अपना एमपी गज्जब है..32 अब मोदी फार्मूला दांव पर..
अरुण दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा भले ही हिमाचल प्रदेश में हार गई हो पर उसने गुजरात में जीत का जो रिकॉर्ड कायम किया है उससे सभी गदगद हैं।गुजरात जीत का शानदार जश्न मनाकर केंद्रीय नेतृत्व ने भी यही प्रमाण दिया है!इसके साथ ही यह मान लिया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो फार्मूला गुजरात में अपनाया था वह अब अन्य राज्यों में भी अपनाया जाएगा!क्योंकि ऐसी ऐतिहासिक जीत को मोदी दोहराना जरूर चाहेंगे !
2023 में तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं!ये राज्य हैं - राजस्थान,मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़!राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा सत्ता में नही है। इसलिए मध्यप्रदेश पर सबकी नजरें टिक गईं हैं ! खुद भाजपाई मान रहे हैं कि मोदी गुजरात का अपना सुपर सक्सेस फार्मूला एमपी में जरूर लागू करेंगे ! हालत यह है कि गुजरात में अभी नए विधायकों की पहली बैठक भी नही हो पाई है और एमपी में गुजरात फार्मूले को लेकर अटकलें शुरू हो गईं हैं।दूसरे दलों और मीडिया को छोड़ भी दें तो भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे मोदी पर पूरा भरोसा है।इन्हें लगता है की 2003 का उमा भारती का रिकॉर्ड तोड़ने के लिए गुजरात फार्मूला एमपी में जल्दी ही लागू किया जाएगा।
मोदी का गुजरात फार्मूला तो आपको याद ही होगा।उन्होंने विधानसभा चुनाव के पहले राज्य की पूरी सरकार बदल दी थी।पहली बार के विधायक को मुख्यमंत्री बनाया!साथ में मंत्रिमंडल में सब चेहरे नए कर दिए!जब टिकट बांटे तब भी बहुत से मंत्रियों ,विधायकों को घर भेज दिया।चुनाव की कमान खुद संभाली।नतीजा सामने है!मोदी का सीना 56 इंच से 156 इंच पर पहुंच गया।गुजरात में ऐसा इतिहास बन गया।जिसने दिल्ली और हिमाचल की हार को मन पर आने ही नही दिया।
अब यह गुजरात फार्मूला जुबान पर है। एमपी में तो मीडिया ने बाकायदा कसरत शुरू कर दी है।सूचियां बन रही हैं।मार्ग दर्शक मंडल में नई भर्ती की भी चर्चा हो रही है।मीडिया की चर्चा से अलग भाजपा के भीतर भी गहरी चर्चा और चिंतन गुजरात फार्मूले पर चल रहा है।
चिंता की बात भी है।सब जानते हैं कि 2018 में भाजपा विधानसभा चुनाव हार गई थी।हालांकि बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की कथित बगावत ने 15 महीने बाद ही उसे उसकी खोई सत्ता वापस दिला दी थी।लेकिन हार का वह दंश मोदी नही भूले हैं।बिना चुनाव लड़े सत्ता में वापसी का "पतली गली वाला रास्ता" भी उन्होंने ही खोजा था।बाद में उसे उपचुनाव में "चौड़ा" भी करवाया।
खुद भाजपाई मानते हैं कि सरकार बनाने के लिए मोदी ने अपनी थाली में हिस्सेदारी तो कर ली लेकिन उन्हें सत्ता में किसी भी तरह का हिस्सा बांट पसंद नही है।
जहां तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की बात है, 2008 और 2013 का चुनाव उन्होंने अपनी दम पर जीते थे।तब तक नरेंद्र मोदी गुजरात तक ही सीमित थे। तत्कालीन केंद्रीय नेतृत्व शिवराज और मोदी को एक ही पासंग तौलता था।2013 में लालकृष्ण आडवाणी ने तो शिवराज को पीएम पद के लिए योग्य उम्मीदवार तक बता दिया था।
लेकिन 2014 के बाद माहौल बदल गया।मोदी पीएम बन गए!भाजपा उनकी निगरानी में आ गई।उनका विजय रथ चला तो कई नए राज्य भाजपा की जेब में आ गए।
लेकिन 2018 में मोदी का विजय रथ थोड़ा धीमा पड़ा।राजस्थान,एमपी और छत्तीसगढ़ में भाजपा हार गई।हालांकि कहा तो यह जाता है कि यह हार मोदी के लिए मुफीद थी।क्योंकि पार्टी की राजनीति में उनकी बराबरी कर रहे तीन क्षेत्रीय नेता - वसुंधरा राजे सिंधिया,शिवराज सिंह और डाक्टर रमण सिंह अपने आप दौड़ से बाहर हो गए थे।लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में भाजपा की जीत ने इस धारणा को और मजबूत किया।
यह अलग बात है कि शिवराज सिंह ने 2018 से पहले ही नरेंद्र मोदी की सदारत को स्वीकार कर लिया था।उन्हें भगवान के समकक्ष बता दिया था।लेकिन हार तो हार थी।
शायद यही वजह थी कि 15 महीने बाद जब कांग्रेस की सरकार गिरी तो मोदी ने पहला मौका शिवराज सिंह को ही दिया।हालांकि उनका यह फैसला उनके स्वभाव के विपरीत था।लेकिन कहा गया कि शिवराज की खोई कुर्सी वापस दिलाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका अहम रही थी। वे नही चाहते थे कोई ऐसा नेता सीएम की कुर्सी पर बैठे।जो उनके अनुकूल न हो।फिर नए से तालमेल बैठाना मुश्किल होता।
शिवराज ने भी अपनी लाइन को छोटा रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।अब वे मोदी को कल्प वृक्ष बता रहे हैं।गुजरात की जीत का जश्न मना रहे हैं।
पर प्रदेश के हालात से सब अच्छी तरह वाकिफ हैं।सरकार के खिलाफ माहौल है।लोगों में नाराजगी है।बड़े बड़े घोटाले चर्चा में आज भी हैं।कई मोर्चों पर सरकार की नाकामियां सतह पर हैं।शिवराज का चेहरा भी अब उतना चमकदार नही बचा है जितना 2013 में था।
उधर कांग्रेस टूट के बाद भी उतनी नही बिखरी है जितनी भाजपा चाहती थी।राहुल की भारत जोड़ो यात्रा ने उसके बिखराव को रोका है।कांग्रेसी नेता भी अब समझ रहे हैं कि अगर अब चूक गए तो उत्तरप्रदेश जैसा हाल हो जायेगा।फिर प्रदेश में "आप" अभी भी ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं है।और कोई है नहीं !
हालांकि शिवराज अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहे हैं।मुख्यमंत्री की कुर्सी पर करीब 17 साल गुजारने के बाद भी वे फ़िल्म नायक के एक दिन के मुख्यमंत्री की तरह "क्रांतिकारी" कदम उठा रहे हैं।रोज हवा में उड़ते हुए जगह जगह अपना रौद्र रूप दिखा रहे हैं।कहीं अफसर सस्पेंड कर रहे हैं तो कहीं छोटे कर्मचारियों को सजा दे रहे हैं।हवा में बह रहे भ्रष्टाचार को "मैग्नीफाइंग ग्लास" से खोज रहे हैं।अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर फ्री.. फ्री.. का खेल भी खेल रहे हैं।लेकिन चुनावी साल में इन बातों का ज्यादा असर होता दिख नही रहा है। उधर पार्टी के भीतर भी एक बड़ी फौज उनके खिलाफ लामबंद हो रही है।कुछ मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं तो कुछ को सत्ता की गाड़ी से उतारे जाने का खतरा लग रहा है।
मीडिया में आ रही सूचियां भी लंबी हो रही हैं।2018 हार चुके शिवराज पर संगठन भी अब पहले जैसा भरोसा नहीं कर पा रहा है। यही वजह है कि गुजरात के नतीजे आते ही एमपी में गुजरात मॉडल लागू किए जाने की चर्चा शुरू हो गई है।भाजपाई चाहते हैं कि मोदी अपना फार्मूला जल्दी से जल्दी लागू करें।फार्मूले के मुताबिक यही सबसे उचित समय उसे लागू करने का है।बताते हैं कि कुछ नेताओं ने तो प्रसिद्ध स्थलों पर पूजा पाठ भी शुरू करा दिया है। मजे की बात यह है कि कांग्रेस नही चाहती है कि मोदी अपना फार्मूला एमपी में लागू करें।उसे लगता है कि शिवराज के रहते उसके लिए आसानी होगी।क्योंकि उनके खिलाफ उसके पास बहुत कुछ है। नया चेहरा आने पर उसे नए सिरे से तैयारी करनी होगी।
अब देखना यह है कि मोदी क्या करते हैं। क्योंकि वे क्या करेंगे यह तो शायद भगवान भी नही जानते होंगे!फिर भी भाजपा के लोगों को उन पर पूरा भरोसा है!उन्हें लगता है कि मोदी उनकी इस उम्मीद पर जरूर खरे उतरेंगे ! चाहे कुछ हो जाए!गुजरात का फार्मूला एमपी जरूर आएगा ! फिलहाल "उम्मीद" के साथ अटकलें जोरों पर हैं।अटकलें यह बता रही हैं ..कुछ भी हो अपना एमपी गज्जब है! है कि नहीं!