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ओल्ड पेंशन-नयी पेंशन पर राजनीति का अनैतिक राग !


लाजपत आहूजा, वरिष्ठ पत्रकार

                    प्रारंभ में ही दो बातें  मित्रों से स्पष्ट करना चाहता हूँ कि राजनैतिक दलों से संबंध होते हुये भी यह राजनीतिक पोस्ट  नहीं है.इसका संबंध देश की समूची आर्थिकी से है.दूसरा यह केवल सरकारी कर्मचारियों का मामला नहीं है.इसका संबंध बजट से है जिसका वास्ता और प्रभाव सभी नागरिकों पर पड़ेगा. इसके अलावा यह राजनैतिक बेईमानी का विषय भी है.सरकारें पाँच साल के लिये चुनी जाती है तो वह  वो फ़ैसला कैसे ले सकते हैं जिसका असर भविष्य में राज्य की कमर तोड़ने वाला हो सकता है.यह मामला वैसा ही है कि आज तो हम जीत जाएँ कल से हमें क्या.जो होगा वह भुगते,नागरिक भुगतें.
                   अब ज़रा  सरकारी कर्मचारियों के पेंशन का मामला समझ लें.पेंशन का बढ़ता खर्चा पूरी दुनिया में चिन्ता का विषय था.अत: भारत में २००४ में अंशदायी पेंशन का निर्णय लागू किया गया. इसका अर्थ यह हुआ कि नये सरकारी कर्मचारियों के वेतन से १० प्रतिशत राशि काटी जायेगी और दस प्रतिशत सरकार अपनी तरफ़ से मिलायेंगी .उस पर मिलने वाला ब्याज से कर्मचारियों को पेंशन मिलेगी. कांग्रेस सरकार में वित मंत्री रहे चिदम्बरम आज भी इसके समर्थक हैं.वर्तमान सि्थति यह है कि   केन्द्र आौर कई राज्यों में जितने कार्य रत कर्मचारियों  के वेतन मज़दूरी से भी ज़्यादा खर्च पेंशन पर हो रहा है.अभी  हिमाचल में कांग्रेस  ओल्ड पेंशन लागू  करने का वायदा कर जीत कर आई है.आप पार्टी ने यही वायदा गुजरात के  लिये किया था.अभी अमेरिका ने  पेंशनरों की पेंशन कम की है.यही चलन रहा तो भारत का हाल इससे भी बुरा हो सकता है.
                  मेरी इस पोस्ट का यह आशय कतई नहीं है कि नये कर्मचारियों की भविष्य की सुरक्षा पर विचार नहीं किया जाय.मेरे  जनसंपर्क के साथी सुरेश आवतरमानी  जो लेखा और सिनेमा विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं ,का मानना है कि अगर फ़ंड मैनेजमेंट भली प्रकार सुनिश्चित किया जाय तो अंशदायी पेंशन  वाले  कम पेंशन नहीं पायेंगे.अगर इसमें फिक्स डिपाजिट जैसे कदम उठाये जाए तो और बेहतर परिणाम मिलेंगे.वे कहते हैं कि हर दस साल में  वेतनआयोग बनने से कर्मचारियों के वेतन में औसतन २५० प्रतिशत की वृद्धि होती है. वे यह भी कहते हैं कि  एक समय था जब  जिस पद का वेतन सवा हज़ार होता था उसका आज वेतन ५० हज़ार है.तब यह धारणा थी कि वेतन कम है तो पेंशन विलंबित वेतन है .आज यह धारणा बदल चुकी है और इसे इसी रूप में ग्रहण करना चाहिए.
                इस गंभीर विषय पर अपेक्षाकृत लंबी पोस्ट का समापन इस टिप्पणी के साथ करना चाहूँगा कि राजनैतिक दलों को नैतिकता के साथ इस विषय पर राजनीति करनी ही है तो अपने पाँच साल के दायित्व के अन्तर्गत करें.गुजरात सरकार ने जैसा अंशदायी पेंशन में अपना हिस्सा १०प्रतिशत से बढ़ाकर १४ प्रतिशत कर किया.ऐसे अनैतिक वादे नहीं कि ओल्ड पेंशन लागू हम करेंगे,भुगतें भविष्य की सरकारें और जनता.

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