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इकबाल तो शिवराज सिंह का ही बुलंद है !


कीर्ति राणा ,वरिष्ठ पत्रकार

                     एक तरह से शिवराज सिंह ने अटकलों पर बुलडोजर ही चला दिया है। इकबाल सिंह जा रहे हैं इन कयासों को हवा देने वाले अफसर उम्मीदों के घोड़ों पर सवार भी हो गए थे, लेकिन बाधा दौड़ के परिणाम ने उन्हें निराश कर दिया। यही नहीं जो विरोधी यह दावा करते नहीं थक रहे थे कि शिवराज की दिल्ली दरबार में नहीं चलती, उन्हें भी संपट नहीं पड़ रही है कि ये क्या हुआ, कब हुआ, कैसे हुआ। कहां तो मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस सेवानिवृत होने को ही थे कि शिवराज की बेटिंग इतनी चमत्कारी रही कि लॉस्ट बॉल पर सिक्सर लगा कर इस अप्रत्याशित जीत का हीरो अपने प्रिय सीएस को घोषित कर दिया। 
                   प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास में यह यादगार कथानक लिख कर शिवराज सिंह ने कमलनाथ को भी पीछे छोड़ दिया है। दिनभर फिश-पॉट पर नजर गड़ाए रहें तब भी यह पता नहीं लगा सकते कि मछली पानी कब पी लेती है। सरकार के इमेज-मेकर के रूप में इकबाल सिंह बैंस की कार्यशैली भी ऐसी ही है। परदे के पीछे रहना और कलेक्टर को मैदान में एक्टिव रखने के साथ ही उनका फीडबैक लेते रहने का उनका तरीका प्रशासनिक मशीनरी को अलर्ट मोड पर रखता है। नौकरशाही में इकबाल सिंह बैंस का भी वैसा ही आलम है। उनके पहले कौन सीएस था यह सोचने में दिमाग पर जोर देना पड़े तो इससे समझा जा सकता है मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री की ट्यूनिंग कैसी है। घपले-घोटालों के आग्नेय अस्त्र भी शिवराज सिंह तक आते-आते बेअसर साबित होते रहे हैं तो यह इकबाल सिंह के अदृश्य रक्षा कवच का ही प्रभाव है। सरकारी-असरकारी अमले को तो बहुत पहले से पता था कि 30 नवंबर को बदलाव तय है, जो नाम चल पड़े थे, उनसे रिश्तों के एलबम में आश्वासनों, उम्मीदों के फोटो भी सहेज लिए गए थे। नजदीक आती अंतिम तारीख के बाद भी इस मसले पर मुख्यमंत्री ने जिस तरह चुप्पी की चादर ओढ़ रखी थी तो मान लिया गया था जो नाम चल रहे हैं उनमें से किसी की ताजपोशी पर उन्हें भी सहमति देना ही पड़ेगी। जीएडी ने पत्र भी जारी कर दिया, विदाई वेला के वक्तव्य भी रट लिए गए, ऐन उसी दिन 6 माह के एक्सटेंशन वाली केंद्र सरकार की चिट्ठी से साबित हो गया कि मप्र की सत्ता-संगठन-प्रशासन में बाहुबली तो वे ही हैं। माना जाता है कि चुनावी साल में हर मुख्यमंत्री जिलों में अपनी पसंद और सरकार की इमेज बनाने वाले कलेक्टर-एसपी की तैनाती करता ही है, यहां तो सीएम ने मुख्य सचिव को छह माह और सरकार के साथ रखने की ऐसा पांसा फेंका है जिसे वह प्रदेश में भाजपा की वापसी के पहले कदम के रूप में सिद्ध कर के दिखाना चाहते हैं। ऐसा नहीं कि पहले मुख्य सचिवों को सेवा वृद्धि नहीं मिली है लेकिन यह मामला सबसे अलग रहा है। मुख्यमंत्री के रूप में पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों का रिकॉर्ड ब्रेक करने वाले शिवराज सिंह ने मप्र के प्रशासनिक इतिहास में भी नजीर पेश की है। यह भी साबित कर दिया है कि जब तक वे सीएम हैं मप्र में चलेगी तो उनकी ही फिर बाकी लोग दिल्ली से नजदीकी के अपने चाहे जितने कथा-प्रसंग चलाते रहें। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के सत्ता में आते ही सुधिरंजन मोहंती का मुख्य सचिव बनना तय माना जा रहा था। शिवराज सिंह की सरकार में वे लूप लाइन में थे तो उसकी वजह कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का प्रिय होना ही था। दिग्विजय सिंह खेमे की चाहत के बावजूद मोहंती को कमलनाथ ने एक्सटेंशन देने में रुचि नहीं दिखाई थी। कारण यही था कि उन्हें अपने प्रिय एम गोपालरेड्डी को इस पद पर लाना था। राजनीति का ऐसा उलटफेर हुआ कि न रेड्डी रहे ना कमलनाथ सत्ता बचा पाए। उस 18 महीने में ऐसा संयोग पहली बार बना था कि मुख्य सचिव रहे मोहंती और रेड्डी इंदौर में कलेक्टर भी रहे थे।

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