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अब ना मिश्रजी जैसे सीएम हैं,ना नरोना जैसे सीएस


श्रीप्रकाश दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
              मध्यप्रदेश में नए चीफ सेक्रेटरी को लेकर महीने भर की अटकलबाजी के बाद इकबालसिंह बैंस को ही छह महीने का एक्सटेंशन मिल गया.केंद्र से इसकी मंजूरी रिटायर होने से चंद घंटे पहले ही मिली..? इस खबर के साथ खुलासा हुआ की एक्सटेंशन का प्रस्ताव नौ नवम्बर को भेज दिया गया था.सवाल है की इस प्रस्ताव को गोपनीय क्यों रखा गया की शिवराज बैंस का एक्सटेंशन चाहते हैं.केंद्र में उनकी पार्टी की सरकार है और मोदीजी प्रधानमंत्री तो भले देर हुई पर इसे हरी झंडी मिलने में कोई शक नहीं था. मोदीजी के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाकर अजीत डोवाल भी तो सत्तर पार के हैं.कहते हैं की मुख्यमंत्री शिवराज चुनाव के साल में अपने भरोसेमंद बैंस को इस कुर्सी पर देखना चाहते थे,इसका क्या मतलब..? वैसे भी पुनर्वास के लिए इस दौर के चीफ सेक्रेटरी मुख्यमंत्री के स्टेनो बन कर रह गए हैं.
लम्बे समय तक पद पर रहे राकेश साहनी पहले विद्युत नियामक आयोग में पुनर्वासित हुए और फिर एनवीडीए में मंत्री दर्जे वाले पद पर जा बिराजे.परशुराम को शिवराज ने तो पुनर्वासित किया ही कमलनाथ राज में भी वो यह सुख भोगते रहे थे.अंटोनी डीसा शिवराज के प्रति अपनी भरोसेमंदी से पुनर्वास को लेकर इतने आश्वस्त थे की रिटायर होने से पहले ही उन्होंने दूसरे बंगले की जुगाड़ कर ली थी.ऐसे में खांटी ब्यूरोक्रेट अवनि वैश्य भला शिवराज को कैसे भाते,सो वे बिना पुनर्वास रिटायर हो गए. इस पद का अवमूल्यन दिग्विजयसिंह के दौर में शुरू हो गया था.तब चीफ सेक्रेटरी रहे कृपाशंकर शर्मा को तो पुनर्वास मिला ही,उनकी पत्नी भी मानवाधिकार आयोग की सदस्य रहीं.
                     ऐसे में लौह पुरुष कहे जाने वाले मुख्यमंत्री पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र और चीफ सेक्रेटरी रहे नरोना साहब की याद आना स्वाभाविक है.तब ना तो अफसरों को पुनर्वास का प्रलोभन दिया जाता था और ना ही अफसर इसके लिए लालायित रहते थे.नरोना साहब ने पुनर्वास का प्रस्ताव विनम्रता के साथ अस्वीकार कर दिया था.रिटायर होने पर वो  मोपेड पर चलते और ज्यादा समय गाँव में बिताते थे.एक बार तब के आईजी (तब आईजी पुलिस चीफ होते थे) रुस्तमजी सिविल ड्रेस में मुख्यमंत्री मिश्र से मिलने पहुँच गए थे तब वर्दी का हवाला देकर मिश्रजी ने उन्हें लौटा दिया था.उधर आज शिवराज द्वारा बैंस को मिठाई खिलाता फोटो छपा है.!

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