अपना एमपी गज्जब है..34 जीभ और जेल का भी रिश्ता होता है....
अरुण दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
रहिमन जिव्हा बाबरी
कहि गई सरग पताल
आपु तौ कहि भीतर गई
जूती खात कपाल....
करीब 600 साल पहले इस फानी दुनियां से कूच कर गए मुगल योद्धा अब्दुल रहीम खानखाना ने जब तलवार के साथ कलम चलाई होगी तो उन्होंने भी नही सोचा होगा कि सैकड़ों साल बाद उनके लिखे को इतनी शिद्दत से याद किया जाएगा।तलवार के धनी अब्दुल रहीम खानखाना अपनी लेखनी की वजह से रहीम के नाम से मशहूर हुए!आज भी आकर लोग उनके दोहों का जिक्र करते हैं।आज हालत यह है कि उनका जिक्र करने वाले लोग उन्हें नही जानते।लेकिन उनकी बातों को सीना ठोंककर कहते हैं।
ऊपर रहीम के जिस दोहे का जिक्र है वह इन दिनों अपने एमपी में काफी मौजूं दिख रहा है। कांग्रेस के एक सठियाए नेता जी कुछ लोगों को देख ऐसे रौ में बहे कि भूल गए कि उनके श्रीमुख से क्या निकल गया!हालांकि उन्होंने तत्काल अपने कहे को रफू करने की कोशिश की लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था।नतीजा यह है कि नेता जी आज जेल में हैं।उनकी अपनी पार्टी भी उनसे पल्ला झाड़ रही है।
आप ठीक समझे ! बात पूर्व मंत्री राजा पटेरिया की हो रही है।पिछले तीन दिन से राजा पटेरिया देश के मीडिया में छाए हुए हैं।बुंदेलखंड इलाके के राजा विधायक रहे हैं।मंत्री भी रहे हैं।लोकसभा चुनाव भी लड़े हैं।लेकिन जीत नही पाए।स्वभाव से समाजवादी हैं।इसलिए भाजपा का विरोध कुछ ज्यादा ही करते हैं !
शायद यही वजह है कि पिछले सप्ताह अपने इलाके में लोगों को भाजपा से होने वाले खतरे गिनाते गिनाते वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की बात कह गए।हालांकि उन्होंने अगले क्षण अपनी भूल सुधारी!लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राज्य सरकार हमलावर हुई। खुद मुख्यमंत्री और गृहमंत्री ने उनके बयान की निंदा की।उनकी अपनी पार्टी,कांग्रेस ने भी उनके बयान को अनुचित ठहराया।साथ ही उनसे दूरी बनाते हुए जवाब तलब भी कर लिया। उधर पुलिस ने भी तत्परता से उन्हें गिरफ्तार कर लिया।जमानत नही मिली सो पटेरिया जी कारागार पहुंच गए!फिलहाल 14 दिन की न्यायिक हिरासत में हैं।
हालांकि उन्होंने अपने कहे पर सफाई भी दी और खेद भी जताया।गांधी बाबा का भी सहारा लिया!लेकिन न तो सरकार पसीजी और न कांग्रेस ने उनके खेद पत्र का संज्ञान लिया। हां राजा पटेरिया को एक लाभ जरूर मिला !वह यह कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बीच उन्हें राष्ट्रीय ख्याति जरूर मिल गई। ऐसा नहीं है कि यह मामला अपने आप में पहला है।आज जो माहौल है उसे देखते हुए ,भले ही पटेरिया जेल भेजे गए हों,आखिरी भी नही हो सकता। पंचायत से लेकर संसद तक इस तरह की बातें होती रही हैं और होती भी रहेंगी। दरअसल समाज में को चौतरफा गिरावट आई है उसका असर सब तरफ दिख रहा है।पिछले एक दशक में तो बड़े बड़े नेताओं के श्रीमुख से ऐसे ऐसे शब्द निकले हैं जिनकी कल्पना भी उनके पद को देखकर नही की जा सकती है।पर बड़े लोगों के मुंह से अपने विरोधियों के लिए निकले इन शब्दों ने जहां उनके समर्थकों का हौसला सातवें आसमान पर पहुंचाया वहीं कमजोर विरोधी मुकाबले की ही सोचते रहे। सोशल मीडिया के इस युग में रोज इतना कीचड़ उछल रहा है कि कल्पना से परे है।
अगर आज खुद रहीम होते तो नए दौर की भाषा सुनकर ही सहम जाते। राजा पटेरिया कोई अकेले नेता नही हैं जिनकी जुबान फिसली है।रोज ऐसा ही हो रहा है।राजा के बाद एक और कांग्रेस विधायक ने मुख्यमंत्री के खिलाफ अशालीन भाषा बोली।
संसद और विधानसभाओं में भी बहुत कुछ ऐसा बोला जाता रहा है जो माननीयों की गरिमा के अनुरूप नहीं था।कई विधानसभाओं के भीतर जिस तरह का युद्ध सदस्यों के बीच हुआ है वह तो अकल्पनीय था।दुनिया के अन्य देशों में भी ऐसे उदाहरण मौजूद हैं।
लेकिन अपने एमपी में ऐसा पहली बार हुआ है कि नेताजी की फिसली जुबान ने उन्हें सीधे जेल में जा पटका।अभी तक ऐसे मामले निजी तौर पर अदालतों तक पहुंचते रहे हैं।लेकिन अब पुलिस बीच में आ गई है।
मध्यप्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष तो उन शब्दों की सूची तैयार करा चुके हैं जो सदन के भीतर नहीं बोले जा सकते हैं।अगर कोई सदस्य बोलेगा तो सदन की कार्यवाही से अपने आप निकाल दिए जाएंगे।लेकिन फिर भी सदस्य मानते नही हैं। एक दूसरे के प्रति असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल वे नियमित करते हैं।वैसे भी सदन में सामान्य कामकाज कहां होता हैं।हंगामा ,आरोप - प्रत्यारोप के बीच आस्तीनें चढ़ाना आम बात है।
सरकारों की खरीफरोख्त के बाद राजनीतिक दलों के बीच जुबानी जंग तो बढ़ी ही है।इस जंग में भाषा रसातल में चली गई है।कई बार तो विधानसभा की दर्शक दीर्घा को भी सदन की लड़ाई में शामिल करने के उदाहरण मिले हैं।कोई रुकने को तैयार नहीं है।सब आगे निकलने की होड़ में हैं।
लेकिन जुबान फिसलने की घटना पर सीधे जेल पहुंचने की ऐसी मिसाल शायद ही हो।उससे बड़ी मिसाल अपनी ही पार्टी द्वारा जल्दबाजी में साथ छोड़ने की है।हो सकता है कि जल्दी ही इससे बड़ी मिसालें सामने आ जाएं।अगर आज रहीम होते तो शायद अपने दोहे नए सिरे से लिखते ! खैर कुछ भी हो अपना एमपी गज्ज़ब है!देखना यह होगा कि अगला "राजा" कौन होगा?