को बुढ़ापे में मिला दहेज चर्चा में है।एक बड़े भाजपाई नेता तो बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को भी याद कर रहे हैं।वे कहते हैं - लालू जी जो रेल मंत्री रहते किए थे वैसा ही कुछ मामा के इस मंत्री ने किया है।मामा को भी पता है!
                 लेकिन कर कुछ नही रहे हैं।रोज सरकारी कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के नाम पर धमकाते हैं।अपने मंत्रियों की ओर उनकी नजर नहीं जाती।न जाने क्या मजबूरी है।
  झील वाले शहर में सत्ता का जो नंगा नाच हो रहा है।वह अकल्पनीय है। ताल तलैया,नाले और पहाड़ सब निजी मिल्कियत में बदल गए! कोई न देख रहा न सुन रहा।
 अरे कोई सुने भी तो कैसे..आखिर मैत्री करार वाली सरकार भी तो चलानी है। वैसे ये मंत्री जी अकेले नहीं हैं।जितने करार में आए थे वे सब कुछ न कुछ ऐसा कर ही रहे हैं जिससे वे और सरकार दोनों चर्चा में रहते हैं। कुछ महीने पहले एक मंत्री तो "बड़े बाबू" के ही पीछे पड़ गए।तमाम आरोप लगा डाले।लेकिन उनके कान उमेठ दिए गए।बाबू जी की कुर्सी का पट्टा 6 महीने बढ़ा दिया गया।
 एक और मंत्री तो रियासत के खास स्वामिभक्त हैं।अपने क्षेत्र की सड़क, अपनी ही सरकार से नही बनवा पाए सो नंगे पांव घूम रहे हैं।
                एक मंत्री का विभाग तो पानी में पैसा बहाने की वजह से सुर्खियों में चल रहा है।काम हुआ नही।ठेकेदार पैसा ले गया।शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री खुद अफसरों के जरिए उनकी निगरानी कर रहे हैं। मैत्री करार वाले एक राज्यमंत्री तो आजकल खासे चर्चा में हैं।वे भी रियासतदार हैं। महाराज के खास भी हैं।भले ही जागीरें चली गईं हों पर ठसक कहां जायेगी।मंत्री जी का मादा प्रेम खानदानी है।अभी कुछ दिन पहले उनकी एक परिचित ने उनके इलाके में जाकर जो हंगामा किया वह जगजाहिर हो चुका है।उसने मंत्री को रेपिस्ट बताया और बहुत सी बड़ी बड़ी बातें कैमरे पर कीं।
                लेकिन न सरकार कुछ बोली न ही संस्कारवान पार्टी संगठन!सब मौन हैं। हां वीडियो वायरल करने वाले होटल मालिक के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया है।उसके होटल में तोड़फोड़ भी की गई था।धमकी तो उसके घर जाकर दी गई थी।लेकिन क्या फर्क पड़ता है। इसी करार के कोटे के एक और मंत्री हैं।उनके विभाग में सैकड़ों करोड़ की गैरजरूरी खरीद आजकल चर्चा में हैं!लेकिन बताते हैं कि मंत्री जी का रंग इतना पक्का है कि उस पर कोई और रंग नही चढ़ता।
                   मैत्री करार कोटे के अन्य नेताओं का भी यही हाल है।जिनका नाम लेने से ही मधुमेह की बीमारी का खतरा हो जाए ऐसी एक नेता ने तो थाने में ही धरना देकर सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया।वह तो भला हो महाराज का जिन्होंने फोन पर बात करके उनका गुस्सा शांत कर दिया। वरना न जाने क्या हो जाता। फिलहाल हालत यह है मैत्री करार कोटे के सभी मंत्री और दर्जा प्राप्त मंत्री किसी न किसी वजह से चर्चा में हैं। "संघ दीक्षित" लोगों का कहना है कि यह "विचार" का मामला है। नए विचार को अपनाने में कुछ समय तो लगता ही है।सब ठीक हो जायेगा।
 जबकि आम राय यह है कि मैत्री करार की अवधि अब किनारे पर है।इसलिए इस कोटे में बने मंत्रियों की लगाम कसी जा रही है।उन पर दबाव बनाने के लिए ही उनकी कारगुजारियां उजागर की जा रही हैं।यह एक रणनीति का हिस्सा है। इसी की आड़ में उन्हें किनारे लगाया जाएगा।
                  ऐसा करना मजबूरी भी है।क्योंकि ज्यों ज्यों चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है त्यों त्यों उन लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है जिनका हक मारा गया है।उन्हें  लग रहा है कि  अभी नही तो कभी नही।वे लामबंद हो रहे हैं।उन्हें समर्थन भी मिल रहा है।मुकामी और सैलानी भाजपा का भी खुल कर जिक्र हो रहा है।
 मुखबिर तो यहां तक कह रहे हैं कि "मैत्री करार" वाले बच्चे अब अपने पुराने घर की ओर निहार रहे हैं।वे अपने स्तर पर "घर वापसी" की संभावना भी तलाश रहे हैं।एक मंत्री द्वारा दिग्विजय सिंह की तारीफ को इसी से जोड़ के देखा जा रहा है।लेकिन "24 कैरेट की गद्दारी" उसमें आड़े आती दिख रही है !
                फिलहाल स्थिति बहुत ही रोचक होती जा रही है।दोनों तरफ से चालें चली जा रही हैं।इस मैत्री करार की वजह से मुश्किल से मिली सत्ता खोने वाले कांग्रेसी भी मजे ले रहे हैं।
 सबसे कठिन इम्तहान से मुख्यमंत्री गुजर रहे हैं ! उनकी तकलीफ कोई और नहीं समझ सकता।क्योंकि काम किसी का भी हो नाम तो उनका ही है। क्योंकि कोई गठबंधन सरकार तो है नहीं!यह दूध और पानी के मिलन का मामला है।और खतरा दूध के फटने का है।अब कुछ भी हो..अपना एमपी तो गज्ज़ब है..है कि नहीं !

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