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अपना एमपी गज्जब है..31 यह "महाराज सेना" के लिए संकेत और संदेश है....


अरुण दीक्षित ,वरिष्ठ पत्रकार
                  मध्यप्रदेश के सीएस को ठीक रिटायरमेंट के दिन 6 महीने का एक्सटेंशन दिए जाने का मुद्दा अब पीछे छूट गया है।आमतौर पर यह मान लिया गया है कि दिल्ली ने अपने सीएम के अनुरोध को मान लिया। खुद को बड़ा साबित करते हुए उनका "सम्मान" बना रहने दिया!अब सीएस खुश...
सीएम खुश..दिल्ली भी खुश...! सब खुश !
                लेकिन भोपाल से दिल्ली तक "चूल्हे में जड़" वाले मुखबिर इसे अलग नजर से देख रहे हैं!उनका मानना है कि दिल्ली ने सीएस को 6 महीने देकर एक तीर से कई शिकार किए हैं।जो सामने है वह तो सब देख रहे हैं।लेकिन जो सच में शिकार हुए हैं, वे न तो सामने आकर अपने घाव दिखा पा रहे हैं!और न ही खुल कर रो पा रहे हैं !
               इन मुखबिरों की माने तो दिल्ली और भोपाल ने मिलकर सीएस के जरिए "महाराज" को रुक्का भेजा है।संदेश साफ है - अब लाइन पर आ जाओ!लाइन में लग जाओ!2020 में मिला विशेष दर्जा अब खत्म! ये सब जानते हैं कि अपने जागीरदार से नाखुश महाराज ने कमलनाथ की 15 महीने की सरकार के नीचे की जमीन निकाल ली थी।फिर क्या हुआ यह भी किसी से छिपा हुआ नही है।
 महाराज पिता की पार्टी छोड़ अपने लाव लश्कर के साथ दादी और बुआओं की पार्टी में आए।उनके स्वागत में कमलदल ने पलक पांवड़े बिछाए।महाराज को राज्यसभा मिली और दिल्ली की सरकार में मनसबदारी भी।सफदरजंग वाला बंगला भी मिला।साथ आए लोगों को यथायोग्य दर्जा मिला।सब को चुनाव भी लड़ाया गया।जो जीते इन्हें कोटे में मंत्री बनाया गया।जो हारे उन्हें "दर्जा" देकर "मंत्री सुख" दिया गया।
 अपनी खोई सरकार पाने के बाद सीएम ने केवल अपनी भाषा बदली बल्कि पार्टी के कई बड़े नेताओं के मुंह पर मोटा टेप लगवा दिया।
                 करीब ढाई साल का समय ठीक ठाक ही गुजरा है।लेकिन मुखबिर कहते हैं कि  ऐसा  नही है।सत्ता के लिए यह बेमेल ब्याह हो तो गया लेकिन "गृहस्थी की पटरी" पर ठीक से चल नहीं पाया।
 महाराज और महाराज के सैनिकों को गद्दी और दरबार सब मिला। जो नही मिला वह था -पहले की तरह खुल कर खेलने का हक!नतीजा - वे छटपटाए!
 दरअसल कांग्रेस के बंटाधार को अपना आदर्श मानने वाले "राज्यप्रमुख"  ने वही पथ चुना जिस पर बंटाधार जी दस साल चले थे।अफसरों के जरिए मंत्रियों की नकेल कसी!विरोधियों को भी बर्फ में लगाया।बेचारे किस हाल में हैं.. वही जानते हैं।
                 मुखबिर कहते हैं सबसे पहले महाराज को संदेश दिया गया!उनके सबसे करीबी अफसर को सबसे मलाईदार पद से रातों रात हटा दिया।सहारा एक चिट्ठी का लिया गया।वे बेचारे आज तक लूप लाइन में पड़े हैं। उसके बाद महाराज के एक सबसे करीबी मंत्री को सबक सिखाया गया।वे अपने विभाग के मुखिया तय करने के लिए सूची लिए घूमते रहे!लेकिन राज्य प्रमुख ने लंबे समय तक लटकाने के बाद उसी अफसर को फिर से पद पर बैठा दिया जो रिटायर होकर घर चला गया था।
                  इसके साथ ही महाराज कोटे के सभी मंत्रियों को संदेश भी दिया गया। उन्हें अदृश्य नागपाश में बांध दिया गया। न तो अपने विभाग में अफसर उनकी सुनते हैं और न प्रभार वाले जिलों में कलेक्टर!
 हुआ यह कि खुले अपमान पर एक मंत्री तो आपे से बाहर हो गए!उन्होंने तो सार्वजनिक बयान देकर सीएस पर तानाशाह होने का आरोप लगा दिया।यह भी कहा कि वे मंत्रियों के फोन तक नहीं उठाते।बात नही करते। महाराज कोटे वाले अन्य मंत्रियों ने भी कानाफूसी की।लेकिन हुआ कुछ नहीं!बाद में सब शांत होकर बैठ गए।
                  मुखबिरों के मुताबिक इस बीच संगठन के स्तर पर महाराज को भी संदेश दे दिया गया।प्रदेश के मुखिया ने एक बैठक में साफ साफ कह दिया कि मैं अध्यक्ष हूं!आप इस तरह मुझसे बात नही कर सकते ! कहा तो यह भी जाता है कि एक बैठक से महाराज बीच में ही उठ कर चल गए थे।बाद में "पॉजिटिव" की आड़ लेकर अपनी नाक बचाई।
 तभी से पूरा महाराज खेमा सीएस से खफा था।वह चाहता था कि किसी भी कीमत पर उनका कार्यकाल न बढ़ाया जाए।दिल्ली पूरे मजे ले रही थी।इसलिए 9 नवम्बर की सीएम की चिट्ठी पर 30 नवम्बर को दोपहर को फैसला किया।सबको संदेश दे दिया।
                  बताया यह भी जा रहा है कि चुनावी साल में महाराज का "प्रिवी पर्स" दिल्ली ने बंद कर दिया है।यह साफ कर दिया गया है कि अब आप पार्टी के सामान्य कार्यकर्ता हो।आप पर वही नियम लागू होंगे जो आम कार्यकर्ताओं पर लागू होते हैं।अगले चुनाव तक जो जहां है बना रहेगा।लेकिन टिकट बांटते समय सिर्फ जीत ही सबसे बड़ा आधार होगी।कमल निशान उन्हें ही मिलेगा जो जितने की स्थिति में होंगे!वरना जयश्रीराम ! इस बीच कमलदल के वे पुराने कार्यकर्ता भी पूरी ताकत से मैदान में जुट गए हैं जिनके हित महाराज सेना की वजह से प्रभावित हो रहे हैं।खासतौर पर ग्वालियर चंबल संभाग में तो भारी खींचतान चल रही है। मुखबिर कहते हैं कि नौकरशाही को समझा दिया गया है।इसलिए  वह वही कर रही है जो उसे करना है।न बल्लभ भवन में पीएस सुनते हैं और न जिलों में कलेक्टर ! मंत्री बेचारे कुछ समझ ही नही पा रहे हैं।लेकिन जो उनका हाल है वही महाराज का हाल है।अब कहें तो किससे कहें ! ऐसे में महाराज सेना को लग रहा था कि सीएस हट जाएंगे तो हालात बदल जायेंगे!लेकिन ऐसा हो नही पाया।अब चुनावी साल में यदि प्रशासन का सहयोग नही मिला तो उनका क्या होगा यह सोच कर ही हलाकान हुए जा रहे हैं।
                कुछ को यह उम्मीद थी कि शायद "घर वापसी" हो जायेगी!लेकिन राहुल गांधी की पदयात्रा के समय जयराम रमेश द्वारा महाराज को 24 कैरेट का गद्दार बताए जाने के बाद यह उम्मीद भी खत्म हो गई है। खुद राहुल ने भी ऐसे ही संकेत दिए हैं। मुखबिर कहते हैं कि अभी भी महाराज सेना पूरी तरह नाउम्मीद नही हुई है।उसे लग रहा है चुनावी साल में मध्यप्रदेश में "गुजरात माडल" लागू हो सकता है।अगर ऐसा हुआ तो उसकी राह आसान हो जायेगी। इसलिए वह अब दिल्ली की ओर ही टकटकी लगाए है।
 कुल मिलाकर कमलदल के भीतर घमासान चल रहा है।अपने फैसलों से राजनीतिक पंडितों को हैरान करने वाले "महाप्रभु" क्या करेंगे..  वे ही जानें !
 जो कुछ भी होगा वह अगले कुछ दिन में हो जायेगा।लेकिन इतना तो तय है कि अपना एमपी गज्जब है ! सरकार में रहकर सरकार से जूझने का ऐसा उदाहरण कहीं और मिलेगा क्या ?

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