सिंहस्थ क्षेत्र में अतिक्रमण हो कैसे रहे हैं ?
संदीप कुलश्रेष्ठ
हाल ही में जिला प्रशासन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि सिंहस्थ 2016 के बाद मेला क्षेत्र में हुए अतिक्रमण और पक्के निर्माण कार्य हटाए जायेंगे। ऐसा ही निर्णय 2004 के सिंहस्थ के समय में भी जिला प्रशासन द्वारा लिया गया था। यहाँ सवाल यह उठता है कि सिंहस्थ क्षेत्र में निर्माण और अतिक्रमण हो कैसे रहे हैं ?
2004 में 2,154 हेक्टेयर में सिंहस्थ लगा था -
2004 में सिंहस्थ मेला कुल 2,154 हेक्टेयर जमीन पर लगा था। पिछले सिंहस्थ से करीब 500 हेक्टेयर अधिक क्षेत्र में यह मेला लगा था। इसी प्रकार 2016 में 3061 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंहस्थ लगा था। यह पिछले सिंहस्थ से 907 हेक्टेयर अधिक जमीन है। इस प्रकार आगामी सिंहस्थ 2028 में आयोजित होगा। निश्चित रूप से इसके लिए पिछले सिंहस्थ की तुलना में करीब डेढ़ हजार हेक्टेयर अधिक जमीन की जरूरत होगी। इसके लिए ही जिला प्रशासन द्वारा प्रारंभिक तैयारियाँ की जा रही है।
सिंहस्थ क्षेत्र में 331 अतिक्रमण -
जिला प्रशासन द्वारा सिंहस्थ क्षेत्र में 2016 के बाद हुए अतिक्रमण और अवैध कॉलोनियों के निर्माण की जो प्रारंभिक जानकारी प्राप्त की गई है, उसके अनुसार कुल 331 अवैध निर्माण कार्य पाए गए हैं। इसमें से जोन एक के अन्तर्गत रामनगर में 48 निर्माण, ग्यारसी नगर के पास 46 निर्माण, ग्यारसी नगर में 41 निर्माण, जूना सोमवारिया में 21 निर्माण और अन्य जगहों पर कुल 26 निर्माण कार्य चिन्हित किए गए है। इसी प्रकार जोन 2 में एक गुलमोहर कॉलोनी में ही 100 अवैध निर्माण कार्यो की पहचान की गई है। जोन 3 के अन्तर्गत विभिन्न स्थानों पर 49 निर्माण कार्य चिन्हित किये गए है। जिला प्रशासन द्वारा शीघ्र इन अवैध निर्माणों को हटाने की कार्रवाई की जायेगी।
अवैध निर्माण हुए कैसे ? -
सिंहस्थ मेला अधिनियम 1955 में लागू हुआ था। सिंहस्थ मेला शिप्रा के किनारे और शहर के पास ही लगे, इसलिए सिंहस्थ के लिए जमीन सुरक्षित रखी जाती है। अवैध निर्माण करने वालों पर 3 से 7 साल तक की सजा का भी प्रावधान है। इसके बावजूद अधिनियम बनने के बाद से आज दिनांक तक हर सिंहस्थ के दौरान अतिक्रमण और निर्माण कार्य किए जाते रहे हैं। हर सिंहस्थ के बाद और अगले सिंहस्थ के पहले जिला प्रशासन द्वारा यही कहा जाता है कि मेला क्षेत्र से अतिक्रमण और निर्माण कार्य सख्ती से हटाए जायेंगे। अब सवाल यहाँ यह है कि अधिनियम में सजा का प्रावधान होने के बावजूद अभी तक एक भी अवैध निर्माण और अतिक्रमण करने वालों को सजा क्यों नहीं हुई ? सीधी बात है, अवैध निर्माण करने वाले कॉलोनाइजरों और नगर निगम के अधिकारियों की मिलीभगत के कारण किसी के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती है।
अवैध निर्माण कार्य को वैध करना -
राज्य सरकार हमेशा अवैध निर्माण और अतिक्रमण के मामले में लुंजपुंज रवैया अपनाती है। इसी कारण धड़ल्ले से अवैध अतिक्रमण और निर्माण कार्य हो रहे हैं। इस बार भी ऐसा ही होने जा रहा है। 2016 के पहले जो अवैध निर्माण हुए हैं, उसे लेकर शिथिलता बरती जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इन अवैध निर्माण कार्य का नियमितीकरण किया जा सकता है। अर्थात् 2016 के पहले के अतिक्रमण और निर्माण कार्यों को वैधानिक की जाने की संभावना भी व्यक्त की जा रही है। यहीं पर सरकार पूरी तरह से दोषी है।
गरीब ही मारा जाता है -
सिंहस्थ क्षेत्र में अवैध कॉलोनी काटने वाले सस्ती दर पर भूख्ांड और मकान दे देते हैं। इस कारण से कई गरीब उनके जाल में सहज ही फंस जाते हैं। जब भी सिंहस्थ क्षेत्र में अतिक्रमण हटाया जाता है या पक्के-कच्चे निर्माण को हटाने की कार्रवाई जिला प्रशासन करता है, तो सबसे पहले ये गरीब ही मारा जाता है। उनकी जीवनभर की कमाई मिट्टी में मिल जाती है और वे मन मसोस कर रह जाने के अलावा कुछ नहीं कर पाते हैं। अवैध कॉलोनी काटने वालों के विरूद्ध आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए उनके हौंसले बुलन्द रहते है। सिंहस्थ के आयोजन के तुरंत बार उनकी गिद्द दृष्टि सिंहस्थ क्षेत्र की भूमि पर रहती है और वे अवैध कॉलोनी काटने में लग जाते है। यही बरसों से होता आ रहा है।
दोषी अधिकारियों के विरूद्ध हो कार्रवाई -
सिंहस्थ क्षेत्र में होने वाले अतिक्रमण और निर्माण कार्यों को नजर अंदाज करने वाले नगर निगम के बिल्डिंग ऑफिसरों के विरूद्ध आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस कारण से उनके हौसलें बुलन्द रहते हैं। वे अवैध निर्माण कार्यों से वसूली कर अपनी जेब भरते रहते हैं। इसी प्रकार अवैध अतिक्रमण और निर्माण कार्य होते चले आ रहे हैं। आज भी सिंहस्थ क्षेत्र में निर्माण कार्य में प्रतिबंध होने के बावजूद सिंहस्थ 2016 के बाद अनेक अवैध कॉलोनियां में अनेक कच्चे-पक्के निर्माण कार्य हो गए हैं। जिम्मेदार अधिकारियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करने से ही प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध निर्माण कार्य और अतिक्रमण रोके जा सकेंगे। शासन और जिला प्रशासन को इस पर सख्त रूख अपनाने की आवश्यकता है।
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