17 दिसंबर : पेंशनर दिवस : बधाई तो बनती है
डॉ. चन्दर सोनाने
हर एक पेंशनर के लिए 17 दिसंबर पेंशनर दिवस का एक विशेष महत्व है। पेंशन प्राप्त करने वाला व्यक्ति जहाँ आत्मनिर्भर रहता है, वहीं उसके साथ परिवार में सम्मानजनक व्यवहार भी होता है। जो अशासकीय व्यक्ति है और जिन्हें पेंशन प्राप्त नहीं होती है उन्हें पता है कि पेंशन प्राप्त नहीं होने के क्या-क्या दर्द होते हैं ! हर एक पेंशनरों को 17 दिसम्बर पेंशनर दिवस की बहुत-बहुत बधाई।
आइए, पेंशनर दिवस और उसकी महत्ता के बारे में समझे। भारत में साल 1983 से हर साल 17 दिसंबर को पेंशनर दिवस मनाया जाता है। भारत में पेंशन प्रणाली साल 1857 में ब्रिटिश सरकार द्वारा लाई गई थी। ब्रिटिश सरकार की यह योजना ब्रिटेन की प्रचलित पेंशन प्रणाली के समान थी। सेवानिवृत्ति के बाद अधिकांश कर्मचारियों को अपनी पेंशन प्राप्त करने में अनेक समस्याएँ आती है और उन्हें पेंशन के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। पेंशनर्स की उन समस्याओं के निराकरण के उद्देश्य से ही पेंशनर दिवस मनाया जाता है। पेंशन प्रणाली को साल 1871 को भारतीय पेंशन अधिनियम द्वारा अंतिम रूप दिया गया था। उस दौरान गवर्नरों और वाइसरॉय को पेंशन देने के अधिकार दिए गए थे। इस तरह से पेंशनर्स गवर्नरों और वाइसरॉय की दया पर थे। भले ही पेंशन लाभ सरकार द्वारा प्रदान किए गए थे, लेकिन उन्हें 1 जनवरी 1922 से प्रभावी मूलभूत नियमों में शामिल नहीं किया गया था।
उल्लेखनीय है कि रक्षा मंत्रालय के तत्कालीन वित्त अधिकारी श्री डीएस नाकारा साल 1972 में रिटायर हुए थे। उन्हें दूसरे पेंशनरों की तरह ही अपनी पेंशन प्राप्त करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। 17 दिसंबर 1982 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने पेंशनरों के पक्ष में फैसला सुनाया। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश स्वर्गीय जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने फैसला पेंशनरों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि पेंशन न तो नियोक्ता की इच्छा पर निर्भर करती है, न ही यह अनुग्रह का विषय है और न ही पूर्व भुगतान का। पेंशन तो सेवानिवृत्त कर्मचारी को उसके द्वारा प्रदान की गई पिछली सेवाओं का भुगतान है। यह एक सामाजिक कल्याणकारी न्याय है जो अपने जीवन के सुनहरे दिनों में नियोक्ता के लिए इस आश्वासन पर काम करते रहे कि वे वृद्धावस्था में उन्हें आर्थिक तौर पर असहाय नहीं होने देंगे। श्री डीएस नाकारा के कारण ही आज पेंशनरों को नियमानुसार पेंशन प्राप्त हो रही है। इसलिए आज के दिन सभी पेंशनर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान अनेक अच्छे कार्य किए। किन्तु उनके सबसे खराब कार्यो में एक है 1 जनवरी 2004 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले केन्द्रीय कर्मचारियों को पेंशन से वंचित करना। उस समय केन्द्र की देखादेखी देश के लगभग सभी राज्यों ने 2004 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी। इस कारण लाखों कर्मचारी पेंशन से वंचित हो गए। वे आज दयनीय जीवन जीने के लिए अभिशप्त है। सरकार ने पेंशन बंद कर इसकी जगह 1 जनवरी 2004 से ही राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली ( एनपीएस ) शुरू की। इस योजना में नौकरी करने वाले से एक निश्चित राशि जमा की जाती है और लगभग उतनी ही राशि नौकरी देने वाला नियोक्ता कर्मचारी के खाते में जमा करता है। सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी 60 प्रतिशत राशि का भुगतान प्राप्त कर सकता है। बची 40 प्रतिशत राशि एनपीएस में जमा रहती है। इस राशि पर ही उसे पेंशन प्राप्त होती है। यह पेंशन इतनी कम होती है कि कर्मचारी उससे अपना गुजर-बसर नहीं कर सकता है। इसलिए अब केन्द्र और अनेक राज्यों में पुरानी पेंशन शुरू करने की माँग जोर-शोर से शुरू हो गई है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल आदि राज्यों ने पुरानी पेंशन शुरू करने की घोषणा भी शुरू कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशानुसार केन्द्र और राज्यों के कर्मचारियों को पेंशन मिल रही है। किन्तु अभी भी कुछ राज्यों द्वारा विशेषकर मध्यप्रदेश में पेंशनरों के साथ अत्यन्त भेदभाव हो रहा है। पिछले माह 24 नवम्बर को भोपाल में मध्यप्रदेश पेंशनर संघ ने अपनी माँगों की पूर्ति के लिए विशाल धरना प्रदर्शन आयोजित किया था। उनकी प्रमुख माँग इस प्रकार थी- राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 (6) को निरस्त किया जाए। यह 1 नवम्बर 2000 से पूर्व के पेंशनरों के वित्तीय दायित्वों पर प्रभावशील है, जबकि इसे 1 नवंबर 2000 के बाद सेवानिवृत्त कर्मचारियों पर भी जबरन थोपते हुए पिछले 22 सालों से पेंशनरों के वित्तीय स्वत्वों को भुगतान नहीं करते हुए उन्हें मानसिक एवं आर्थिक यातनाएँ दी जा रही है।
उल्लेखनीय है कि 15 मई 2018 को प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भोपाल में प्रदेश के पेंशनरों की पंचायत बुलाई थी। उस पंचायत में मुख्यमंत्री ने सभी पेंशनरों को सातवें वेतनमान का लाभ 1 जनवरी 2016 से ही दिए जाने का आश्वासन दिया था, जिसे आज तक पूरा नहीं किया गया है। जबकि प्रदेश के समस्त कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का लाभ 1 जनवरी 2016 से ही दिया गया है। उन्हें उनका पूरा एरियर भी दे दिया गया है। छठवें वेतनमान और सातवें वेतनमान का पूरा एरियर पेंशनरों को अभी तक नहीं दिया गया है। प्रदेश के अखिल भारतीय संवर्ग के अधिकारियों को मँहगाई राहत का नियमित भुगतान किया जा रहा है। किन्तु प्रदेश के पेंशनरों को मनमर्जी माह का निर्धारण ( कट ऑफ डेट ) निर्धारण कर महँगाई राहत के भेदभाव पूर्ण आदेश जारी किए जा रहे हैं। महँगाई राहत का भुगतान भी केन्द्रीय तिथि से सभी पेंशनरों को किया जाना चाहिए। यह भेदभाव तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए।
17 दिसंबर पेंशनर दिवस के अवसर पर मध्यप्रदेश में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और उनमें अपनी मांगों की पूर्ति करने के लिए राज्य सरकार से माँग की जा रही है। मध्यप्रदेश की श्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार निरंतर पेंशनरों की मांग के प्रति असंवेदनशील रवैया अपनाए हुए है। इसलिए अब मध्यप्रदेश के पेंशनर एसोसिएशन को पेंशन दिवस के अवसर पर यह प्रण करना चाहिए कि राज्य के पेंशनर अब आर-पार की लड़ाई लडे़ंगे। इसके लिए उन्हें प्रदेश की राजधानी भोपल के साथ ही प्रदेश के सभी संभागीय ,जिला मुख्यालयों और तहसील मुख्यालयों पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन का आयोजन करना चाहिए। यह धरना अपनी मांगों के मंजूर होने तक निरंतर चलते रहना चाहिए, तभी राज्य सरकार पेंशनरों की सभी मांगे मंजूर करने के लिए बाध्य होगी।
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