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अपना एमपी गज्जब है..30 यहां बाघ फांसी पर लटकाए जाते हैं...


अरुण दीक्षित,वरिष्ठ पत्रकार
                    आप जो तस्वीर देख रहे हैं उस पर आपकी पहली प्रतिक्रिया यही होगी -अरे बाघ ने आत्महत्या कर ली ? आप क्या जो भी देखेगा उसके मुंह से यही निकलेगा!अरे बाघ फांसी के फंदे पर झूल गया!
 लेकिन वास्तविकता यह है कि देश में टायगर स्टेट का दर्जा पाए अपने एमपी में यह अपने तरह की पहली घटना है।हो सकता है कि देश में भी यह अपने तरह का यह पहला वाकया हो!अभी तक शिकार के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने वाले शिकारियों ने एक युवा बाघ को फांसी पर लटका दिया है।
                   यह तस्वीर सामने आने के बाद वही सब हुआ जो आम तौर पर सरकारें करती हैं!खुद को "टाइगर" घोषित कर चुके राज्य के मुखिया ने आनन फानन में उच्च स्तरीय बैठक बुला ली।हमेशा की तरह तल्ख भाषा में निर्देश दे दिए!अब जांच होगी!जैसी कि हमेशा होती है!चूंकि जिस इलाके में बाघ को फांसी लगाई गई है उस इलाके में विभागीय मुखिया का पद खाली है।इसलिए किसी को तत्काल सस्पेंड करने का ऐलान नही कर सकते।हो सकता है एक दो दिन में किसी छोटे कर्मचारी को निपटा दिया जाए।फिलहाल तो बाघ का अंतिम संस्कार करके जांच का काम आगे बढ़ा दिया गया है।
पन्ना सत्तारूढ़ दल के प्रदेश प्रमुख का संसदीय क्षेत्र है।वे भी पूरी तरह सतर्क हैं।उन्होंने दिल्ली से ही पन्ना जिले के अफसरों की क्लास ले ली।सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है।
 अब राज्य में बाघों की बात करते हैं।आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 2968 बाघ हैं।इनमें 526 मध्यप्रदेश में हैं।यह संख्या देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है।इसी वजह से एमपी को टायगर स्टेट का दर्जा हासिल है।एमपी में करीब आधा दर्जन टायगर रिजर्ब हैं।जिस पन्ना रिजर्व में टाइगर को फांसी दी गई है इसमें भी करीब 75 टायगर बताए जाते हैं।यह सब आंकड़े 2018 की गणना के हैं।अगली गणना 2023 में होगी!तब यह संख्या और बढ़ सकती है।
                        एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब से प्रदेश के मुखिया ने खुद को "टाइगर" घोषित किया है तब से टायगर जंगल से निकल कर शहरों की तरफ भी खूब आ रहे हैं।अब राजधानी भोपाल को ही ले लीजिए! यहां आए दिन टायगर घूमते मिल जाते हैं।अभी कुछ दिन पहले तो एक टायगर शहर के सबसे पुराने इंजिनियरिंग कालेज के परिसर में करीब एक सप्ताह रहा था।उसने गायों का शिकार किया।आराम से रहा।हो सकता है कि टायगर के राज में वह टायगर इंजीनियर बनने का ख्वाब लेकर आया हो।
                     लेकिन वन विभाग के लोगों ने उस बेचारे को बेहोश करके पिंजरे में बंद किया और सतपुड़ा के जंगलों में छोड़ आए।बेचारा बिना डिग्री के ही लौट गया।व्यापम वाले राज्य में उसकी कोशिश बेकार गई! लेकिन टायगर भी क्या करे!राजधानी में उसके इलाके में बड़े अफसर और नेता घुस गए हैं।सबने बड़े बड़े फार्म हाउस,संस्थान बना लिए हैं।जहां अफसर और नेता हों वहां व्यापारी न हो ऐसा संभव नही है।
 बाघ के इलाके में अब व्यापारी सब कुछ कर रहे हैं! प्लाट बेच रहे हैं।जंगल काट के कालोनी बसा रहे हैं।आलीशान रिजॉर्ट भी बना रहे हैं। कौन रोकेगा उन्हें? चार पांव वाला टायगर आएगा तो पकड़ा जाएगा!अगर स्वयंभू टायगर ने कोई "दहाड़" लगाई तो उसका भी "मूल्य" उसके ही दरबारी लगा देते हैं। हां हाल ही में वन मंत्री ने भोपाल के करीब जंगल सफारी की भी शुरुआत की है।जो लोग शहर में घूमते टायगर से नही मिल पाए वे जंगल सफारी पर जाकर टायगर से मिल सकते हैं।अफसरों के मुताबिक रातापानी नाम के इस जंगल में 45 टायगर बताए जाते हैं।वे बाल बच्चेदार हैं।उनके एक दर्जन बच्चे भी बताए जा रहे हैं।
 जहां तक उत्तर वन मंडल पन्ना की बात है,वहां टायगर मरते ही रहे हैं।इसी साल जून के महीने में दो टायगर मरे मिले थे।पिछले साल एक टायग्रेस मरी मिली थी।
                      सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार कितनी गंभीर है!वनों की रक्षा का जिम्मा जिस विभाग पर है उसकी हालत खराब है।वन कर्मचारी डरे हुए हैं।सरकार वोट के चक्कर में आदिवासियों को तमाम हक बांट रही है।कुछ महीने पहले विदिशा जिले के लटेरी इलाके में जंगल काटने वालों पर गोली चलाने वाले वन कर्मियों पर ही मुकदमे कायम किए गए।घोषित अपराधी के परिवार को सरकार ने लाखों का मुआवजा दिया। नाराज वन कर्मियों ने अपनी बंदूकें जमा करा दीं।लटेरी में आज भी खुलेआम जंगल कट रहा है।पिछले सप्ताह बुरहानपुर जिले में तो जंगल काटने वालों ने वन विभाग के चौकीदार को पीट कर सरकारी बंदूकें ही लूट लीं।जो आजतक नही मिली हैं। पुलिस कह रही है कि वह बंदूकें लूटने वालों को खोज रही है। जल्दी पकड़ लेगी।
                    उधर राज्य के मुखिया गांव गांव जाकर आदिवासियों को कह रहे हैं कि जंगल तुम्हारा है।सरकार तुम्हारे लिए "पेसा" कानून लाई है।अब अपना फैसला तुम खुद करो।ऐसे में यदि जंगल काटे जाएं तो कौन सी बड़ी बात है। समस्या एक और भी है।"टायगर बाबू" भले ही यह कहें कि भ्रष्टाचार करने वालों को खोद के गाड़ देंगे।लेकिन वे यह भी जानते हैं कि अब एमपी में "भ्रष्टाचार शिष्टाचार" बन गया है!
 सरकारी पदों की ऑफसेट प्राइस तय है। कुछ अफसर आगे बढ़कर इस योजना का लाभ ले रहे हैं।लेकिन ज्यादातर इसके लिए तैयार नहीं हैं।यही वजह है कि वन विभाग में कई प्रमुख पद खाली हैं।जिस उत्तर वन मंडल पन्ना में टायगर को फांसी लगाई गई है उसके मुखिया का पद ही दो महीने से खाली है।
                    शिकारियों की क्या उन्हें तो शिकार चाहिए!अभी तक वे शिकार के लिए पुराने तरीके अपनाते थे।इस बार उन्होंने बाघ को फांसी लगाने का अनोखा तरीका इजाद किया है।
 लेकिन क्या फर्क पड़ता है।जांच होगी।कुछ लोग पकड़ लिए जाएंगे।टायगर फिर धहाडेगा!मीडिया को खोजेगा और ऐलान कर देगा - शिकारियों को खोद कर जमीन में गाड़ दूंगा!देखना यह होगा कि अपनी खाल बचाने के लिए अमले ने यदि आदिवासी पकड़ लिए गए तो फिर क्या होगा। वैसे अभी टायगर की चिंता किसे है?अभी तो अपना एमपी देश का पहला चीता स्टेट है।नामीबिया से लाए गए आठ चीती और चीते सबकी आंख के तारे हैं।आखिर हों भी क्यों न!आखिर हुजूर के जन्मदिन का तोहफा जो हैं।वे उन्हें बाड़े तक पहुंचाने के लिए कितनी मेहनत करके पालपुर कूनो आए थे।अभी तो पूरा वन अमला और खुद "टायगर" उनकी सेवा टहल में लगा हुआ है।इस बात की जानकारी लगभग रोज जनता को दी जाती है कि आज चीता और चीती ने क्या खाया!क्या पिया!कितने कदम दौड़े और कैसे शिकार किया!
 ऐसे में एक बाघ को फांसी लग भी गई तो क्या? उच्चस्तरीय बैठक हो गई!निर्देश दे दिए!अब क्या बच्चे की जान लोगे आप ?
अब अगर टाइगर स्टेट का हिंदी अनुवाद करेंगे तो लिखेंगे - बाघ का राज्य!यानी जंगल के राजा का राज्य! मने यूं भी कह सकते हैं कि जंगल राज्य !
अब आपका जो मन हो कहो ! कौन रोक रहा है।जब जंगल राज है तो टायगर को फांसी तो लगाई ही जा सकती है ! है कि नहीं ?
अब आप ही कहो कि अपना एमपी गज्जब है कि नहीं!है कि नहीं! बोलो.. बोलो...कुछ तो बोलो!!

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