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खान डायवर्सन योजना : 600 करोड़ रूपये भी जायेंगे पानी में !


डॉ. चन्दर सोनाने
                   मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 2016 के सिंहस्थ के पहले करीब 100 करोड़ रूपए की लागत से खान डायवर्सन योजना बनाई गई थी। यह योजना पूरी तरह से घोषित रूप से असफल सिद्ध हो चुकी है। इसके बाद फिर 598 करोड़ 66 लाख रूपए की लागत से फिर खान डायवर्सन योजना बनाई गई है। हाल ही में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में आयोजित मंत्री परिषद की बैठक में इस योजना को मंजूरी दी गई है। पहले 100 करोड़ रूपये पानी में बहा देने के बाद भी राज्य सरकार और जल संसाधन विभाग ने कुछ सीख नहीं लेते हुए फिर करीब 600 करोड़ रूपये पानी में बहाने की ठान ली है !
                   वर्ष 2016 के सिंहस्थ में श्रद्धालुओं के स्नान के लिए शिप्रा नदी के जल को शुद्ध रखने के लिए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा यह योजना बनाई गई थी। ग्राम पिपल्याराघौ से खान नदी के प्रदूषित पानी को पाईप लाईन के जरिये कालियादेह महल के आगे वापस वैसे के वैसे ही शुद्ध किए बिना छोड़ दिया गया था। 19 किलोमीटर लंबी इस योजना के लिए शुरूआत में 90 करोड़ रूपये मंजूर किए गए थे, जो योजना बनते-बनते करीब 100 करोड़ की हो गई थी। उस योजना में मजेदार बात यह थी कि खान नदी के इस गंदे पानी को फिल्टर और शुद्ध कराने के बाद शिप्रा नदी के पानी में मिलाने की कोई योजना नहीं बनाई गई थी। उस समय की योजना में खान नदी का गंदा पानी बिना शुद्ध किये कालियादेह नदी के पास शिप्रा नदी में मिलने से वहाँ की शिप्रा नदी का साफ पानी भी प्रदूषित हो रहा था। कालियादेह महल के आगे कई गाँव और महिदपुर आदि शहर आते है, जो शिप्रा नदी किनारे पड़ते हैं। वहाँ के निवासियों ने शिप्रा नदी में खान नदी के गंदे पानी के मिलने की शिकायत भी की थी, किन्तु किसी ने भी उस पर ध्यान नहीं दिया। 
                   पिछले साल शनिश्चरी अमावस्या के एक दिन पहले खान नदी का प्रदूषित पानी खान डायवर्सन योजना से पूरी तरह नहीं निकला और ओवरफ्लो होकर उसने त्रिवेणी पर बने कच्चे बांध को तोड़ दिया था। इससे खान नदी का दूषित पानी सीधा शिप्रा नदी में मिल गया था। उस समय हजारों श्रद्धालुओं को गंदे और प्रदूषित पानी में ही स्नान करने को बाध्य होना पड़ा था। तब ताबड़तोड़ जिला प्रशासन ने पाईप लाईन बिछाकर फव्वारे से श्रद्धालुओं के लिए स्नान की जैसे- तैसे व्यवस्था की थी, किन्तु वह असफल सिद्ध हुई थी। यह देख उज्जैन के साधु संत कुपित हो उठे और उन्होंने अनशन कर दिया। इस कारण मुख्यमंत्री ने चार मंत्रियों की समिति बनाकर उसे जाँच करने के लिए भेजा था। उन चार मंत्रियों में से दो मंत्रियों ने इसका निरीक्षण किया था। उनमें एक जल संसाधन मंत्री श्री तुलसी सिलावट भी थे। मौके पर उनसे पत्रकारों ने जब खान डायवर्सन योजना के असफल होने के बारे में प्रश्न किये तो श्री तुलसी सिलावट ने सार्वजनिक रूप से पत्रकारों के सामने यह स्वीकार किया था कि खान डायवर्सन परियोजना असफल सिद्ध हो चुकी है। किन्तु किसी भी दोषी अधिकारी पर आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। 
                          साधु संतों के कुपित होने पर हाल ही में मुख्यमंत्री द्वारा जल संसाधन विभाग की 598 करोड़ 66 लाख रूपए की खान नदी डायवर्सन क्लोज डक्ट परियोजना को मंजूरी दी है। यह योजना भी ठीक पूर्व में बनी 100 करोड़ रूपए की परियोजना के समान है। इसमें खान नदी का दूषित जल के लिए उज्जैन के पास ग्राम गोठड़ा में एक स्टाप डेम बनाया जायेगा। उस स्टाप डेम में खान नदी का दूषित जल इकट्ठा किया जायेगा और ग्राम गोठड़ा से खान नदी का प्रदूषित जल 16.5 किलोमीटर दूरी तय कर कालियादेह ग्राम के पास पुनः शिप्रा नदी में वैसे के वैसे प्रवाहित करने की योजना बनाई गई। यह परियोजना आगामी सिंहस्थ 2028 के लिए बनाई जा रही है। इस परियोजना के अर्न्तगत खान नदी के 40 क्यूमैक नॉन मानसून फ्लो को डायवर्ट किया जाना प्रस्तावित है। इस परियोजना के अन्तर्गत 100 मीटर लंबाई में खुला एप्रोच चैनल का निर्माण किया जायेगा। कुल 16.5 किलोमीटर लंबाई की यह भूमिगत नहर बनेगी। इसमें 4.5 मीटर डी आकार के भूमिगत आरसीसी बॉक्स का निर्माण किया जायेगा। नहर के अंत में 100 मीटर लंबाई में ओपन चैनल का निर्माण किया जायेगा। 
                         सिंहस्थ 2016 की करीब 100 करोड़ रूपये की खान डायवर्सन योजना और करीब 600 करोड़ रूपये की सिंहस्थ 2028 की खान नदी डायवर्सन क्लोज डक्ट परियोजना मोटे तौर पर लगभग एक समान है। पहले की योजना और इस येजना का उद्देश्य एक ही है। वह यह कि खान नदी का गंदा पानी सिंहस्थ के समय त्रिवेणी, भूखीमाता, रामघाट और मंगलनाथ के घाटों पर शिप्रा नदी के जल में मिलने से रोकना। पहले की योजना 19 किलोमीटर लंबी थी। यह योजना 16.5 किलोमीटर लंबी है। पहले की योजना में ग्राम पिपल्याराघौ से खान नदी के दूषित पानी को पाईप लाईन के माध्यम से कालियादेह महल के आगे वापस वैसे के वैसे शिप्रा नदी में छोड़ दिया जा रहा था। इस योजना में भी यही होने वाला है। इस नई योजना में उज्जैन के पास ग्राम गोठड़ा में स्टाप डेम बनाकर दूषित जल को नहर के माध्यम से डायवर्ट करते हुए कालियादेह ग्राम के पास पुनः शिप्रा नदी में प्रवाहित करना है। पहले की योजना करीब 100 करोड़ रूपये की थी। यह योजना करीब 600 करोड़ रूपए की है। इस प्रकार सहज रूप से यह सिद्ध हो रहा है कि पहली असफल योजना के समान ही यह योजना भी बनाई गई है। 
                           यह सर्वविदित है कि खान नदी का गंदा पानी ही शिप्रा नदी को दूषित कर रहा है। इंदौर से उज्जैन के बीच बहने वाली इस खान नदी के दूषित जल को ही स्थाई रूप से ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर शुद्ध करने के बाद ही शिप्रा में छोड़े जाने की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके साथ ही इंदौर से उज्जैन के बीच जिन-जिन स्थानों पर जो भी कल-कारखानों का पानी शिप्रा में ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के बाद ही छोड़े जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। इंदौर-सांवेर आदि शहरों के नालों का गंदा पानी भी खान नदी में नहीं मिलने पाए, इसके लिए स्थाई बंदोबस्त किए जाने चाहिए। जब यह संकल्प कर लिया जाए कि खान नदी के पानी को दूषित होने से बचाया जायेगा तो इसके लिए हर संभव उपाय अपनाने की ही आज महति आवश्यकता है। इसी तरह की योजना बनाना आज की सख्त जरूरत है।
                         प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का उज्जैन के महाकाल मंदिर और शिप्रा के प्रति विशेष आदर और सम्मान है। यह सर्वविदित है। किन्तु उन्हें किसी ने यह नहीं बताया कि पहले की योजना असफल सिद्ध हो चुकी है, तो फिर उसी मूलभूत धरातल के आधार पर बनाई गई यह योजना सफल कैसे सिद्ध होगी ? इस योजना में एक सुधार यह भी हो सकता है कि ग्राम गोठड़ा से खान नदी का प्रदूषित पानी ट्रीटमेंट के बाद ही साफ पानी बंद नहर से कालियादेह ग्राम के पास शिप्रा नदी में मिला दिया जाए तो शिप्रा में खान नदी का प्रदूषित पानी मिलने से रोका जा सकता है। अन्यथा जैसे पूर्व योजना असफल सिद्ध हो चुकी है, वैसे ही यह योजना भी भविष्य में असफल सिद्ध होगी ही ! मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को इस पर गौर करना चाहिए।
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