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राज-काज ‘कहीं खुशी, कहीं गम’ वाले चुनावों के सबक....


दिनेश निगम ‘त्यागी’,वरिष्ठ पत्रकार
                गुजरात में रिकार्ड जीत से भाजपा भले गद्गद् हो, जश्न मनाए लेकिन सच यह है कि चुनावों ने सभी को ‘कहीं खुशी, कहीं गम’ दिया है। भाजपा को गुजरात में रिकार्ड जीत मिली है तो उसके पास से हिमाचल प्रदेश और दिल्ली एमसीडी छिन गए हैं। कांग्रेस को हिमाचल में जीत से खुशी मिली है तो गुजरात, दिल्ली में रिकार्ड हार का गम मिला है। आम आदमी पार्टी हिमाचल में अपना खाता नहीं खोल पाई, न ही गुजरात में सरकार बना सकी लेकिन एमसीडी में कब्जा किया है और गुजरात में इतने वोट हासिल किए जिससे उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया। इसलिए इन चुनावों को लेकर किसी को ज्यादा इतराना नहीं चाहिए। ये सभी के सबक दे गए हैं। देश के सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी का जादू उनके गृह प्रदेश गुजरात में ही चला है और कहीं नहीं। चुनावों का मप्र को लेकर आकलन शुरू हो गया है। खासकर यह कि क्या आम आदमी पार्टी गुजरात की तरह मप्र में भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकती है? भाजपा नेतृत्व मप्र में गुजरात फामूर्ला अपना पाएगा या नहीं? मप्र के हालात गुजरात से बिल्कुल अलग हैं। इसलिए संभव है भाजपा यहां किसी अलग रणनीति पर काम करे। जब मोदी और नड्डा के गृह प्रदेशों में बागियों ने नहीं सुनी तो मप्र से उम्मीद कैसे की जा सकती है। भाजपा को यहां हर कदम फूंक फूंक कर रखना होगा। 
विवादों से दूर नहीं रह सकते कथावाचक....!
                     शिव महापुराण के कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा हों या बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेंद्र शास्त्री, इनके प्रति हर जाति, धर्म और दल के लोग श्रद्धा रखते हैं। इन धमार्चार्यों का भी कर्त्तव्य है कि वे संत की तरह सभी के प्रति समान का भाव रखें, खुद को विवादों से दूर रखें। पर ऐसा नहीं हो रहा। पंडित मिश्रा एवं शास्त्री लगातार विवादों को जन्म दे रहे हैं। बैतूल में पंडित मिश्रा ने नए विवाद को जन्म दे दिया। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए हर परिवार को अपना एक बेटा आरएसएस अथवा बजंरग दल में भेजना चाहिए। मिश्रा को मालूम है कि कांग्रेस सहित समाज का एक बड़ा वर्ग संघ और बजरंग दल को देश और समाज के लिए घातक मानता है। मिश्रा कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला के आमंत्रण पर इंदौर में कथा कह चुक हैं, अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के आमंत्रण पर छिंदवाड़ा जाने वाले हैं। ऐसी बातें बोलकर वे इन नेताओं के सामने धर्मसंकट क्यों पैदा करते हैं, जिनके अंदर उनके प्रति किसी से कम आदर और सम्मान नहीं है। पंडित मिश्रा पहले भी बाबा साहेब अंबेडकर पर टिप्पणी के कारण विवाद में आए थे। उन्हें दलित वर्ग से क्षमा मांगना पड़ी थी। बागेश्वर धाम का कुछ नेताओं और जमीन को लेकर ग्रामीणों के साथ विवाद सर्वविदित है। क्या ये कथावाचक खुद को विवादों से दूर नहीं रख सकते?
इमरती नहीं करतीं नरोत्तम की परवाह....
                   ग्वालियर अंचल के दतिया जिले में प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा एवं मंत्री दर्जा प्राप्त इमरती देवी के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। इमरती जिस डबरा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ती हैं, वह नरोत्तम का पुराना गृह क्षेत्र है। यहां हर चुनाव में इमरती को नरोत्तम की जरूरत महसूस होगी, बावजूद इसके वे नरोत्तम की परवाह नहीं करतीं? इमरती केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में आईं और उप चुनाव में अपने ही रिश्तेदार कांग्रेस प्रत्याशी के मुकाबले पराजित हो गई थीं। इमरती मानती हंै कि उन्हें हराने में नरोत्तम ने भूमिका निभाई। यह जानने के लिए वे पंडोखर सरकार के पास तक गईं। जवाब मिला, आपकी ही पार्टी के नेता ने आपको हरवाया। संकेत नरोत्तम की ओर ही माना गया। निकाय एवं पंचायत चुनावों में भी इमरती एवं नरोत्तम के समर्थक आमने-सामने थे। बाजी इमरती ने मारी। ताजा विवाद एक हत्या के मामले में पैदा हुआ। इमरती ने समर्थकों के साथ थाने का घेराव कर दिया। उनका आरोप था कि टीआई को सरकार के एक ताकतवर नेता का संरक्षण हासिल है। यहां भी इमरती का इशारा नरोत्तम की ओर था। बाद में सिंधिया के आश्वासन के बाद इमरती ने धरना समाप्त किया। मामले का पटाक्षेप भले हो गया, विवाद का नहीं। नुकसान रोकने सिंधिया को ही विवाद सुलझाने की पहल करना होगी।
क्या इतना बड़ा है राजा पटैरिया का कसूर....
                  अपने एक बयान के कारण कांग्रेस नेता पूर्व मंत्री राजा पटैरिया मुसीबत हैं। मुसीबत ऐसी कि जेल की हवा खा रहे हैं। भाजपा विरोध करे बात समझ में आती है, क्योंकि पटैरिया एक शब्द बोले ही ऐसा। पर क्या पटैरिया का कसूर इतना बड़ा है कि कांग्रेस भी अपने इस पुराने नेता से पल्ला झाड़ ले। उन्होंने पार्टी की एक बैठक में भाजपा सरकार की नीतियों की आलोचना करते हुए कहा था कि इनके खात्मे के लिए ‘हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना पड़ेगी, इन द सेंस उन्हें हराना होगा।’ उनके कथन में दोनों बाते हैं। एक ‘मोदी की हत्या करना होगी’, घोर आपत्तिजनक और दूसरा ‘इन द सेंस हराना होगा’, उनकी राजनीतिक मंशा जाहिर करता है। भाजपा पहले शब्द का विरोध करे, उसे भुनाए, उसका हक है लेकिन बाद के शब्दों में उनकी मंशा देखकर कांग्रेस को तो अपने नेता के साथ खड़ा होना चाहिए था। लेकनि ऐसा नहीं हुआ। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने तत्काल पटैरिया के बयान से खुद को अलग किया। उनका व्यक्तिगत बयान बताया, उसकी निंदा की। अब जब पटैरिया जेल में है तब भी नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह को छोड़कर समूची कांग्रेस चुप है। ऐसा कर पार्टी पटैरिया को अरुणोदय चौबे के रास्ते जाने को मजबूर कर रही है। हालांकि गोविंद सिंह पटैरिया के साथ खड़े हैं और कह रहे हैं कि उन्हें जेल में प्रताड़ित किया जा रहा है।
इतनी महत्वपूर्ण थी यह गोपनीय बैठक....!
                     प्रदेश के सागर जिले में हुई भाजपा की एक बैठक सुर्खियों में है। बैठक इतनी गोपनीय रखी गई थी कि जिले के प्रभारी मंत्री अरविंद भदौरिया इसमें हिस्सा लेने अपना सरकारी वाहन और फालोगार्ड छोड़कर बाइक से गए थे। प्रदेश सरकार में सागर से तीन-तीन कद्दावर मंत्री हैं। भूपेंद्र सिंह खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नजदीक हैं। गोविंद सिंह राजपूत केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास हैं और गोपाल भार्गव अपनी अलग पहचान रखते हैं। खास बात यह है कि मंत्रियों को बैठक में तो बुलाया ही नहीं गया, इन्हें इसकी कानो-कान खबर तक नहीं लगी। बैठक में भदौरिया के अलावा प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा और संघ से जुड़े पदाधिकारी शामिल थे। मजेदार बात यह है कि किसी को यह खबर तक नहीं थी कि बैठक कहां हो रही है। पहले संघ कार्यालय का नाम लिया जा रहा था, बाद में पता चला कि दमोह रोड स्थित किसी नए होटल में यह बैठक हुई। बैठक का एजेंडा क्या था, अब तक किसी को नहीं मालूम। सिर्फ अटकलें लगाई जा रही हैं। कोई कह रहा है कि बैठक विधानसभा चुनाव के मुद्दों, टिकटों को लेकर कसरत का हिस्सा थी, कोई इसे मंत्रिमंडल में फेरबदल से जोड़कर देख रहा है क्योंकि कुछ दिनों से मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा है। विषय जो भी हो लेकिन गोपनीय होने के कारण बैठक की चर्चा ज्यादा है। 
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